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Nitish Kumar क्यों कर रहे बिहार की यात्रा, 5 प्वाइंट में समझिए |Bihar Mein Ka Ba

CM Nitish Kumar Yatra: 5 जनवरी से सीएम नीतीश कुमार चंपारण से अपनी यात्रा की शुरुआत करेंगे.

मोहन कुमार
न्यूज वीडियो
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Nitish Kumar क्यों कर रहे बिहार की यात्रा, 5 प्वाइंट में समझिए |Bihar Mein Ka Ba

(फोटो: क्विंट)

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अंग्रेजी में एक कहावत है- when in doubt, head out. मतलब, जब भी संदेह हो, यात्रा शुरू करें. राजनीति में यात्राएं कोई नई बात नहीं है. राहुल गांधी, प्रशांत किशोर के बाद अब बिहार के मुखिया नीतीश कुमार (Nitish Kumar) यात्रा पर निकलने वाले हैं. कड़ाके की ठंड के बीच 5 जनवरी से नीतीश कुमार चंपारण से अपनी यात्रा की शुरुआत करेंगे. नीतीश की इस यात्रा ने प्रदेश का सियासी पारा बढ़ा दिया है. लेकिन लोगों के मन में एक सवाल भी है. आखिर नीतीश कुमार को अभी यात्रा करने की क्या जरूरत पड़ गई? दूर-दूर तक देश-प्रदेश में कोई चुनाव भी नहीं है. क्या नीतीश कुमार को कोई संदेह है जिसे वो दूर करने के लिए जनता के बीच जा रहे हैं?

मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर

लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया

सियासी भंवर में फंसे नीतीश कुमार क्या मजरूह सुल्तानपुरी के इस शेर को चरितार्थ कर पाएंगे? ऐसा हम इसलिए पूछ रहे हैं क्योंकि उनके सामने चुनौतियों का पहाड़ खड़ा है. शायद यही वजह है कि कथित रूप से प्रधानमंत्री बनने का सपना पाले नीतीश कुमार बिहार में एक बार फिर अपनी सियासी पकड़ को मजबूत करने की कोशिश में जुटे हैं. ये तो तय है कि उनके लिए दिल्ली का रास्ता बिहार से होकर ही निकलेगा. लेकिन इस राह में कई रोड़े हैं. चलिए आपको पांच प्वाइंट में समझाते हैं क्यों नीतीश कुमार के लिए ये दौरा बेहद अहम है.

1. सियासी छवि ठीक करना

बीजेपी से गठबंधन तोड़ने और आरजेडी से हाथ मिलने के बाद नीतीश कुमार की सियासी साख को बट्टा लगा है. राजनीतिक गलियारों में इसे जनमत का अपमान कहा गया था. मुख्यमंत्री होने के बावजूद नीतीश कमजोर दिख रहे हैं. वो बीजेपी के निशाने पर तो हैं हीं, महागठबंधन के नेता भी उनपर हमला करने से नहीं चकू रहे हैं.

पिछले 8 साल में नीतीश कुमार 4 बार पाला बदल चुके हैं. नीतीश ने 2013 में बीजेपी से गठबंधन तोड़ा. फिर 2015 में RJD के साथ मिलकर सरकार बनाई. भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर 2017 में RJD का भी साथ छोड़ दिया. फिर बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाई और अब 2022 में बीजेपी को छोड़कर RJD से मिल गए.

बिहार के वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी कहते हैं कि, "नीतीश कुमार को चौतरफा विरोध का सामना करना पड़ रहा है और उनके पास इसका कोई जवाब नहीं है. ऐसे में वो एक बार फिर जनता के बीच सहानुभूति और समर्थन का भाव पैदा करने के लिए यात्रा निकाल रहे हैं."

2. शराबबंदी को लेकर जनता की राय जानना

छपरा शराबकांड के बाद नीतीश कुमार को भारी आलोचना झेलनी पड़ी थी. ऐसे में कहा जा रहा है कि वो सीधे जनता के बीच जाकर शराबबंदी पर जनमत संग्रह करेंगे. ताकि विपक्ष की ओर से लगातार शराबबंदी की समीक्षा करने के दबाव से मुक्त हो सकें और आधी-आबादी का सच भी जान सकें कि उन्हें शराबबंदी चाहिए या नहीं? बता दें कि छपरा जहरीली शराबकांड में 70 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी.

