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ये जो इंडिया है ना... यहां हम अपने टीचर्स की बहुत रिस्पेक्ट करते हैं.. लेकिन तब नहीं जब वो ऐसा कहते हैं ... ओह! तुम कसाब जैसे हो.
हालांकि, टीचर ने तुरंत सॉरी कहा. कहा कि स्टूडेंट उनके बेटे जैसा है.. लेकिन उनके शब्दों- 'अरे, तुम कसाब जैसे हो!'ने नुकसान कर दिया था. जैसा कि स्टूडेंट ने कहा.. यह मजाक नहीं था, ऐसी हर दिन की कट्टरता एक ऐसी चीज है जिसका किसी भी मुस्लिम स्टूडेंट को सामना नहीं करना चाहिए, कम से कम अपने टीचर से तो हरगिज नहीं.
लेकिन टीचर इससे भी बुरा कर सकते हैं. राजस्थान के जालोर में एक 9 साल के दलित लड़के की अपर कास्ट टीचर की पिटाई से मौत हो गई.. किसलिए? क्योंकि उसने टीचर के मटके से पानी पी लिया था.
अभी हाल ही में, हमने एक स्कूली छात्रा को श्रद्धा वालकर की याद में यह कविता पढ़ते देखा –
स्कूल की लड़की शायद अच्छी मंशा से सोचती थी... भीषण हत्या से हिल गई होगी. लेकिन कविता रूढ़िवादी है, Regressive है, कविता श्रद्धा को ही कटघरे में खड़ा कर देती है... अपने माता-पिता की इच्छा के खिलाफ एक साथी को चुनने के लिए उसे ही दोषी बना देती है. शायद कविता उस लड़की को उसके शिक्षकों ने सिखाई थी, या उसकी परवरिश ही शायद ऐसे परिवेश में हो रही हो, जिसका नतीजा कविता के रूप में हमारे सामने आया...लेकिन निश्चित रूप से, हमें क्या उम्मीद करनी चाहिए, कि टीचर ठीक इसका उल्टा सिखा रहे हों - श्रद्धा की हत्या को आधार बनाकर उन्हें अपनी आजादी, अपनी पसंद चुनने से नहीं रोकना चाहिए...फिर चाहे काम की तलाश में अपने शहर को छोड़ना हो, या अपने कमाएं पैसे को संभालना हो, या अपनी पसंद का पार्टनर चुनना हो.
और फिर यहां queerphobia भी है - "क्या तुम एक आदमी हो?" ये सवाल एक बीएड स्टूडेंट आदी से टीचर्स ने कॉलेज कैंपस में पूछा
कपड़े की पसंद को लेकर queer छात्रों को धमकाने वाले टीचर्स, homophobic jokes सुनाने वाले टीचर्स ... क्या ये वही टीचर्स हैं जिस तरह के टीचर्स हम चाहते हैं?
अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ खुलेआम हिंसा की धमकी देने वाले स्कूली बच्चों की शपथ... निश्चित रूप से, जब इन स्टूडेंट्स को नफरत की शपथ दिलाई गई, तब उनके शिक्षक खड़े रहे, तो उन शिक्षकों को कठघरे में खड़ा किया जाना चाहिए?
बेशक, यह भारत के सभी शिक्षकों के बारे में नहीं है. हम सभी के पास कुछ अच्छे शिक्षकों की यादें हैं. लेकिन, ये जो इंडिया है ना... यहां अब हमारे पास कुछ शिक्षक हैं जिनकी कट्टरता, जातिवाद, होमोफोबिया और लिंग आधारित असंवेदनशीलता उनके छात्रों को नुकसान पहुंचा रही है...और ये ऐसे शिक्षक नहीं हैं जिनकी भारत को जरूरत है.
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