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महाभारत में ब्रह्मास्त्र का वर्णन एक ऐसे अस्त्र के रूप में किया गया है जो पूरे ब्रह्मांड को नष्ट करने की क्षमता रखता है. माना जाता है कि ये एक अकेला अस्त्र है जिससे पूरे ब्रह्माण्ड को तहस नहस किया जा सकता है. हम ब्रह्मास्त्र का इस्तेमाल एक ऐसे साधन के रूप में करेंगे जिससे देश के आर्थिक संकट को संभाला जा सके उसे काबू किया जा सके लेकिन उससे पहले कुछ पुरानी बातें 2008 में जब अमेरिका में लीमैन संकट हुआ और अमेरिका का सबप्राइम फूट पड़ा उससे वैश्विक अर्थव्यवस्था पूरी तरह रुक गई.
पश्चिमी इकनॉमी भी बिखर गईं, चीन की तरक्की रुक गई. कच्चा तेल 150 डॉलर प्रति बैरल चला गया तब की यूपीए सरकार ने एक ब्रह्मास्त्र का इस्तेमाल किया. उसने इकनॉमी को एक बहुत भारी स्टिमुलस दिया जिससे इकनॉमी कमोबेश बची रही. उसका असर ये हुआ कि फिस्कल डेफिसिट जीडीपी का 5 फीसदी हो गया महंगाई 8 फीसदी बढ़ गई रुपया गिरकर 62 पर पहुंच गया, ब्याज दरें बढ़कर 8% पर पहुंच गईं लेकिन इकनॉमी बची रही फिर 2014 में आई मोदी सरकार 4 साल उनके लिए काफी अच्छे रहे, कच्चा तेल $150 से गिरकर $30/बैरल पर आ गया.
अमेरिकन डॉलर बड़ी तादाद में देश में आने लगे 10 साल का सरकारी बॉन्ड 7% से नीचे चला गया जैसे नेपोलियन पूछता था कि मेरा 'लकी जनरल' कौन है? जिसकी तकदीर बहुत अच्छी है, वैसे ही मोदीजी एक 'लकी जनरल' की तरह हैं
2017-18 में अमेरिका में आए डोनाल्ड ट्रंप उन्होंने करों में भारी कमी की जिसकी वजह से घाटा काफी बढ़ गया जबकि इकनॉमी वैसे ही बढ़ रही थी. जब घाटा बढ़ता है और इकनॉमी भी ऊपर जाती है ग्रोथ 'रेड हॉट' यानी बेहद तेज रफ्तार हो जाती है अमेरिका में वही हो रहा है फिर ट्रंप ने ईरानी तेल सप्लाई बंद करने की कोशिश की तमाम देशों के साथ ट्रे़ड वॉर भी शुरू कर दी अमेरिका में ब्याज दरें 4% पर पहुंचने को हैं ये काफी ज्यादा मानी जाती है इसका असर ये हुआ कि उभरती अर्थव्यवस्थाओं में हलचल मच गई है.
एशिया, लैटिन अमेरिका से अरबों डॉलर वापस अमेरिका जा रहे हैं हिंदुस्तान फिर मैक्रो इकनॉमी में असंतुलन की कगार पर खड़ा है सरकारी बॉन्ड की दर फिर 8% से ज्यादा हो गई है. रुपया 15% गिरकर 74 पर पहुंच गया है कच्चा तेल फिर 100 डॉलर पर मंडराता दिख रहा है स्टॉक की कीमतें 50-60% तक गिर गई हैं पूरा स्टॉक मार्केट 15% तक गिर गया है.
जो मोदीजी कभी नेपोलियन के 'लकी जनरल' थे, वो आज ट्रंप की 'बलि का बकरा' बन गए हैं. ट्रंप की नीतियों ने उन्हें 'अड़ंगी' दे दी है. 4 साल के खुशहाल अस्तित्व के बाद आज उनके सामने एक बड़ी आर्थिक चुनौती सामने खड़ी है. क्या उनमें ये साहस है कि वो ब्रह्मास्त्र का इस्तेमाल करें? इस आर्थिक संकट को बड़ा बनने से पहले खत्म कर सकें? बीते कुछ वक्त में सरकार और उनके अफसर जिस तरह की छोटी-छोटी नीतियां लेकर आ रहे हैं उससे तो नहीं लगता कि कोई ब्रह्मास्त्र निकलने वाला है.
