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महाराष्ट्र में OBC बनाम मराठा विवाद क्या है, बीजेपी-शिवसेना क्यों परेशान?

OBC vs Maratha Controversy: ओबीसी नेताओं ने 3 फरवरी को अहमदनगर में एक मेगा रैली आयोजित करने का फैसला किया है.

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महाराष्ट्र में ओबीसी बनाम मराठा विवाद क्या है, बीजेपी-शिवसेना क्यों परेशान?

(फोटो: अलटर्ड बाय क्विंट हिंदी)

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महाराष्ट्र (Maharashtra) में मराठा और पिछड़ा वर्ग के बीच आरक्षण को लेकर जारी विवाद अब बढ़ता जा रहा है. एनसीपी (अजित गुट) के मंत्री छगन भुजबल के घर पर रविवार (28 जनवरी) को हुई बैठक के बाद ओबीसी नेताओं ने 3 फरवरी को अहमदनगर में एक मेगा रैली आयोजित करने का फैसला किया है. महाराष्ट्र में ओबीसी नेताओं की इस गोलबंदी ने बीजेपी और केंद्र सरकार की आम चुनाव से पहले सरदर्दी बढ़ा दी है.

लेकिन सवाल है कि आखिर मराठा और ओबीसी में क्यों ठन गई है, अपने ही सरकार को क्यों आंख दिखा रहे, सरकार का क्या कहना है और विवाद के राजनीतिक निहार्थ क्या हैं?

मराठा और ओबीसी के बीच क्या विवाद?

महाराष्ट्र में मराठा और ओबीसी के बीच विवाद की मुख्य वजह आरक्षण है. दरअसल, यह विवाद पिछले साल 2023 में बढ़ा, जब कार्यकर्ता मनोज जारांगे के नेतृत्व में मराठा समुदाय ने ओबीसी श्रेणी के तहत सरकारी नौकरियों और शिक्षा में कोटा मांगा. इसके बाद हाराष्ट्र में मराठा आरक्षण को लेकर विवाद बढ़ गया और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) समुदाय से संबंधित नेताओं ने ओबीसी के हिस्से से कुनबी-मराठों को आरक्षण देने का विरोध किया.

ओबीसी समुदाय का आरोप है कि राज्य सरकार कुनबी के नाम पर मराठा समाज को पिछले दरवाजे से आरक्षण का प्रमाणपत्र बांटकर ओबीसी आरक्षण को हड़प रही है. उनका कहना है कि वो अलग से मराठा आरक्षण का समर्थन करते हैं.

इसी बीच, शनिवार (27 जनवरी) को महाराष्ट्र सरकार ने मराठा समुदाय के सदस्यों के रक्त सबंधियों को कुनबी की मान्यता देने के लिए एक अधिसूचना जारी की है.

अपने ही सरकार को क्यों दिखा रहे आंख?

दरअसल, मराठा आरक्षण के खिलाफ सबसे पहले आवाज सरकार के अंदर से ही उठी, जब एनसीपी (अजित गुट) के नेताओं ने शिंदे सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया और कहा कि गवर्मेंट का फैसला गलत है. इसमें बीजेपी, कांग्रेस और अन्य दल के ओबीसी नेता शामिल हैं.

महाराष्ट्र सरकार में मंत्री छगन भुजबल ने पिछले साल 2023, 17 नवंबर को जालना की अंबाद रैली में कहा, "मराठों को आरक्षण देते समय ओबीसी में कटौती नहीं की जानी चाहिए. हम मराठा आरक्षण का विरोध नहीं करते, लेकिन ओबीसी कोटा पर कोई अतिक्रमण नहीं होना चाहिए."

लेकिन अब जब सरकार ने मराठा समुदाय की मांग मान ली, तो ओबीसी समुदाय का गुस्सा और बढ़ गया और उन्होंने आगामी 3 फरवरी को अहमदनगर में मेगा रैली करने का ऐलान कर दिया.

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, 28 जनवरी (शनिवार) को भुजबल द्वारा बुलाई गई बैठक में नेताओं ने न्यायमूर्ति संदीप शिंदे समिति को खत्म करने की मांग करते हुए प्रस्ताव पारित किया साथ ही समिति को असंवैधानिक भी करार दिया. उन्होंने यह भी मांग की कि मराठों को कुनबी प्रमाणपत्र जारी करना बंद कर दिया जाना चाहिए.

बैठक के बाद, भुजबल ने ओबीसी श्रेणियों के सदस्यों से अपील की कि वे मराठों को ओबीसी में शामिल नहीं करने की अपनी मांग पर जोर देने के लिए अपने नजदीकी जन प्रतिनिधियों और सरकारी कार्यालयों तक मार्च निकालें.

मैं ओबीसी वर्ग के सदस्यों से अपील करता हूं कि वे मराठों को ओबीसी में शामिल करने का विरोध करने की हमारी मांग पर दबाव डालते हुए जन प्रतिनिधियों और अन्य प्रशासनिक कार्यालयों तक रैलियां निकालें. आज ही के दिन ओबीसी पर मराठों की भीड़ का हमला हुआ था. कल को इसका असर किसी दूसरे समुदाय पर पड़ सकता है, इसलिए एकजुट होकर इसका विरोध करना चाहिए.
छगन भुजबल, मंत्री, महाराष्ट्र

16 फरवरी से पूरे महाराष्ट्र में यात्रा का ऐलान, कोर्ट जाने की धमकी

भुजबल ने आगे कहा, "मैं अनुसूचित जाति सहित अन्य सभी समुदायों से अपील करता हूं कि वे एक साथ आकर इस भीड़ के हमले से अपनी रक्षा करें."

