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आधार पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला सरकार के लिए हार है. यूपीए कह सकता है कि उनका आधार बच गया, वो भले इसे जीत मान सकते हैं. एक बड़ा तबका आधार को प्राइवेसी और सर्वेलांस के खतरे के तौर पर देख रहा था, उनकी जीत है. याचिकाकर्ता चाहते थे कि आधार एक्ट को पूरी तरह खत्म कर दिया जाए, इसे पांच में से तीन जजों ने खारिज कर दिया. यानी, आधार की कानूनी मान्यता को बरकरार रखा गया लेकिन कुछ अहम शर्तों के साथ.
यहां गौर करने वाली बात ये भी है कि जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा है कि आधार पूरी तरह असंवैधानिक है. वो ये भी मानते हैं कि आधार को मनी बिल की तरह पेश करना कानूनन गलत था.
आपको जब तब कंपनियां फोन करके कहती थीं कि आधार लिंक करवाओ, जोर डाला जाता था. कभी-कभी जबर्दस्ती भी होती थी. अब ये सब बंद हो जाएगा. बैंक और मोबाइल कंपनियां आपसे आधार नंबर नहीं मांग सकतीं. कोर्ट ने आधार एक्ट के सेक्शन 57 को खारिज कर दिया है. सरकार की कल्याणकारी योजनाओं को लेकर भी सरकार ने कहा है कि अगर किसी व्यक्ति का आधार ऑथेंटिकेशन फेल हो जाता है तो भी उसे इन योजनाओं का लाभ देने से इनकार नहीं किया जा सकता.
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कोर्ट ने ये भी कहा कि सरकार जल्द डेटा प्रोटेक्शन कानून जल्द बनाए. डेटा प्रोटेक्शन का अभी जो ड्राफ्ट नजर आता है वो इतना मजबूत नहीं है और इससे अभी भी नागरिक की प्राइवेसी को खतरा हो सकता है. अब देखने वाली बात ये होगी कि क्या चुनाव से पहले सरकार एक मजबूत डेटा प्रोटेक्शन कानून लेकर आएगी या नहीं?
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