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वीडियो एडिटर: मोहम्मद इब्राहिम
प्रोड्यूसर: कौशिकी कश्यप, सोनल गुप्ता
कैमरापर्सन: शिवकुमार मौर्य
ग्राफिक्स: अरूप मिश्रा
2018 अब खत्म होने जा रहा है, प्रधानमंत्री मोदी निश्चित रूप से अपने नुकसान का हिसाब लगा रहे होंगे. 18 साल के बेरोक अभियान के बाद, जिस दौरान वो एक बार भी कांग्रेस पार्टी से नहीं हारे, उन्हें 3 राज्यों में एक साथ बड़ी पराजय झेलनी पड़ी है.
वाजपेयी ने इसका जवाब, अपने राजनीतिक “चिंतन” को कागज पर उतारते हुए दिया था जब वो “केरल में समुद्र के आकार की वेम्बानाद झील के किनारे कुमारकोम रिजॉर्ट के हरे-भरे वातावरण” का आनंद ले रहे थे. उन्होंने भारत को समझाया था कि “अतीत की गलतियों को आधुनिक समय में वैसी ही गलती करके सुधारा नहीं जा सकता ”.
मुझे लगता है कि प्रधानमंत्री मोदी के लिए समय आ गया है कि वो अपनी सोच व्यक्त करें, और 2019 के मुश्किल चुनावों के पहले हार की कहानी को बदलने की कोशिश करें. मेरा सुझाव है कि वो 31 दिसंबर की मध्यरात्रि को कुरुक्षेत्र में बिलकुल उसी स्थान पर अपना शिविर लगाएं, जहां महाभारत में भगवान कृष्ण ने अर्जुन को उपदेश दिया था. शायद मोदी भी उतने ही सौभाग्यशाली होंगे, और भगवान कृष्ण उन्हें 2019 की नई भगवद्गीता से ये 10 उपदेश देंगे.
वाजपेयी का चिंतन था कि “भले ही हमारा अतीत गौरवशाली था, एक अधिक गौरवशाली नियति भारत की ओर संकेत कर रही है. हालांकि इसे हासिल करने के लिए जरूरी है कि विवाद से समाधान की ओर, टकराव से सामंजस्य की ओर, और विरोध से आम सहमति और मेलजोल की ओर बड़े कदम उठाए जाएं”. दुर्भाग्य से, मोदी की बीजेपी ने मध्यमार्गी आम सहमति को तोड़ दिया है. इसकी मूलप्रवृत्ति में हिंदू-बहुसंख्यकवाद समा गया है.
इसकी बातें गर्म जोशी और पुराने मुहावरों से भरी होती हैं, लेकिन काम ध्रुवीकरण के होते हैं जिनमें हिंसा की अक्सर घातक और मौन सहमति शामिल होती है. ये अत्यधिक संवेदनशील मुद्दों को, सैन्य हमलों से लेकर जम्मू और कश्मीर की बगावत तक को, विजयोल्लास से भरे, धमकाने वाले “राष्ट्रवाद”का रूप दे देती है. लेकिन 2019 में, इसे वाजपेयी के समाधान, सामंजस्य, सहमति और सहयोग की तरफ लौटना ही होगा.
पंडित नेहरू और इंदिरा गांधी के प्रति मोदी की नफरत उन्हें नादानी की तरफ ले जाती है. उनके सिपाहियों ने झूठ और आधे-अधूरे सच गढ़े हैं, ताकि साबित किया जा सके कि भारत की “असफलताओं” की वजह “उस परिवार”का चार दशकों का शासन है. फिर भी जब वो भारत की महानता की बात करते हैं--चाहे परमाणु विज्ञान में हो या अंतरिक्ष में, उद्योग-धंधों में हो या कृषि में--वो लगातार विरोधाभासों में घिरे नेता के रूप में सामने आते हैं, क्योंकि जब भी वो छाती ठोंकते हैं तो वो दरअसल “उस परिवार”के लिए गए कदमों का जश्न मनाते हैं.
वैसे भी,किसी ना किसी को तो हमारे प्रधानमंत्री को बताना चाहिए कि पंडित नेहरू 1964 में और इंदिरा गांधी 1984 में स्वर्ग सिधार चुके हैं, इसलिए 2019 के लिए कृपया अपने वास्तविक प्रतिद्वंद्वियों और युद्ध के मैदान को पहचान लें.
वाजपेयी की सोच थी कि उनकी सरकार “न्यायपालिका के फैसले को स्वीकार करेगी, और उसे लागू कराने के लिए संवैधानिक रूप से प्रतिबद्ध है, चाहे वो फैसला जो भी हो ”.लेकिन मोदी के शासन में, किसी भी न्यायिक फैसले को नकारने के लिए अध्यादेश लाने का बड़ा खतरा है, भले ही प्रधानमंत्री ने सोची-समझी चुप्पी ओढ़ रखी है. ये भारत की बहुलता के लिए उतना ही विनाशकारी होगा जितना 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद का विध्वंस था. मोदी को ऐसे राजनीतिक-वैधानिक अनिष्ट की आशंका को दृढ़ता और स्पष्टता के साथ खत्म करना चाहिए.
