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वीडियो एडिटर: विशाल कुमार
ऑटो इंडस्ट्री में आई मंदी को सबसे बड़ी चिंता के तौर पर देखा जा रहा है. कई कार मैन्यूफेक्चरिंग कंपनियों ने डिमांड में गिरावट के चलते प्रोडक्शन बंद करने का ऐलान कर दिया है. ऐसे में इस मंदी की मार का शिकार ऑटो प्रोडक्शन कंपनियों में काम करने वाले कर्मचारी बने हैं. कई कंपनियों ने प्रोडक्शन यूनिट में काम करने वाले कर्मचारियों को घर जाने के लिए कह दिया है.
ऑटो इंडस्ट्री से जुड़े जानकारों की मानें तो आने वाले महीनों में इस सेक्टर में काम करने वाले कम से कम दस लाख लोगों की नौकरियां छिन सकती हैं.
देशभर में 280 से ज्यादा ऑटो डीलरशिप बंद हो चुकी हैं. उत्तर भारत का ऑटो हब माने जाने वाले हरियाणा के मानेसर में पिछले कुछ महीनों में 50,000 कर्मचारियों की छंटनी हुई है.
क्विंट से बातचीत में मानेसर की एक ऑटोमोबाइल कंपनी के कर्मचारी ने बताया-
छंटनी के अलावा इन कामगारों को उन ठेकेदारों की धमकी भी झेलनी पड़ती है जो इन्हें अलग-अलग फैक्ट्रियों में काम दिलाते हैं. कर्मचारी ने बताया-
एक मजदूर यूनियन के नेता ने क्विंट को बताया कि कामगारों की बड़ी संख्या में छंटनी के लिए सरकार की मजदूर-विरोधी नीति जिम्मेदार है.
“राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, झारखंड में राज्य स्तर पर बीजेपी सरकार ने श्रम कानूनों में व्यापक बदलाव किए, जो बहुत ही मजदूर विरोधी थे. औद्योगिक विवाद अधिनियम के तहत 100 की संख्या तक कामगारों को रोजगार देने वाली फैक्ट्रियों की जगह अब 300 तक कामगारों की संख्या वाली फैक्ट्रियों को छंटनी से पहले सरकार से इजाजत लेनी होगी. इसका मतलब 85 से 90% कारखानों को इजाजत लेने के दायरे से बाहर कर दिया गया. छंटनी करने से पहले उन्हें सरकार से इजाजत लेने की जरूरत नहीं पड़ी.”
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