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वीडियो एडिटर: मोहम्मद इरशाद आलम
ऐतिहासिक, अद्वितीय... आजाद भारत में कभी नहीं हुआ....
केंद्रीय कैबिनेट की तरफ से न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी के बाद ये हेडलाइन छापी गई, जो काफी मारक है. दरअसल, 2019 लोकसभा चुनावों से पहले सरकार ने किसानों को लुभाते हुए धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य 13% (200 रुपये प्रति क्विंटल) बढ़ा दिया. इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस कदम को ऐतिहासिक बताया.
लेकिन MSP में इस बढ़ोतरी के बाद क्या वाकई किसानों की जिंदगी बदलने वाली है?
उदाहरण के साथ हम आपको बताएंगे कि किसानों को इसका न के बराबर ही फायदा होगा.
पिछले 10 सालों के आंकड़ों पर नजर डालते हैं. शुरुआत के तीन सालों में (2007-08 से 2009-10 तक), सरकार ने पहले साल 29%, दूसरे साल 21% और तीसरे साल 17% की बढ़ोतरी की. इन तीन सालों में धान का समर्थन मूल्य दोगुना हुआ. तो फैसला आप कीजिए कि ऐतिहासिक कौन सा था.
अब बात करते हैं पिछले तीन साल की. धान के समर्थन मूल्य में 2016-17 में 4% की बढ़ोतरी की गई, 2017-18 में 5% और 2018-19 में 13% की बढ़ोतरी. तीनों को अगर हम 2007-08 से 2009-10 के बीच गई गई बढ़ोतरी से तुलना करें, तो ये कहीं से भी ऐतिहासिक नहीं है.
सरकार अगर अपनी ही रिपोर्ट पढ़े, तो जवाब मिलेगा कि इससे किसानों को बहुत फायदा नहीं होने वाला है. सरकार की जिस एजेंसी को MSP सिफारिश करने की जिम्मेदारी दी है, उसका नाम है Commission for Agricultural Costs and Prices यानी CACP.
CACP की 2017 की रिपोर्ट के पेज नंबर 29-30 और 32 पर गौर कीजिए. इसके हिसाब से गेहूं की MSP पर खरीद होती है, इसके बारे में देश के महज 39 परसेंट लोगों को जानकारी है. चावल के MSP के बारे में महज 31 परसेंट लोगों को पता है. बुधवार को जिस रागी के MSP में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी की गई है, उसकी सरकारी खरीद भी होती है, इसके बारे में देश के सिर्फ 2.5 परसेंट लोगों को जानकारी है.
अब उसी रिपोर्ट की दूसरी बातों पर गौर कीजिए. इसमें कहा गया है कि उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, असम, तमिलनाडु और कर्नाटक में अनाज की खरीद नाममात्र की ही होती है. असम में लगभग नगण्य और बाकी राज्यों में कुछ किसानों के फसल का कुछ हिस्सा.
सरकारी खरीद कुछ राज्यों में खूब होती है. उनमें पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ शामिल हैं. वहां के कुछ किसानों को इस बदलाव से जरूर फायदा होगा. लेकिन कुछ राज्यों के मुट्ठीभर किसानों को थोड़ा-सा फायदा, इसको चमत्कारी तो नहीं ही कहा जा सकता है.
15,000 करोड़ रुपए खर्च करने के इस फैसले से अगर किसानों का भला नहीं होगा, तो इसका फायदा किसे होगा? शायद बिचौलियों का, जो किसानों से सस्ते में अनाज खरीद कर सरकारी एजेंसी को बेच देते हैं. इस भारी भरकम बिल से हमें क्या मिलेगा?
एक अनुमान के हिसाब से वित्तीय घाटा 0.35 परसेंट बढ़ सकता है. महंगाई में कम से कम 0.7 परसेंट की बढ़ोतरी हो सकती है. क्या इस फैसले के बाद फिर भी हम कहेंगे कि किसानों के हित के लिए ये बड़ा फैसला लिया गया? हेडलाइन से इतर बातों पर गौर करके आप खुद फैसला कीजिए.
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