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वीडियो प्रोड्यूसर: कनिष्क दांगी
वीडियो एडिटर: आशुतोष भारद्वाज/संदीप सुमन
यूपी में 108, 102 एंबुलेंस के ड्राइवर और मेडिकल टेक्निशियन बिना सेफ्टी किट के काम कर रहे हैं. बकाए वेतन, बीमा और सुरक्षा को लेकर मार्च के आखिर में यूपी के करीब 16,000 एंबुलेंस कर्मचारियों ने हड़ताल भी की. सरकार से आश्वासन मिलने के बाद उन्होंने हड़ताल खत्म की लेकिन उनसे किए गए वादे आज भी पूरे नहीं हुए. इस बीच बस्ती जिले के दो एंबुलेंस कर्मी क्वॉरन्टीन किए गए हैं क्योंकि उन्होंने एक कोरोना संक्रमित को अस्पताल पहुंचाया था.
किसी में कोरोना के लक्षण दिखते हैं, कोई बीमार पड़ता है तो वो सबसे पहले एंबुलेंस को कॉल करता है. एंबुलेंस में काम करने वाले लोग सबसे पहले उस संभावित मरीज के संपर्क में आते हैं, जाहिर है उन्हें खुद संक्रमण का बड़ा खतरा रहता है. लेकिन देश भर में जहां मेडिकल कर्मियों के लिए ताली और थाली बजाई जा रही है, दीये जलाए जा रहे हैं, वहीं यूपी के 102, 108 एंबुलेंस कर्मियों को बुनियादी सुरक्षा सुविधाएं भी नहीं दी जा रही हैं.
यूपी में 102 और 108 की इमरजेंसी एंबुलेंस सर्विस प्राइवेट कंपनी 'जीवीके' यूपी सरकार के अंतर्गत कॉन्ट्रैक्ट पर है. इसमें करीब 16,000 हजार कर्मचारी हैं, जिसमें एंबुलेंस ड्राइवर, आपातकालीन मेडिकल तकनीशियन होते हैं. राज्य में लगभग 4500 एंबुलेंस तैनात हैं. समय पर वेतन न मिलने को लेकर इन एंबुलेंस कर्मचारियों ने पहले सितंबर 2019 में और फिर मार्च 2020 में हड़ताल की.
कोरोना वायरस से मचे कोहराम के बीच एम्बुलेंस कर्मियों की हड़ताल को सुन कर योगी सरकार एक्शन में आई. झटपट सरकार की मध्यस्थता में बैठक बुलाई गई. बैठक में एम्बुलेंस कर्मियों की यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष हनुमान पण्डे, हैदराबाद की कंपनी GVK के आशीष शर्मा, ऑपरेशन हेड मिस्टर नायडू, सरकार की ओर से लखनऊ ADM एवं NHM स्वास्थ्य सचिव विश्वास पंत मौजूद थे. बैठक में तय हुआ कि फरवरी की पेमेंट 31 मार्च को ही सभी कर्मियों के अकाउंट में भेज दी जाएगी. रही बात मार्च के वेतन की तो उसे कंपनी के ऑपरेशन हेड ने 8 अप्रैल तक देने का आश्वासन दिया. कर्मचारियों को 50 लाख का बीमा देने का भी वादा किया गया.
जीवीके कॉरपोरेट कम्युनिकेशन के सुनील यादव के मुताबिक सरकार की तरफ से पेमेंट में लेट होने पर कर्मचारियों का वेतन रुकता है. हमने इस बारे में यूपी के डीजी हेल्थ से बातचीत की. उन्होंने कहा कि हड़ताल का मसला सुलझा लिया गया है और कर्मचारियों का वेतन मिल गया है.
कंपनी और सरकार के दावों के उलट कर्मचारियों के मुताबिक इनमें से ज्यादातर वादे पूरे नहीं हुए. न बीमा मिला, न पूरा वेतन और न ही सुरक्षा किट.उत्तरप्रदेश में क्या, पूरे देश में एबुलेंस कर्मियों के लिए सुरक्षा उपकरण की ज़रूरत क्यों है, इसको समझने के लिए बस्ती ज़िले के दो एम्बुलेंस कर्मी अनिल और तैयब से क्विंट ने संपर्क किया. दरअसल दोनों ही 29 मार्च को बस्ती ज़िले से एक पेशेंट को एंबुलेंस में लेकर गोरखपुर मेडिकल कॉलेज अस्पताल पहुंचे.
मरीज अस्पताल में एडमिट हुआ. दोनों वापस बस्ती जिला आ गये. बाद में मरीज़ की अस्पताल में मृत्यु हो गई. बीमारी कोविड 19 बताई गई. दोनों एम्बुलेंस कर्मी अनिल और तैयब को कंपनी से फोन आया कि आपने जिस मरीज़ को गोरखपुर अस्पताल पहुंचाया था उसे कोरोना था. आप दोनों अस्पताल में क्वॉरन्टीन हो जाइए. तब जाकर ये दोनों क्वॉरन्टीन हुए.
जाहिर है कोरोना की महामारी के बीच हजारों एंबुलेंस कर्मियों का बिना सुरक्षा किट के काम करना न सिर्फ इन कर्मचारियों के लिए खतरा है, बल्कि ये उन तमाम लोगों के लिए भी खतरा है, जिनके संपर्क में ये लोग आते हैं. साथ ही ये लापरवाही कोरोना लॉकडाउन और इसके खिलाफ पूरी लड़ाई को खतरे में डाल सकती है.
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