advertisement
कैमरा: नितिन चोपड़ा
वीडियो एडिटर: पूर्णेंदु प्रीतम
'पीरियड एंड ऑफ सेंटेंस' भारत की इस शॉर्ट डॉक्यूमेंटरी ने इस साल ऑस्कर जीता है, ये फिल्म उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले के काटिखेड़ा गांव में शूट की गई. इस डॉक्यूमेंटरी ने देश में माहवारी को लेकर सोच को बदलने की कोशिश की है. ये औरतें अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती हैं और ये सिर्फ एक शुरुआत है
ये सब 2017 में शुरू हुआ जहां एक छोटी सैनेटरी पैड की मैन्यूफैक्चरिंग मशीन लाई गई. इसे काटिखेड़ा में दिल्ली के एक NGO एक्शन इंडिया की मदद से लगाया गया. क्विंट ने काटिखेड़ा में जाकर उन महिलाओं से बातचीत करने की कोशिश की जिन्होंने माहवारी को लेकर दकियानूसी सोच को चुनौती दी.
एक्शन इंडिया को को-ऑर्डिनेटर शबाना ने कहा कि वो काटिखेड़ा में 20 साल से काम कर रही हैं:
गांव में पैड बेचना, ये एक ऐसा मुद्दा था जिसके बारे में वो सभी के साथ खुल कर बातचीत नहीं कर सकती थीं, और अब इन औरतों ने बहुत लम्बा सफर तय किया है. लेकिन आज भी उन्हें इस काम को करने को लेकर चिढ़ाया जाता है, मजाक किया जाता है.
पैड को लेकर उनकी सोच क्या कहती है? स्थानीय निवासी राजेंद्र सिंह से बातचीत में कहते हैं, 'ऐसी बातें महिलाएं अपनी दोस्तों से करती हैं पिता से कैसे कर सकती हैं?'
कनिष्क मानते है कि अगर इससे महिलाओं को अगर मदद मिलती है तो ये काम जरी रहना चाहिए. 'वो (पैड) औरतों के लिए और उनकी सुरक्षा के लिए होता है' उन्होंने कहा कि उन्हें इस बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है.
इनकी लड़ाई सिर्फ माहवारी को लेकर दकियानूसी सोच को खत्म करना नहीं है, कुछ महिलाएं ये काम इसलिए भी करती है क्योंकि उन्हें आर्थिक रूप से मजबूत होना है, घर खर्च में हाथ बंटाना है
ऐसी ही एक महिला हैं शिवानी जो अभी अपनी बोर्ड की परीक्षा दे रही हैं, वो चाहती हैं कि वो अपनी पढ़ाई का खर्च खुद निकाले और शादी के खर्च में हाथ बाटना चाहती हैं
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)