Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Videos Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019मुंबई से फिर अपने गांव की तरफ क्यों भाग रहे मजदूर?

मुंबई से फिर अपने गांव की तरफ क्यों भाग रहे मजदूर?

महाराष्ट्र में कोरोना के बढ़ते आंकड़े हाहाकार मचा रहे हैं.

ऋत्विक भालेकर
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(फोटो: क्विंट हिंदी)
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वीडियो एडिटर: आशुतोष भारद्वाज

महाराष्ट्र में कोरोना के बढ़ते आंकड़े हाहाकार मचा रहे हैं. कड़ी पाबंदियां लगाकर सरकार इससे निपटने की कोशिश कर रही है. ऐसे में कुछ ही महीने पहले मायानगरी मुंबई में काम पर लौटे मजदूर फिर एक बार अपने गांव का रास्ता पकड़ने पर मजबूर हो गए हैं.

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मुंबई के लोकमान्य तिलक टर्मिनस रेलवे स्टेशन का नजारा कुछ इसी तरह का है. जहां से ज्यादातर उत्तर भारत के लिए ट्रेनें छूटती हैं. हालांकि पिछले लॉकडाउन के मुकाबले इस बार गांव लौटनेवालों की संख्या कम है लेकिन मन में डर बरकरार है.

“अबकी बार जाऊंगा तो मुंबई वापस नहीं लौटूंगा. मुंबई में आने जाने में 36 घंटे लगते हैं. लॉकडाउन लग गया तो आने जाने में बड़ी दिक्कत होती है. पिछली बार 2 हजार देकर ट्रक से घर पहुंचा था. चार दिन लग गए थे.”

ये आपबीती है नवी मुंबई में कारपेंटर का काम कर रहे प्रमोद कुमार की. वो यूपी में अपने गांव महाराजगंज लौट रहे हैं.

फोटो: क्विंट हिंदी

इसी तरह बांद्रा में टेलरिंग का काम करनेवाले और इलाहाबाद लौट रहे जाकिर हुसैन ने बताया कि, "कड़ी पाबंदियों के चलते काम फिर से बंद हो गया है. काम के हिसाब से दिन के 500 से 600 दिहाड़ी मिलती थी. उसी में रहना, खाना-पीना चलता था. लेकिन काम नहीं रहेगा तो खाएंगे क्या?"

महाराष्ट्र में लगी पाबंदियों से उद्योग और निर्माण कार्य को छूट दी गई है. बावजूद इसके कंस्ट्रक्शन साइट वर्कर पूरे लॉकडाउन के डर से पलायन कर रहे हैं. 

ऐसे ही एक श्रमिक अजहर बताते है कि,”पिछली बार मांग-मांग कर खाना पड़ा. बाहर निकले तो मार खाओ. तीन महीने तक फंसा रहा. वो डर अभी भी मन में है. इसीलिए कोलकाता अपने गांव लौट रहा हूं.”

(फोटो: क्विंट हिंदी)

दरअसल, मुंबई और आसपास के महानगरों से पलायन कर रहे कुशल और अर्ध कुशल मजदूरों की संख्या ज्यादा है. जो उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों से आते हैं. महाराष्ट्र के कई छोटे-बड़े उद्योग, कारखाने, दुकानें और होटलों में महज 10 से 15 हजार महीने की आय पर काम करते हैं. जिसमे से रहने का भाड़ा और खाना-पीना चुकाकर सिर्फ 4 से 5 हजार रुपये बचा पाते हैं. लेकिन कड़ी पाबंदियों के चलते इन मजदूरों का रहना काफी मुश्किल हो जाता है.

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Published: 08 Apr 2021,11:54 AM IST

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