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WhatsApp और सोशल मीडिया की ताकत से BJP सरकार बेचैन क्यों | VIDEO

क्या ये ‘पहरा’ इसलिए है ताकि विपक्षी सोशल मीडिया का फायदा ना उठा सकें?

नीरज गुप्ता
वीडियो
Updated:
WhatsApp, यू-ट्यूब, फेसबुक, ट्विटर जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर विपक्षी दल बीजेपी से पुरजोर पंजा लड़ा रहे हैं
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WhatsApp, यू-ट्यूब, फेसबुक, ट्विटर जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर विपक्षी दल बीजेपी से पुरजोर पंजा लड़ा रहे हैं
(फोटो : हर्ष साहनी/ द क्विंट)

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हैलो दोस्तो,

अगर मैं आपसे पूछूं कि एक WhatsApp ग्रुप बनाने के लिए क्या चाहिए? तो आपका जवाब होगा- बस, एक स्मार्टफोन और इंटरनेट कनेक्शन. लेकिन नहीं. WhatsApp ग्रुप बनाने के लिए चाहिए इजाजत और वो भी जिले के डीएम की.

कथा जोर गरम है कि सरकार WhatsApp के चौतरफा प्रचार-प्रसार को कर लेकर खासी चिंतित है. हाल में उत्तर प्रदेश में ललितपुर के डीएम और एसपी ने फरमान जारी किया कि पत्रकारों के हर WhatsApp ग्रुप के एडमिन का जिले के सूचना विभाग में रजिस्ट्रेशन करवाना होगा.

  • इसके तहत एडमिन का एड्रेस प्रूफ, आधार नंबर, फोटो, यानी पूरी जानकारी प्रशासन के पास जमा रहेगी.
  • ग्रुप के तमाम दूसरे सदस्यों के नंबर भी इस रजिस्ट्रेशन में शामिल होंगे.
  • प्रशासन की इजाजत के बिना कोई नया सदस्य ग्रुप में जोड़ा नहीं जा सकेगा.
  • अगर ऐसा किया गया तो आईटी एक्ट के तहत कानूनी कार्रवाई होगी.

अब कुछ का मानना है कि इस कदम से फर्जी पत्रकारों पर नकेल कसेगी. लेकिन कइयों का कहना है कि ये अभिव्यक्ति की आजादी पर शिकंजा है.

जम्मू-कश्मीर में किश्तवाड़ जिले के डीएम साहब ने भी ऐसे ही रजिस्ट्रेशन का आदेश दिया था. उनका आदेश तो पत्रकारों के ग्रुप तक भी सीमित नहीं था. वो हर WhatsApp ग्रुप एडमिन के लिए था. भले ही आपने अपनी फैमिली का कोई ग्रुप बना रखा हो.

चिंता नेशनल लेवल पर

21 अगस्त, 2018 को WhatsApp के CEO क्रिस डेनियल से मुलाकात में आईटी मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने चेतावनी दी- WhatsApp को पता होना चाहिए कि किसी फॉरवर्डेड मैसेज का ओरिजिन क्या है?

लेकिन WhatsApp ने सरकार की चेतावनी बिना सिलेक्ट किए ही डिलीट कर दी. कंपनी ने कहा कि ‘एंड-टू-एंड एनक्रिप्शन’ के चलते वो ऐसा नहीं कर सकती.

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इतनी बेचैनी क्यों है भाई?

सवाल ये है कि आखिर ऐसा क्या हो गया कि सरकार को अचानक WhatsApp के इस मदमस्त घोड़े पर लगाम कसने की बेचैनी सताने लगी?

लोकनीति-CSDS के एक सर्वे के मुताबिक

2017 में शहरी भारत में WhatsApp की पहुंच 22% थी जो जुलाई 2018 तक 38% हो चुकी है. ग्रामीण इलाकों में तो ये स्पीड और भी फास्ट है. 2017 में रूरल इंडिया में 10% लोग WhatsApp इस्तेमाल करते थे लेकिन जुलाई 2018 तक ये संख्या दोगुनी हो चुकी थी.

यानी 2019 के आम चुनावों तक रैलियों और रोड-शो से ज्यादा असरदार WhatsApp का मैदान होगा.

तकनीक नहीं ताकत है सोशल मीडिया

साहब.. वो कहते हैं ना कि 10 डाउनिंग स्ट्रीट, व्हाइट हाउस या 7 RCR इमारतों के नहीं ताकतों के नाम हैं. बस वैसे ही सोशल मीडिया अब कोई तकनीक नहीं बल्कि ताकत है जो सबको डरा रही है.

अब आप कहेंगे कि सोशल मीडिया तो बीजेपी का होम ग्राउंड है. 2014 की जीत में सोशल मीडिया का शानदार योगदान भला कौन भूल सकता है?

लेकिन अब ये बराबर की टक्कर है. द क्विंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक

जुलाई 2017 से अप्रैल 2018 के बीच पीएम नरेंद्र मोदी ने 3,318 ट्वीट किए. हर पोस्ट का average retweet रहा- 2,848 और Engagement rate रहा 0.04%. वहीं इसी दौरान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने 861 पोस्ट किए. average retweet रहा- 4,107 और Engagement rate रहा 0.22% यानी पीएम मोदी से कहीं ज्यादा.

ट्विटर के अलावा WhatsApp, यू-ट्यूब, फेसबुक वगैरह पर भी विपक्षी दल बीजेपी से पुरजोर पंजा लड़ा रहे हैं.

यही वजह है कि कंधा भले ही फेक न्यूज, अफवाह, मॉब लिंचिंग जैसे डरावने शब्दों का हो लेकिन एक मकसद सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर शिकंजा कसने का भी है ताकि उन्हें अपने हिसाब से और अपने हक में इस्तेमाल किया जा सके.

लेकिन अब तो ये जिन्न बोतल से निकल चुका है. जो इसे बांधेगा वही साधेगा.

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Published: 01 Sep 2018,07:31 PM IST

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