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DLW कर्मचारियों का सवाल- निगमीकरण पर क्यों चुप हैं पीएम मोदी?

DLW कर्मियों को डर- ‘कहींBSNL जैसी हालत न हो जाए’

विक्रांत दुबे
न्यूज वीडियो
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DLW कर्मियों को डर- ‘कहींBSNL जैसी हालत न हो जाए’
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DLW कर्मियों को डर- ‘कहींBSNL जैसी हालत न हो जाए’
(फोटो: क्विंट हिंदी)

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वीडियो प्रोड्यूसर: कनिष्क दांगी

वीडियो एडिटर: अभिषेक शर्मा

वाराणसी के डीजल लोकोमोटिव वर्क्स (DLW) सहित देश के 7 प्रोडक्शन यूनिट के निगमीकरण की सुगबुगाहट से खलबली मच गई है, कर्मचारी लगातार निगमीकरण के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं.

25 दिसंबर 2014 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी के DLW में दिए भाषण में कहा- ‘आप लोगों से ज्यादा रेलवे के प्रति मेरा प्यार है. क्योंकि मेरा तो जीवन ही उसके कारण बना है जो लोग अफवाहें फैला रहे हैं कि रेलवे का निजीकरण हो रहा है, वो सरासर गलत है.’

DLW के निगमीकरण होने का सुनकर कर्मचारियों को BSNL और इंडियन एयरलाइंस की हालत देखकर वैसे ही हालातों का डर सताने लगा है, लिहाजा वो DLW के निगमीकरण के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं

रेलवे कर्मचारी संघ के सचिव वीएन दुबे ने क्विंट से कहा-

रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष की ओर से कुछ वक्त पहले एक पत्र जारी किया गया है, जिसमें उन्होंने पूरे सात प्रोडक्शन यूनिट को रोलिंग स्टार कंपनी बनाने का निर्णय लिया है, प्रोडक्शन यूनिट का ये लोग रोलिंग स्टार्ट कंपनी के माध्यम से निगमीकरण करेंगे, जिसका कर्मचारी 16 दिन से लगातार विरोध कर रहे हैं.

DLW कमर्चारियों को BSNL की हालत देखकर डर तो लग रहा है कि कहीं DLW के निगमीकरण होने के बाद उनकी हालत भी BSNL और एयर इंडिया जैसी न हो जाए. लेकिन प्रधानमंत्री के 2014 के भाषण के बाद निगमीकरण की खबरों पर पीएम मोदी की चुप्पी भी उनके डर को बढ़ा रही है.

DLW कर्मचारियों के परिवार को भी यही चिंता है. क्विंट से बातचीत में गृहणी वंदना सिंह कहती हैं-

मोदी जी ने ही बोला था कि निगमीकरण या निजीकरण नहीं होगा, ये अफवाहें हैं, आपलोग इसपर मत जाइए, रेलवे ऐसे ही रहेगा आप लोग ऐसे ही कर्मचारी बने रहेंगे, अभी मोदी जी चुप हैं, ये बड़ी बात है, चुप क्यों हैं मोदी जी?

DLW कर्मचारियों का कहना है कि निगमीकरण ही निजीकरण का रास्ता है. DLW कर्मचारी भावना का कहना है कि निजीकरण का पहला स्टेप निगमीकरण है. सरकार कर्मचारियों को आश्वस्त कर रही है कि निगमीकरण होने के बाद भी DLW में कोई बदलाव नहीं होंगे, कर्मचारियों को वही सैलरी मिलेगी और वो सरकार के अंडर में ही काम करेंगे. भावना कहती हैं कि अगर सरकार यही सब कह रही है तो फिर निगमीकरण की जरूरत क्यों है? हम लोग वैसे ही काम कर रहे हैं और करेंगे. लेकिन निगमीकरण के बाद अगर कुछ नहीं होगा तो इसकी जरूरत नहीं है.

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इतना ही नहीं DLW के कर्मचारियों को निगमीकरण के बाद ग्लोबल मार्केट में पिछड़ने का डर सता रहा है. DLW कर्मचारी कृष्णा मोहन का कहना है कि-

इंजन की डिमांड, इलेक्ट्रिक इंजन की डिमांड पूरे विश्व में लिमिटेड है. हम कितने इंजन बनाएंगे. एक ऐसी अवस्था आएगी. दो साल, चार साल, पांच साल. उसके बाद स्थिति क्या होगी. आपको टारगेट नहीं मिलेगा. अभी भारत सरकार हमें जो लक्ष्य देती है वो इंजन लेती है. भविष्य में हमको ओपेन मार्केट में जाना होगा. फिर चाइना का लोको इंजन अगर सस्ता रहेगा तो भारत सरकार उसे खरीदेगी. इसकी कोई बाध्यता नहीं रहेगी कि जो इंजन हम बना रहे हैं, उसे वो खरीदें.

वाराणसी में डीजल इंजन के साथ इलेक्ट्रिक इंजन बनता है. DLW में प्रतिदिन एक इंजन का प्रोडक्शन होता है, 11 देशों में DLW के बनाए इंजन निर्यात होते हैं.

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