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वीडियो एडिटर: मोहम्मद इब्राहीम
जब नागरिकता संशोधन बिल पर आप गरम बहस में व्यस्त हैं, उसी वक्त इससे भी खतरनाक डेटा प्रोटेक्शन बिल संसद में पेश हो चुका है. संसद में भी इस पर खूब बहस हुई. लेकिन जानने वाली बात ये है कि जब लोग हिंदू-मुसलमान कर रहे हैं, तो बस इतना समझ लीजिए कि इस ड्राफ्ट में तो हर हिंदू का डेटा भी खतरे में हैं.
अगर ये कानून बन गया तो सरकार इस कानून से किसी भी सरकारी एजेंसी को बाहर रख सकती है. ये छूट सरकार समय समय पर तय करेगी. संसद का उसमें कोई रोल नहीं होगा. संसद और जनता के लिए कोई जवाबदेही नहीं होगी.
इसका सीधा मतलब ये हुआ कि सरकार की जांच और जासूसी एजेंसी किसी भी कंपनी से आपका डेटा मांग सकती है. ये डेटा अपराध रोकने के नाम पर, व्हिसल ब्लोइंग के लिए, मर्जर एक्विजिशन के लिए, नेटवर्क सुरक्षा के लिए क्रेडिट स्कोरिंग और कर्ज वसूली के लिए मांगा जा सकता है. सरकार पब्लिक में मौजूद प्राइवेट डेटा प्रॉसेस करने के लिए और सर्च इंजन के ऑपरेशन से भी डेटा मांग सकती है. ये अधिकार सरकार खुल्लमखुल्ला अपने हाथ में ले लेगी.
सरकार ने जो बदलाव किए हैं उस पर लोगों से सलाह नहीं ली गई. लोगों की प्राइवेसी का सवाल भी अहम है. सुप्रीम कोर्ट ने प्राइवेसी के जो टेस्ट बताए हैं, उस पर इन एजेंसी के अधिकारों को खरा उतरना होगा. लोकसभा में बिल स्टैंडिंग कमेटी के बजाय एक नई ज्वाइंट कमेटी को दिया गया है. स्टैंडिंग कमेटी के अध्यक्ष कांग्रेस के शशि थरूर थे. लोगों के पर्सनल डेटा के स्टोरेज के मामले में सरकार इस बिल के जरिए प्राइवेट कंपनियों पर तो लगाम लगा रही है. लेकिन खुद बेलगाम है.
बुनियादी सवाल है कि आपके डेटा पर आपका अधिकार असल में है, या दिखावा है? इसका पॉलिटिकल रूप से गलत इस्तेमाल ना हो, इसकी गारंटी है या नहीं? इसका इस्तेमाल निगरानी और मुनाफे के लिए तो नहीं होगा? इसकी गारंटी नहीं है.
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