advertisement
वीडियो एडिटर: आशुतोष भारद्वाज
केंद्र सरकार के एक फैसले से किसान सड़क पर आ गए हैं. मुंबई पोर्ट पर करीब 7000 टन प्याज अटक गया. केंद्र ने प्याज के निर्यात पर रोक लगा दी है. इससे किसानों और प्याज व्यापारियों में इस कदर गुस्सा है कि महाराष्ट्र की सबसे बड़ी प्याज मंडी में ट्रेडिंग रोक दी गई. महाराष्ट्र के कई शहरों में किसान आंदोलन कर रहे हैं. निर्यात पर रोक को किसान नेता धोखा करार दे रहे हैं
दरअसल देश में प्याज की खुदरा कीमत 50-60 रुपए किलो तक पहुंच गई है. बिहार चुनाव के आसपास ऐसा होना सियासी तौर पर जोखिम भरा हो सकता है. लेकिन जानकार बताते हैं कि सरकार ब्लैंकेट बैन लगाने के बजाय बीच का रास्ता निकाल सकती थी जिससे प्याज के दाम भी आसमान पर नहीं चढ़ते और किसान भी सड़क पर नहीं आते. जैसे कि निर्यात मूल्य फिक्स कर देती, नेफेड का स्टॉक निकाल लेती.
प्याज के निर्यात पर रोक को लेकर एक्सपर्ट्स का भी कहना है कि इससे काफी दिक्कतें आने वाली हैं और सरकार को ऐसा फैसला सोच समझकर ही लेना चाहिए था.
दरअसल किसान इसलिए ज्यादा परेशान हैं क्योंकि लॉकडाउन के दौरान वो 9-10 रुपए किलो में प्याज बेचने को मजबूर हुए. फिर बारिश आधा प्याज बहा ले गई. अब जब प्याज की कीमत चढ़ी और लगा कि अच्छे दिन आएंगे तो सरकार ने प्याज के आंसू रुला दिया.
किसान ही नहीं प्याज कारोबारी भी परेशान हैं. निर्यात पर बैन से मुंबई पोर्ट पर उनका करीब 30 करोड़ का प्याज फंस गया है. आदेश आते ही मंडियों में थोक में जो प्याज 3200 रुपए क्विंटल बिक रहा था वो घट कर 2200 रुपए तक आ गया डायरेक्टरेट जनरल ऑफ फॉरेन ट्रेड के मुताबिक पिछले साल देश से कुल 44 करोड़ डॉलर का प्याज निर्यात किया गया था, इस बार हालत ये है कि अब तक सिर्फ 19.8 करोड़ डॉलर का प्याज ही निर्यात हो सका है.
शरद पवार ने भी ट्वीट कर सरकार से निर्यात बैन पर फिर से विचार करने की मांग की है. उनका कहना है कि इस फैसले से देश के किसानों को घाटा होगा वहीं पाकिस्तान जैसे दूसरे प्याज निर्यातकों को फायदा होगा.
एक सवाल ये भी है कि महंगाई तो बाकी खाद्य पदार्थों की भी बढ़ी है तो फिर प्याज पर ही प्रहार क्यों?
माना कि प्याज पॉलिटिकल सब्जी है, कांदे के वांदे होते ही नेताओं का मन बैठने लगता है. तो बिहार चुनाव को देखते हुए सत्तारूढ़ पार्टी की चिंता स्वाभाविक है. लेकिन बिहार बचाने के लिए महाराष्ट्र के किसान को सड़क पर ला देना क्या वाजिब है? क्या सरकार किसानों की नहीं तो कम से कम अपने पूर्व सीएम देवेंद्र फडणवीस की सुनेगी, जिन्होंने चिट्ठी लिखकर तुरंत बैन हटाने की मांग की है.
वैसे फडणवीस की भी अजीब दुविधा है, उन्हें महाराष्ट्र में राजनीति करनी है तो प्याज किसानों को जवाब देना होगा और बिहार के प्रभारी बनाए गए हैं तो प्याज के दाम चढ़ने पर वोट गिरने की चिंता भी करनी होगी.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)