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शिवसेना और BJP के बीच का 2019 के चुनावों में गठबंधन होगा या नहीं, इस सवाल का जवाब हर कोई जानना चाहता है. लेकिन इस सवाल का जवाब न बीजेपी सही तरीके से दे पा रही है और न ही शिवसेना का कोई नेता. बीजेपी कहती है कि शिवसेना 2019 में उन्हीं के साथ रहेगी, जबकि शिवसेना “एकला चलो रे” का नारा बुलंद कर रही है.
राजनीतिक गलियारों में गठबंधन किन शर्तों पर हो सकता है, इसे लेकर खबरिया चैनलों में अलग- अलग फॉर्मूले पढ़ने, सुनने और देखने को मिल रहे हैं. लेकिन ये फॉर्मूले आ कहां से आ रहे हैं, इसकी जब खोज हमने शुरू की तो पता लगा कि ये सूत्रो के हवाले से आ रहे हैं.
चलिए शिवसेना BJP का गठबंधन जब होना होगा तब होगा, नहीं होना है तो नहीं होगा, लेकिन ये फॉर्मूले जो फिलहाल राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बने हुए हैं, यह क्या कहते हैं, इस पर एक सरसरी नजर डालते हैं.
शिवसेना चाहती है कि बीजेपी लोकसभा और विधानसभा का चुनाव एक साथ कराए, और विधानसभा में शिवसेना के लिए 155 सीटें छोड़े तभी शिवसेना BJP के साथ गठबंधन करने के लिए तैयार होगी.
शिवसेना सूत्रो की माने तो महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में 50-50 का फ़ॉर्मूला होना चाहिए. महाराष्ट्र विधानसभा की 288 सीटों में 144 पर शिवसेना और 144 पर बीजेपी अपने उम्मीदवार मैदान में उतारे, लेकिन मुख्यमंत्री पद शिवसेना के पास ही रहेगा.
बीजेपी 50-50 के फॉर्मूले पर तैयार है, लेकिन मुख्यमंत्री पद पर कोई समझौता करने को तैयार नहीं.
शिवसेना 151 सीटों पर चुनाव लड़ेगी जबकि बीजेपी 137. जिसके ज्यादा विधायक जीत के आएंगे, उसका मुख्यमंत्री होगा.
दोनों पार्टियां आधी-आधी सीटों पर चुनाव लड़ें. सरकार आने के बाद मुख्यमंत्री ढाई साल बीजेपी का ढाई साल शिवसेना का हो.
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शिवसेना चीफ उद्धव ठाकरे के साथ बीजेपी चीफ अमित शाह(फाइल फोटोः PTI)
शिवसेना और बीजेपी दोनों ही पार्टियों के नेता इस बात को अच्छी तरह जानते हैं कि अगर गठबंधन नहीं हुआ तो वोटों का बंटवारा होगा. इस बंटवारे का सियासी फायदा 2019 के चुनावों में कांग्रेस- NCP गठबंधन को हो सकता है. मुख्य तौर पर वोटों के बंटवारे को रोकने के लिए भी BJP लोकसभा चुनाव में शिवसेना को हर हाल में साथ लेना चाहती है.
दरअसल महाराष्ट्र में लोक सभा की 48 सीटें है. 2014 में शिवसेना बीजेपी गठबंधन ने 48 में से 42 सीटें जीती थी . ऐसे में अगर गठबंधन नहीं हुआ तो महाराष्ट्र जैसे बड़े राज्य में भी लोकसभा में बीजेपी को बड़ा झटका लग सकता है. इसके साथ ही ये बात भी सच है कि बिना बीजेपी की मदद के शिवसेना भी पिछला प्रदर्शन दोहरा नहीं सकती.
शिवसेना के तेवर बीजेपी को लेकर भले ही सख्त दिखाई दे रहे हो लेकिन ‘पहले मंदिर फिर सरकार’ का नारा देने वाली शिवसेना को मनाने के लिए बीजेपी अगर हिंदुत्व के मुद्दे को चुनाव से पहले उठाती है, और राम मंदिर निर्माण को लेकर लोकसभा में अध्यादेश लाती है, तो शिवसेना के लिए बीजेपी का साथ छोड़ना मुश्किल हो जाएगा.
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