जब भी उनके राजनीतिक समर्थकों ने “गौ रक्षा”की आड़ में भीड़ की शक्ल लेकर मुस्लिमों की हत्याएं की हैं, मोदी चुप रहे हैं. लेकिन अब उन्हें ऐसे हर मामले में, स्पेशल इन्वेस्टिगेटिव टीम (एसआईटी) बनाकर दोषियों को जल्द से जल्द सजा दिलाने का संकल्प लेना चाहिए. उन्हें ट्विटर पर नफरत फैलाने वाले @AmiteshSinghBJP , @samivarier और ऐसे ही दूसरे लोगों को पक्के तौर पर “अनफॉलो”कर देना चाहिए.
मोदी कोहर शाम, अविश्वसनीय रूप सेजहरीले प्रवक्ताओं के माध्यम से और समाचार चैनलों की मिली भगत से चलने वाले राजनीतिक अभियान पर तुरंत रोक लगानी चाहिए. उन्हें स्पेशल वर्कशॉप करने चाहिए ताकि प्रवक्ताओं को नागरिक संवाद की सीख दी जा सके; और उन्हें व्हाट्सऐप पर रची जाने वाली झूठी बातों का खात्मा करना चाहिए.
मोदी के “बुद्धिजीवियों”को इतिहास पुनर्लेखन बंद करना चाहिए ;उन्हें ये स्वीकार करने की जरूरत है कि महाराणा प्रताप ने16वीं सदी में हल्दीघाटी में अकबर को नहीं हराया था. और हां,भगवान गणेश किसी प्राचीन भारतीय प्लास्टिक सर्जरी की मिसाल नहीं हैं; 5जी इंटरनेट का आविष्कार महाभारत काल में नहीं हुआ था; स्वामी विवेकानंद हिंदुत्व के पुरोधा कभी नहीं थे; और सरदार पटेल कभी भी संघी (आरएसएस कार्यकर्ता) नहीं थे.
मोदी को अपने वित्त मंत्रालय को निर्देश देना चाहिए कि वो वूडू अर्थशास्त्र छोड़ दे जो फैंटम (प्रेत) विनिवेश (एक सरकारी कंपनी दूसरे में हिस्सा खरीदती है ताकि “वास्तविक”बिक्री का भ्रम पैदा किया जा सके) और जीडीपी आंकड़ों की बनावटी बैक-सीरीज की रचना करती है. उन्हें “पकौड़ा रोजगार” ,या मुद्रा और ईपीएफ आंकड़ों का इस्तेमाल करके नौकरियों के संकट से कतराकर निकलना बंद करना चाहिए. मोदी को स्वीकार करना चाहिए 2014/15 में अपनी राजनीतिक ताकत के शिखर पर उन्होंने सरकारी बैंकों की हालत ठीक ना करके भारी गलती की है. उनके साथियों को बड़ी तादाद में नए नोट छापने के लिए आरबीआई पर दबाव डालना बंद करना चाहिए.
मोदी को मुश्किल में फंसे किसानों को आय दो गुनी करने और ज्यादा समर्थन मूल्य के लॉलीपॉप से गुमराह नहीं करना चाहिए. उन्हें“एकबारकर्जमाफी”की साहसपूर्ण नीति बनानी चाहिए,जिसके बाद वास्तविक कृषि सुधारों पर काम हो,जिनमें इनकम ट्रांसफर, ग्रामीण आधारभूत ढांचों पर निवेश, कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग, जीएम फसल, और फूड रिटेल उद्योग के साथ सीधा जुड़ाव जैसे कदम शामिल हों. उन्हें एकाधिकार रखने वाली मंडियों को खत्म कर देना चाहिए जो बिचौलियों के लिए मोटी कमाई का जरिया हैं.
मोदी को 2019 में मुक्त, प्रतिस्पर्धात्मक बाजारों में भरोसा रखना होगा. उन्हें कीमतों पर नियंत्रण की नीति खत्म करनी चाहिए, करदाताओं और एंजेल इन्वेस्टरों को परेशान करना रोकना चाहिए, अंतरराष्ट्रीय फैसले लागू कराने चाहिए, विदेशी निवेशकों के अधिकारों का सम्मान करना चाहिए, गैर-आईएएस रेगुलेटर नियुक्त करने चाहिए और निजी सेक्टर से विशेषज्ञों को शामिल करना चाहिए. उन्हें नोटबंदी और जीएसटी की दोहरी मार झेल रहे छोटे और मझोले उद्योगों की पुकार सुननी चाहिए. उन्हें ईज ऑफ डूइंग बिजनेस की दिखावटी “उपलब्धियों”का जश्न मनाना बंद करना चाहिए.
अंत में,भगवान कृष्ण ने अपना उपदेश समाप्त करते हुए कहा: हे भाजपा के शासकों, जाओ और थोड़ी हास्य वृत्ति हासिल करो. एकछोटी सी मुस्कान राजनीतिक विपक्षियों को निरस्त्र करने में काफी असरदार होती है!
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