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हैलो दोस्तो,
अगर मैं आपसे पूछूं कि एक WhatsApp ग्रुप बनाने के लिए क्या चाहिए? तो आपका जवाब होगा- बस, एक स्मार्टफोन और इंटरनेट कनेक्शन. लेकिन नहीं. WhatsApp ग्रुप बनाने के लिए चाहिए इजाजत और वो भी जिले के डीएम की.
कथा जोर गरम है कि सरकार WhatsApp के चौतरफा प्रचार-प्रसार को कर लेकर खासी चिंतित है. हाल में उत्तर प्रदेश में ललितपुर के डीएम और एसपी ने फरमान जारी किया कि पत्रकारों के हर WhatsApp ग्रुप के एडमिन का जिले के सूचना विभाग में रजिस्ट्रेशन करवाना होगा.
अब कुछ का मानना है कि इस कदम से फर्जी पत्रकारों पर नकेल कसेगी. लेकिन कइयों का कहना है कि ये अभिव्यक्ति की आजादी पर शिकंजा है.
21 अगस्त, 2018 को WhatsApp के CEO क्रिस डेनियल से मुलाकात में आईटी मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने चेतावनी दी- WhatsApp को पता होना चाहिए कि किसी फॉरवर्डेड मैसेज का ओरिजिन क्या है?
लेकिन WhatsApp ने सरकार की चेतावनी बिना सिलेक्ट किए ही डिलीट कर दी. कंपनी ने कहा कि ‘एंड-टू-एंड एनक्रिप्शन’ के चलते वो ऐसा नहीं कर सकती.
सवाल ये है कि आखिर ऐसा क्या हो गया कि सरकार को अचानक WhatsApp के इस मदमस्त घोड़े पर लगाम कसने की बेचैनी सताने लगी?
लोकनीति-CSDS के एक सर्वे के मुताबिक
यानी 2019 के आम चुनावों तक रैलियों और रोड-शो से ज्यादा असरदार WhatsApp का मैदान होगा.
साहब.. वो कहते हैं ना कि 10 डाउनिंग स्ट्रीट, व्हाइट हाउस या 7 RCR इमारतों के नहीं ताकतों के नाम हैं. बस वैसे ही सोशल मीडिया अब कोई तकनीक नहीं बल्कि ताकत है जो सबको डरा रही है.
अब आप कहेंगे कि सोशल मीडिया तो बीजेपी का होम ग्राउंड है. 2014 की जीत में सोशल मीडिया का शानदार योगदान भला कौन भूल सकता है?
लेकिन अब ये बराबर की टक्कर है. द क्विंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक
ट्विटर के अलावा WhatsApp, यू-ट्यूब, फेसबुक वगैरह पर भी विपक्षी दल बीजेपी से पुरजोर पंजा लड़ा रहे हैं.
लेकिन अब तो ये जिन्न बोतल से निकल चुका है. जो इसे बांधेगा वही साधेगा.
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