3. उपचुनाव में हार, पार्टी का गिरता ग्राफ

नीतीश कुमार भले ही सीएम हों लेकिन उनकी पार्टी विधानसभा में तीसरे नबंर पर है. राज्य में हुए तीन उपचुनावों में उनका वोट बैंक खिसकता दिखा है. मोकामा में अनंत सिंह की पत्नी जीतीं. मगर ये जीत अनंत सिंह की करार दी गई. वहीं महागबंधन को जीतनी बड़ी जीत की उम्मीद थी वैसी जीत नहीं मिली. गोपालगंज उपचुनाव में महागठबंध को हार का सामना करना पड़ा, तो कुढ़नी में JDU प्रत्याशी उतारने का प्रयोग फेल साबित हुआ.

वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय कहते हैं कि, "नीतीश कुमार इस यात्रा के जरिए लोगों से फीडबैक लेकर इस बात को भी समझने की कोशिश करेंगे कि महागठबंधन में होने के बावजूद क्यों उनकी पार्टी को हार झेलनी पड़ी."

अगर पिछले विधानसभा चुनाव के नतीजों पर नजर डालें तो पता चलता है कि प्रदेश में JDU की स्थिति कमजोर हुई है. 2005 में हुए विधानसभा चुनाव में JDU को 88 सीटें मिली थी. जो 2010 में बढ़कर 115 हो गई. लेकिन 2015 आते-आते JDU की सीटें घट गई. उस साल पार्टी को 71 सीटें ही मिली. इसके बाद 2020 में पार्टी 50 सीटों का आंकड़ा भी पार नहीं कर पाई और 43 पर सिमट गई.

"कभी नीतीश कुमार बड़े भाई की भूमिका में थे, लेकिन अब सबसे छोटे भाई की भूमिका में आ गए हैं."
रवि उपाध्याय, वरिष्ठ पत्रकार
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4. बीजेपी से बदला और चिराग का तोड़ ढूंढना

2020 विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी और बीजेपी ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा था. दोनों पार्टियों ने फिफ्टी-फिफ्टी फॉर्मूले के तहत अपना उम्मीदवार उतारा था. लेकिन बीजेपी के मुकाबले JDU को कम सीटें आईं. कहा जाता है कि चिराग मॉडल से JDU को नुकसान हुआ था.

चिराग मॉडल से मतलब कि जहां-जहां JDU के कैंडिडेट मैदान में थे, वहां-वहां चिराग पासवान की पार्टी ने उम्मीदवार खड़ा कर दिया. इसका नुकसान करीब 20 सीटों पर JDU को हुआ. 2022 में बीजेपी से गठबंधन तोड़ने की सबसे बड़ी वजह यही रही.

इसको लेकर वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय कहते हैं कि, "इस यात्रा के जरिए नीतीश कुमार चिराग पासवान की तोड़ खोजने की भी कोशिश करेंगे. क्योंकि चिराग की पार्टी से JDU को बड़ा खतरा है. चिराग के पास पासवान समाज का 6 प्रतिशत वोट है. ऐसे में 6 प्रतिशत वोट इधर से उधर होना बड़ा राजनीतिक फैक्टर है."

5. 2024 के लिए जमीन तैयार करना

नीतीश कुमार की नजर दिल्ली की कुर्सी पर भी है. आरजेडी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह नीतीश कुमार को पीएम मैटेरियल बता चुके हैं. हालांकि, बीजेपी को घेरने का उनका प्लान अब तक फेल साबित हुआ है. अब माना जा रहा है कि नीतीश इस यात्रा के जरिए 2024 की प्लानिंग में जुटे हैं.

हालांकि, उन्होंने पीएम पद के लिए राहुल गांधी की उम्मीदवारी का समर्थन कर सबको चौंका दिया है. अब इसकी क्या वजह है यह तो नीतीश ही जानें, लेकिन बीजेपी ने उनके इस बयान को युद्ध से पहले ही सरेंडर कारार दिया है.

बहरहाल, नीतीश राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी हैं. तभी तो प्रदेश की तीसरी पार्टी होने के बावजूद सत्ता में काबिज हैं. अब इस यात्रा से उन्हें और उनकी पार्टी को कितना फायदा होता है यह तो वक्त ही बताएगा.

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