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क्या इस देश में हिंदू रिफ्यूजियों के लिए कोई जगह नहीं है?

असम के बामुणीगांव में रहनेवाले शरणार्थियों के लिए अपनी पहचान बनाने की लड़ाई जारी रहेगी...

त्रिदीप के मंडल
न्यूज वीडियो
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(फोटो: क्विंट हिंदी)
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(फोटो: क्विंट हिंदी)

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वीडियो एडिटर: संदीप सुमन/अभिषेक शर्मा

इस लोकसभा चुनाव में नॉर्थ-ईस्ट में जो सबसे बड़ा मुद्दा है वो है नागरिकता संशोधन बिल. ये वो बिल है जो ऐसे अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने की बात करता है जो पाकिस्तान, बांग्लादेश या अफगानिस्तान से आए हुए हैं. हम जानते हैं कि पूरा नॉर्थ-ईस्ट ही इस बिल के खिलाफ है पर कुछ ऐसे भी लोग हैं, जिनके लिए ये बिल बहुत ही जरूरी है. कुछ ऐसे ही रिफ्यूजी परिवारों से मिलने के लिए हम बामुणीगांव पहुंचे.

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क्विंट ने कुछ रिलीफ एलिजिबिलिटी सर्टिफिकेट (राहत पात्रता प्रमाण पत्र) देखे जो भारत सरकार ने 60 के दशक में जारी किए थे. इसमें लिखा है कि ये लोग बिना किसी माइग्रेशन सर्टिफिकेट के आए हैं. न ही इनके पास पासपोर्ट है न ही जमीन के कागज और इनके यहां आने का कारण है, बहुसंख्यकों का इन पर अत्याचार.

बमुणीगांव में रहने वाले रिफ्यूजी रोसेंद्र हजोंग का कहना है कि बांग्लादेश में हिंदुओं पर बहुत अत्याचार हुए हैं. रोसेंद्र कहते हैं कि वहां के लोगों ने कहा कि 'हिंदुओं को हिंदुस्तान जाना चाहिए, ये पाकिस्तान है, हम यहां हिंदुओं को नहीं रहने दे सकते.

हमने बहुत कठिन जिंदगी गुजारी है, कोई जंगल में लकड़ी काटने जाता था, हममें से कई लोग स्कूल नहीं गए हैं. मैं होटल में बर्तन धोता था, जैसे-तैसे 5वीं तक पढ़ाई की. 
रोसेंद्र हजोंग, रिफ्यूजी

अनिल चंद्र जैसे लोग ईस्ट-पाकिस्तान से भारत आए और ये सोचते हैं कि अगर नागरिकता संशोधन बिल पास होता है, तो ये रिफ्यूजी नहीं बल्कि भारत के नागरिक कहलाएंगे.

बमुनीगांव में रहने वाले परेश दास, जो बांग्लादेश से पलायन कर भारत आए थे, उनका कहना है कि-

हमें अब भी लोग बांग्लादेशी कहते हैं. हम असम में रह रहे हैं, वोट कर रहे हैं. हमें बहुत बुरा लगता है जब हमें बांग्लादेशी कहा जाता है.
परेश दास, रिफ्यूजी

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