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सोशल मीडिया और इंटरनेट पर अपनी बात अपनी भाषा में कह पाना बड़ी ताकत है. हिंदी भाषी क्षेत्रों के लोग भी इस ताकत का इस्तेमाल कर अपनी बात दुनिया तक पहुंचा रहे हैं. ऐसी ही एक कहानी उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के अंबेडकरनगर की गायत्री देवी (Gayatri Devi) की है. गायत्री पिछले 20 सालों से दलित अधिकारों के लिए काम कर रही हैं. वो जन विकास केंद्र संस्था की संस्थापक भी हैं जो दलितों के न्याय की लड़ाई लड़ता है और उनके अधिकार दिलाने के लिए काम करता है. गायत्री के अनुसार वो पहले मनरेगा (MGNREGA) मजदूर थीं. अब वो मनरेगा के नियमों में बदलाव चाहती हैं. इसके लिए वो मुहिम चलाना चाहती हैं और अपनी कहानी पूरी दुनिया को सुनाना चाहती हैं, खासकर दलित महिलाओं को जिनके लिए उन्होंने अपना कैंपेन शुरू किया.
44 साल की गायत्री का मानना है कि मनरेगा घरेलू हिंसा को कम करने में एक सहायक भूमिका निभाता है. उन्होंने लॉकडाउन के दौरान अपने आसपास के कई गांव में महिलाओं के खिलाफ हो रहे हिंसा को बढ़ते देखा, तबसे यही सोचने लगी कि इस हिंसा को कैसे रोका जाए.
change.org की पिटिशन पर अब तक 5 हजार से ज्यादा लोग हस्ताक्षर कर चुके हैं. उन्हें इस बात की बहुत खुशी है कि महिलाएं ही नहीं बल्कि समाज के सभी लोग उनकी मांग की अहमियत समझ रहे हैं. कोरोना का सबसे बुरा असर वंचित समाज के लोगों पर पड़ा है. गायत्री ने गरीबी को बहुत करीब से देखा है. उन्हें इस बात का एहसास है कि वंचित होना क्या होता है इसलिए उनके हर दूसरे वाक्य में केवल उनके समाज की नहीं बल्कि देश के समूचे वंचित वर्ग के अधिकार की बात मिलती है.
उनके अनुसार सरकारी सुविधाएं जैसे कि अस्पताल, स्कूल या अन्य सेवाएं जमीन पर आती तो हैं पर जरूरतमंद को नहीं मिल पाती. लोगों को उनका अधिकार दिला पाना उनके लिए एक चुनौती है, वो सबके लिए आवाज तो उठाती हैं पर समाधान कुछ का ही हो पाता है. लेकिन उन्हें इस बात कि बेहद खुशी है कि महिलाएं जिन्हें वो हमेशा ‘बहनें’ कहकर संबोधित करती हैं अब अपने अधिकार के लिए बोलने लगी हैं.
गायत्री मानती हैं कि इस लड़ाई में सोशल मीडिया ने एक बड़ी भूमिका निभाई है. वो चाहती हैं कि सोशल मीडिया हर व्यक्ति तक पहुंचे जिसके लिए चीजों और तकनीक को हिन्दी भाषा में बढ़ावा मिलना चाहिए. गायत्री कहती है “आप एक दलित लड़की के बारे में सोचिए, अगर उसके पास सोशल मीडिया की ताकत हो, अपनी बात को अपनी भाषा में कहने की सहूलियत हो तो वो भी तो अपने अधिकार समझ पाएगी, पढ़ पाएगी, बदलाव से जुड़ पाएगी.
जमीनी स्तर पर और अपने ऑनलाइन कैंपेन पर काम करने के अलावा गायत्री वीडियो वॉलंटियर का भी हिस्सा हैं और समय-समय पर समुदाय में चल रहे अन्य मुद्दों पर वीडियो बनाती हैं और सोशल मीडिया पर डालती हैं. वो शुरू से अवधी बोली बोलती आई हैं और बताती हैं कि कैसे अवधी बोलते ही लोग एकदम से बात सुनने लगते हैं, जुड़ने लगते हैं.
गायत्री से पूछने पर कि क्या आने वाले उत्तर प्रदेश चुनावों में मनरेगा या मजदूरों के अन्य अधिकार मुद्दा बनेंगे तो वो हिंदी की उपभाषा अवधी में कहती हैं
गायत्री को पूरी उम्मीद है कि इस दिशा में जल्द ही कोई सकारात्मक कदम उठाया जाएगा पर कब ये उन्हें नहीं पता.
(ये स्टोरी हिंदी दिवस के अवसर पर change.org के सहयोग से क्विंट हिंदी पर प्रकाशित की गई है)
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