ये हिंदुस्तान की इकनॉमी की सबसे कमजोर कड़ी है मोदी सरकार की सबसे बड़ी नीतिगत नाकामी भी शायद यही है. साढ़े चार साल पहले जब वो सरकार में आए तब हम 77% तेल आयात करते थे. आज हम 6% ज्यादा यानी 83% तेल आयात करते हैं. पिछले साल के मुकाबले इस साल का तेल आयात बिल 56% ज्यादा है. 400 बिलियन डॉलर के विदेशी मुद्रा भंडार का 1/4 सिर्फ तेल का बिल चुकाने में खर्च हो जाएगा. इतना सब होने के बाद पीएम दुनिया की ऑयल इकनॉमी से देश की मदद की विनती करते हैं. लेकिन विनती करने से दुनिया मदद नहीं करती आपको खुद अपनी मदद करनी होगी. केर्न का उदाहरण देखिए.
हमारी सरकार ने इस कंपनी से पेनल्टी और टैक्स में 2 अरब डॉलर निकाल लिए हैं. जबकि उनका आर्बिट्रेशन केस UK में चल रहा है. तो ये टैक्सेशन है या वसूली कि एक कंपनी को गैरजरूरी ढंग से दबाया जा रहा है ये फैसला मैं आप पर छोड़ता हूं.
अगर आप ये सोचते हैं कि सरकार सिर्फ विदेशी तेल कंपनियों के साथ ऐसा सलूक करती है तो याद कीजिए किस तरह ONGC की बैलेंस शीट से 6 बिलियन डॉलर निकाले गए यानी HPCL को खरीदने के लिए 35 हजार करोड़ रुपये निकाले गए. हाल ही में तेल के दाम तय करने की नीति को भी एक ही दिन में रोलबैक कर दिया. तेल कंपनियों को कहा कि वो 1 रुपया/लीटर दाम घटा दें तो जिस पॉलिसी को बड़ी शिद्दत से, मेहनत से सरकार ने बनाया था. वो एक ही झटके में रोलबैक हो गई और इसका जवाब कैसे मिला? एक ही घंटे की ट्रेडिंग में तेल कंपनियों की एक लाख करोड़ की पूंजी नष्ट हो गई.
रुपया और तेल एक-दूसरे से जुड़े हैं अप्रैल से अब तक मोदी सरकार ने रुपये की कीमत को बरकरार रखने में 40 बिलियन डॉलर यानी ढाई लाख करोड़ रुपये खर्च किए हैं. लेकिन हुआ क्या? रुपया के गिरकर 75 तक पहुंचने की आशंका है. ये 2013 में UPA सरकार के वक्त भी हुआ है. उस समय सरकार ने 20 बिलियन डॉलर खर्च किए थे लेकिन वो संकट के दिन थे तेल 100 डॉलर के पार था. आज जो मोदी सरकार कर रही है उसमें दूरदर्शिता नहीं है.