मराठा को ओबीसी में शामिल करने के विरोध में 3 फरवरी को अहमदनगर में ओबीसी की एक विशाल रैली आयोजित की जाएगी. 16 फरवरी से ओबीसी की राज्य महाराष्ट्र यात्रा भी शुरू होगी.
छगन भुजबल, मंत्री, महाराष्ट्र

भुजबल ने यह भी कहा कि अगर अधिसूचना रद्द नहीं की गई तो ओबीसी अदालत का दरवाजा खटखटाएंगे और ओबीसी कोटा के तहत मराठों को शामिल करने का विरोध करने के लिए वे सभी कानूनी उपायों का इस्तेमाल करेंगे.

भुजबल के अलावा बीजेपी नेता और केंद्रीय मंत्री नारायण राणे ने भी मराठा समुदाय को आरक्षण देने का विरोध किया.

राणे ने एक्स पर कहा, "मैं मराठा समुदाय के आरक्षण को लेकर राज्य सरकार द्वारा लिए गए निर्णय से सहमत नहीं हूं. इसमें मराठा समुदाय की ऐतिहासिक परंपराएं हैं और अन्य पिछड़े समुदायों पर अतिक्रमण से राज्य में असंतोष पैदा हो सकता है. 29 जनवरी को मैं प्रेस कॉन्फ्रेंस करूंगा और इस बारे में बात करूंगा."

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सरकार का क्या कहना?

इंडियन एक्सप्रेस की 28 जनवरी की रिपोर्ट के अनुसार, महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम और बीजेपी नेता देवेन्द्र फड़नवीस ने ओबीसी समुदाय के विरोध को लेकर कहा, “मैं भुजबल और ओबीसी नेताओं को आश्वस्त करना चाहूंगा कि वे चिंता न करें क्योंकि सरकार ने गैर-कुनबी मराठों को कुनबी प्रमाणपत्र जारी करने की अनुमति नहीं दी है. यह केवल उन्हीं को दिया जाएगा जिनकी कुनबी पहचान सत्यापित और स्थापित है. महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग को सही डेटा प्रदान करने और मराठों के पिछड़ेपन को स्थापित करने का काम सौंपा गया है और वर्तमान में राज्य में जाति सर्वेक्षण चल रहा है और 31 जनवरी तक जारी रहेगा."

सरकार ओबीसी से बाहर मराठों को आरक्षण देने वाले 2018 के कानून को रद्द करने के अपने फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर सुधारात्मक याचिका के नतीजे का भी इंतजार कर रही है. हमने शुरू से ही कहा था कि मराठा आरक्षण कानूनी और संवैधानिक मानदंडों के ढांचे के भीतर दिया जाना होगा. मराठों को आरक्षण को कानूनी और संवैधानिक वैधता का सामना करना पड़ेगा.
देवेन्द्र फड़नवीस, डिप्टी सीएम, महाराष्ट्र

विवाद के राजनीतिक निहार्थ क्या हैं?

दरअसल, लोकसभा और महाराष्ट्र विधानसभा का चुनाव दोनों इसी साल प्रस्तावित हैं. लोकसभा चुनाव की घोषण तो फरवरी में होने की भी संभावना है. इस बीच राज्य में ओबीसी का विरोध प्रदर्शन बीजेपी और शिंदे सरकार दोनों के लिए चुनौती बन गई है.

टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी 8 फरवरी 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, महाराष्ट्र में 38 फीसदी से अधिक ओबीसी आबादी है. महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग ( MSBCC) की अंतरिम रिपोर्ट, इस बात का जिक्र है.

वहीं, इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, महाराष्ट्र में मराठा आबादी का 33% हिस्सा हैं. 1960 में महाराष्ट्र के गठन के बाद से, मौजूदा एकनाथ शिंदे सहित इसके 20 मुख्यमंत्रियों में से 12 मराठा रहे हैं.

आकंड़ों के अनुसार, 2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 44 फीसदी ओबीसी और शिवसेना (अविभाजित) को 31 फीसदी ओबीसी वोट मिला था, जबकि कांग्रेस को 14 और एनसीपी (अविभाजित) को 7 प्रतिशत वोट मिला था. जबकि मराठा वोटर्स में भी बीजेपी-शिवसेना का अच्छा जनाधार है.

2019 में बीजेपी को 20 और शिवसेना का 39 फीसदी मराठा का समर्थन मिला था, जबकि कांग्रेस को 9 और एनसीपी का 28 फीसदी मराठाओं ने साथ दिया था.

बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, देश में ओबीसी की आबादी 42 से 52 फीसदी हैं. पिछले दस सालों में हुए चुनाव बीजेपी को जहां भी जीत मिली है, उसमें ओबीसी वोटरों की अहम भूमिका रही है.

लोकनीति-सीएसडीएस के आंकड़े बताते हैं कि बीजेपी ओबीसी वोटरों में अपनी पैठ बनाने में कामयाब रही है. प्रभुत्व वाली ओबीसी जातियों की तुलना में कमजोर ओबीसी जातियों के वोट बीजेपी को ओर ज्यादा आकर्षित हुए हैं.

ऐसे में चुनाव से पूर्व बीजेपी-शिंदे सरकार के लिए परेशानी बढ़ गई है, और दोनों दलों को जल्द ही इस पर कोई रास्ता निकालना पड़ेगा.

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