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(वीडियो एडिटर- पुनीत भाटिया)
16 जनवरी 2021 - भारत के कोविड वैक्सीनेशन प्रोग्राम की शुरुआत करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा- ये टीके हमें कोरोना के खिलाफ जंग में एक निर्णायक जीत दिलाएंगे’ लेकिन आज, 4 महीने बाद. तीन लाख से ज्यादा देशवासी मर चुके हैं, आखिरी एक लाख लोग पिछले 26 दिनों में मर चुके हैं. और इस दौरान देश का वैक्सीन प्रोग्राम बढ़ा नहीं, धारशायी हो गया है. 5 अप्रैल को 43 लाख डोज के उच्चतम स्तर से 9 मई को हम 7 लख डोज तक आ गिरे हैं. तो कोरोना की जंग में कहां गई हमारी जीत? रोज 4 हजार मौतें, क्या ये जीत है या हार?
वो टीके जो हमारी रक्षा करने वाले थे, हमारी जान बचाने वाले थे, वो टीके कहां हैं? ये जो इंडिया है ना, अब यहाँ जो कहा जाता है और किया जाता है उसमें बहुत अंतर आ गया है. हममें से सभी ने दोस्त या परिवार के सदस्य या ऑफिस कुलिग को खोए हैं, कई जानें जा चुकी हैं, फिर भी बातें ज्यादा, काम कम की ये बीमारी दूर नहीं हो रही है.
खासकर वैक्सीन खरीद के महत्वपूर्ण कार्य में, जहां पहले से ही इतनी सारी गलतियां हो चुकी हैं. तो चलिए मोदी जी की तरफ़ लौटते हैं. थोड़ी सी क्रॉनॉलॉजी समझने के लिए.- 16 जनवरी को पीएम ने कहा की भारत के 2 मेड इन इंडिया वैक्सीन हमें कोरोना की जंग में जीत दिलाएंगी. 28 जनवरी को वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम के ऑनलाइन समिट में मोदी ने वास्तव में कोरोना पर अपनी जीत की घोषणा भी कर दी ये कहते हुए कि भारत ने कई विशेषज्ञों और भविष्यवानियों को गलत साबित किया कि भारत पर कोरोना हावी होगा. और 16 फरवरी को पीएम ने ये दावा किया कि भारत अब कोरोना की जंग में दुनिया को प्रेरणा दे रही है. जीत के वादे से, जीत की घोषणा तक और फिर विश्व को प्रेरित करने तक, सब एक महीने में!
इसलिए- जैसे ही हम अप्रैल में पहुंचे- भारत सरकार की कोरोना गाथा की असली तस्वीर दिखने लगी. रोज नाए केस की संख्या में विश्व रिकार्ड - प्रतिदीन 1, 2 , 3, 4 लाख केस से भी अधिक केस आने लगे. और मौतें भी बढ़ती गईं. एक दिन में 1 हजार से बढ़कर 2 हजार, 3 हजार और 4 हजार तक. इस दूसरी लहर में मौतें सिर्फ वायरस की वाझ से नहीं हो रही थी, ये ICU बेड, ऑक्सिजन की कमी, डॉक्टर और नर्स और जरूरी दवाओं की कमी के कारण हो रही थीं.
तीनों की कमी भी उतनी हाई बध रही थी. राज्यों में टीके उपलब्ध नहीं थे, वो केंद्र से वैक्सीन मांग रहे थे, सेंटर के पास खुद देने के लिए टीके रुक गाए. आज, जब भारत सरकार के वैक्सीन प्रोग्राम को और तेज होना चाहिए वो धीमा होते जा रहा है. जिन लाखों लागों को टीका लगाया जा सकता था उन्मे से हजारों की जान चली गई.
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साथ ही - 7 हफ्तों में क्या अपने केंद्र और राज्य सरकारों के बीच टीकों का ड्रामा देखा? अप्रैल के अंत में, हमने सुना कि केंद्रीय सरकार अनऔपचारिक रूप से राज्य सरकारों से कह रही थी की वो विदेशों में वैक्सीन की तलाश करें. ग्लोबल टेंडर जारी करें. अपनी वैक्सीन की कमी का समाधान खुद निकाले.
टीकों के लिए बेताब कई राज्यों ने- यूपी, महाराष्ट्र, पंजाब, केरल, तमिल नाडु, कर्नाटक सब ने ग्लोबल टेंडर जारी भी किए, लेकिन बड़े फा र्मा कंपनियों का जवाब आया की वो सिर्फ सेंट्रल गवर्न्मेंट से हाई समझौते करेंगी. तो इस ड्रामे में इतने हफ्ते क्यों बर्बाद किए गाए? क्योंकि Pfizer और मॉडर्ना जैसी कंपनीयों के पास अब भारत को बेचने के लिए टीके हाई नहीं हैं. उनके सभी टीके कई करोफ टीके- 2020 में हाई बुक हो चुके थे.
अमेरिका, यूरोप, जापान, कोरिया, कनाडा, यूके - सब अपने अपने टीके बूक कर चुके थे. जब की भारत सरकार ने बुक किया - शून्य-जीरो. केंद्र सरकार को पता था की ग्लोबल टेंडर फ़्लॉप होगा- इस लिए - राज्य सरकार को शर्मिंदा होने दिया. और साथ में और भी जरूरी वक्त बीतता गया. आज मॉडर्ना का कहना है की उसके पास 2021 में बेचने के लिए कई अतिरिक्त टीके नहीं हैं. Pfizer का कहना है की वो जुलाई में और ऑक्टोबर के बीच सिर्फ 5 करोड़ वैक्सीन डोज़ हमें दे सकता है.
आज साढ़े चार महीने में भारत 20 करोड़ टीके लगवा चुका है. लेकिन अपनी पूरी आबादी को डबल वैक्सीनेट करने के लिए हमें 280 करोड़ वैक्सीन डोज की जरूरत है. हाँ, इंडिया बहुत बड़ा देश है, इस लिए मांग भी बहुत बड़ी है. लेकिन स्पष्ट रूप से- ये जो इंडिया है ना, यहां हम योजना बनाने में विफल होकर, सरल गणित करने में विफल होकर, अपने खुद के बड़े-बड़े दावों को सच मानकर- राज्य को राज्य के खिलाफ और केंद्र को राज्य के खिलाफ खड़ा करके- हमने कोरोना की जनक को खुद के लिए और भी मुश्किल बना दिया है. और इस सब में केवल समय बर्बाद नहीं हुआ है. इसमें हजारों कीमती जाने भी जा चुकी हैं.
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