इसका कोई असर भी नहीं होगा, बिल्कुल समझ नहीं आ रहा कि मोदी सरकार NRI बॉन्ड क्यों नहीं ला रही क्योंकि अगर NRI बॉन्ड आते हैं तो 40 बिलियन डॉलर यानी ढाई लाख करोड़ रुपये वहां से मिल जाएंगे जिससे अपने विदेश मुद्रा भंडार पर बोझ कम होगा तो ये ढाई लाख करोड़ का एक ऐसा ब्रह्मास्त्र है जो लगता है सरकार ने तिजोरी में बंद करके रख दिया है
IL&FS को लेकर बार-बार डिफॉल्ट की खबरें आ रही हैं. कभी 20 करोड़ न दे पाने की बात, कभी 100 करोड़ न देने पाने की बात बार-बार वो डिफॉल्ट कर रहे हैं इससे भारी संकट खड़ा हो सकता है. इसके आसार दिखाई देने लगे हैं जिस तरह IL&FS डिफॉल्ट कर रहा है. उसकी कीमत को म्यूचुअल फंड्स को जीरो पर लिखना पड़ रहा है, उदाहरण के लिए, अगर बतौर म्यूचुअल फंड मेरे पास 10 करोड़ का IL&FS का पेपर है तो मुझे उस 10 करोड़ की जगह 0 करना है समझिए इससे होता क्या है. इससे NBFC की बैलेंस शीट गड़बड़ा जाती है. जिससे वो आगे पैसा देना कम कर देते हैं. असर ये भी होता है कि NBFC से पैसा लेने वाली हाउजिंग फाइनेंस कंपनियों की हालत खराब हो जाती है. सुपरटेक पहले ही डिफॉल्ट कर चुका है.
जिसके बाद वापस NAV में कमी आ जाती है, फिर से लोग घबरा कर फंड्स से पैसा निकालने लगते हैं. फिर डिस्ट्रेस सेल यानी दबाव में आकर लोग निवेश बेचने लगते हैं. इससे क्रेडिट इकनॉमी रुक जाती है. इसके आसार पूरी तरह दिखाई दे रहे हैं. जबसे IL&FS का डिफॉल्ट पहली बार हुआ तब से अब तक भारत की टॉप 20 NBFC की तीन लाख करोड़ की पूंजी नष्ट हो चुकी है. मैंने आपको आसान भाषा में ये समझाने की कोशिश की है कि ये 'संक्रमण' कैसे फैलता है और उसका असर क्या होता है हमारी और आपकी पूंजी पर.
बड़ा आसान ब्रह्मास्त्र था. सरकार IL&FS को 30 हजार करोड़ का क्रेडिटलाइन दे उसमें एक ऐसा इक्विटी इंस्ट्रूमेंट बनाइए जो कहता हो 'मैं आपको 30 हजार करोड़ रुपये देता हूं, आप डिफॉल्ट करना बंद कीजिए' इससे क्रेडिट इकनॉमी चलती रहेगी. हमारी, आपकी पूंजी इस तरह बर्बाद नहीं होगी. लेकिन इसके एवज में जब आपके(IL&FS) एसेट बिकेंगे तो सबसे पहले आप सरकार का 30 हजार करोड़ वापस करेंगे उसके बाद दूसरे क्रेडिटर्स और इक्विटी होल्डर्स का पैसा देंगे इस ब्रह्मास्त्र को इस्तेमाल किया जाना चाहिए था. संक्रमण रुक जाता, बाजार शांत हो जाता. उसके बाद ILFS का नया बोर्ड आराम से बैठकर एक रेस्क्यू पैकेज बनाता अगले साल-छह महीने में अपने एसेट बेचता उससे जो पैसा आता, उससे सरकार का यानी, मेरा और आपका, टैक्स पेयर का 30 हजार करोड़ वापस करता.
उसके बाद जो बचता वो इक्विटी होल्डर और बॉन्ड होल्डर को जाता इस तरह के ब्रह्मास्त्र के इस्तेमाल से ये संक्रमण रुक सकता था पर अफसोस की बात है कि मोदी सरकार ने आधे मन से फैसले लिए बोर्ड को बदल दिया, नया मैनेजमेंट ले आए लेकिन ब्रह्मास्त्र का इस्तेमाल नहीं किया यानी कैश की जरूरत को पूरा नहीं किया जिसकी वजह से ये संक्रमण रुक नहीं रहा है. हमारी 3 ट्रिलियन डॉलर की इकनॉमी खतरे में है उसमें तेजी से पूंजी नष्ट हो रही है. ये सब महज चंद हजार करोड़ रुपये के लिए ये ब्रह्मास्त्र इस्तेमाल करना बहुत जरूरी है और अगर सरकार ये ब्रह्मास्त्र इस्तेमाल नहीं कर पा रही है. तो ये बेहद शर्म की बात है.
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