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International Women's Day: 8 मार्च को विश्वभर में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जा रहा है. यह दिन महिलाओं के सशक्तीकरण और उन्हें मान-सम्मान देने के लिए एक कोशिश है. लेकिन इसके बावजूद आज भी महिलाएं समाज में बराबरी के हक के लिए संघर्ष कर रही हैं. इसी मौके पर क्विंट हिंदी देश की ऐसी महिलाओं के जज्बे को सलाम करता है जो लाख मुश्किल और परेशानियों के बावजूद अपने आत्म सम्मान के लिए उड़ान भर रही हैं. इस खास मौके पर क्विंट हिंदी एक ऐसी महिला से रूबरू करा रहा है जो कई परेशानियों के बावजूद सपने को पंख दे रही हैं.
क्विंट हिंदी की टीम चंचल शर्मा से नोएडा की खोड़ा कॉलोनी में उनके एक कमरे के घर में मिलने पहुंची. उनका बेटा अपने 2 खिलौनों को गले लगाकर फर्श पर सो रहा था, उसके बगल में एक अस्त-व्यस्त बिस्तर था, और वहीं किनारे चूल्हे पर दूध उबल रहा था.
बातचीत के पांच मिनट बाद, हमें दरवाजे पर एक आवाज सुनाई देती है और फिर शराब के नशे में धुत चंचल का भाई कमरे में आता है. हम सब उसे वहां से जाने को कहते हैं लेकिन आधे घंटे के समझाने के बाद भी जब चंचल के भाई ने जाने से इनकार कर दिया तो हमने पुलिस को फोन किया.
उस कमरे में चंचल और उसके एक साल के बच्चे के साथ हम जब पुलिस का इंतजार कर रहे थे तब उसका भाई उन्हें गाली और धमकी दे रहा था, तब उस वक्त हमें चंचल की जिंदगी की एक झलक मिली.
चंचल शर्मा अपने आत्मसम्मान और अपने और अपने बेटे का पालन-पोषण करने के लिए ई-रिक्शा चलाती हैं. जब चंचल ने ई-रिक्शा चलाना शुरू किया उस समय उनका बेटा सिर्फ 2 महीने का था. हालांकि अब चंचल को ई-रिक्शा चलाते हुए ढ़ाई साल हो गए हैं और उनका बेटा उसी ई-रिक्शा पर खेलकर बड़ा हो रहा है. चंचल कहती हैं,
दरअसल, पारिवारिक विवाद के चलते चंचल को अपने पति को छोड़ना पड़ा. चंचल का संघर्ष इतना कठिन हो गया था कि चंचल आत्महत्या करने के बारे में सोचने लगी थीं, लेकिन फिर चंचल को उसके बेटे ने मजबूती दी. चंचल अपनी कहानी बताते हुए कहती हैं,
चंचल आगे कहती हैं,
चंचल कहती हैं कि, इस देश में औरत और गरीब होना एक जुर्म जैसा है. लेकिन चंचल ने अभी हार नहीं मानी है.
चंचल की कहानी इस देश की ज्यादातर महिलाओं की हकीकत है, जिन्होंने समाज से लड़ने की हिम्मत जुटाई, लेकिन अभी उनकी परेशानियां खत्म नहीं हुई हैं.
चंचल ने इन सबके बावजूद हार नहीं माना और आगे भी उड़ान भरना जारी रखना चाहती हैं.
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