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कांवड़ियों से डर का सच: हरिद्वार से दिल्ली 222 Km की क्विंट यात्रा

अब तक कांवडियों को लेकर बनाई गई थी गलत धारणाएं, ये है सच्चाई

बादशा रे
न्यूज वीडियो
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कांवड़ियों से डर का सच - हरिद्वार से दिल्ली 222 Km क्विंट यात्रा
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कांवड़ियों से डर का सच - हरिद्वार से दिल्ली 222 Km क्विंट यात्रा
फोटो: क्विंट हिंदी/अरूप मिश्रा

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कैमरा: शिव कुमार मौर्या

वीडियो एडिटर: प्रशांत चौहान

स्टोरी एंड प्रोडक्शन: बादशा रे

एग्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर: रितु कपूर/रोहित खन्ना

हर साल सावन के महीने में लाखों की संख्या में कांवड़िए या यूं कहें 'भोले' पहुंचते हैं हरिद्वार और गंगा के दूसरे घाटों पर जल लेने के लिए. कांवड़ यात्रा हर साल होती है और कमोबेश हर साल कांवड़ियों के उपद्रव की घटनाएं सामने आती हैं. तो सच क्या है? कांवड़िए क्या भक्ति नहीं, शक्ति प्रदर्शन में विश्वास रखते हैं? बस इन्हीं सवालों को मन में लिए पहुंच गए हम हरिद्वार और शुरू हुई क्विंट हिंदी की कांवड़ यात्रा.

गुरु पूर्णिमा के समापन के साथ शुरू होता है सावन. सावन हिंदुओं के सबसे पवित्र महीनों में से एक माना जाता है. इस महीने में होने वाली ‘कांवड़ यात्रा’ में लाखों श्रद्धालु उत्तराखंड के हरिद्वार, गोमुख, गंगोत्री, यूपी में प्रयागराज और बिहार के सुल्तानगंज में गंगाजल लाने जाते हैं.

पुराणों में जिक्र है कि भगवान शिव ने समुद्र मंथन से निकले ‘हलाहल विष’ को अपने कंठ में रखा था, जिस कारण उनका कंठ नीला पड़ गया था और उन्हें नीलकंठ कहा जाने लगा. ग्रंथों में बताया गया है कि विष पीने से भगवान शिव के शरीर का तापमान बहुत बढ़ गया था, जिसे कम करने के लिए देवता उन पर पानी डालने लगे और इस तरह प्रथा शुरू हुई सावन के महीने में शिवलिंग पर जल चढ़ाने की.

कावड़ यात्रा दो हिस्सों में होती हैं. पहले भाग में कांवड़ि‍यों को किसी साधन के जरिए गंगा घाट तक पहुंचना होता है. दूसरे भाग में उन्हें कांवड़ में गंगाजल भर वापसी की यात्रा तय कर अपने घर के पास के किसी मंदिर के शिवलिंग पर चढ़ाना होता है.
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पिछले साल दिल्ली में कांवड़ियों ने एक कार को तोड़ दिया था, उसके बाद से पूरे देश में कांवड़ियों की एक नेगेटिव इमेज बन गई. हमारा आइडिया सिंपल था. जो जैसा दिखे, उसे वैसा ही दिखाना, चाहे अच्छा हो या बुरा. डॉक्यूमेंट्री में हमने हर तरह की आवाज फिट करने की कोशिश की है.

हमने जो देखा, वह कांवड़ियों की आम धारणा से बिल्कुल उलट था. कांवड़िए या 'भोला'/'भोली' (जैसा कि उन्हें सावन के महीने में कहा जाता है) फ्रैंडली और मिलनसार थे. बहुतों ने महसूस किया कि कुछ लोग सच में यात्रा का नाम खराब करने की कोशिश करते हैं, लेकिन सब लोग भी बुरे नहीं होते.

कौन हैं कांवड़िए, कैसे की जाती है कांवड़ यात्रा और सबसे जरूरी, क्या हमें कांवड़ियों से डरना चाहिए? हमारी डाक्यूमेंट्री देखिए और खुद ही तय कीजिए. लेकिन एक चीज जो सदा के लिए है, वो है कि जहां कहीं विश्वास है, वहां डर की कोई जगह नहीं है.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 31 Jul 2019,01:05 PM IST

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