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पहली नजर में मनमर्जियां अनुराग कश्यप की फिल्म के बिलकुल उलट मालूम पड़ती है, और फिल्म देखकर इसकी वजह भी समझ में आती है. एक गाने के साथ फिल्म शुरू होती है. वैसे फिल्म के हर बड़े मोड़ पर हमारे लिए एक गाना इंतजार करता है. पूरी फिल्म में कहीं भी मार-काट मचाते और एक दूसरे के खून के प्यासे गैंग नहीं हैं. कोई देसी कट्टा, गोलीबारी या देसी गालियां भी फिल्म में नजर नहीं आती. (ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं कि क्योंकि अनुराग कश्यप की फिल्म से लोगों को ये उम्मीद तो होती है.)
हालांकि, गलतियां करने वाले विद्रोही स्वाभाव के किरदारों के लिए अनुराग का 'अनुराग' इस फिल्म में भी साफ तौर पर दिखाई देता है. सिर्फ इस बार लड़ाई अंदर की है, यानी जब आपका दिल खुद से ही संघर्ष करता है और कश्मकश से भरा होता है.
इसके उलट, रुमी (तापसी पन्नू) बेबाक और बिंदास है. इनके प्यार का पागलपन और बेजोड़ केमिस्ट्री हमें सुकून देता है. राइटर कनिका ढिल्लों ने बेहतरीन ढंग से इमोशंस का ताना-बाना बुना है. स्क्रीनप्ले में कसावट नजर आती है. फिर लव स्टोरी में लंदन से लौटे बैंकर रॉबी (अभिषेक बच्चन) की एंट्री होती है. यहीं से कहानी में मोड़ आता है.
तापसी, विकी और अभिषेक अपने-अपने किरदार में असरदार हैं. सेकेंड हाफ में फिल्म की तस्वीर साफ होती है और फिल्म के डायरेक्टर-राइटर का अच्छा तालमेल नजर आता है. हालांकि, कहानी में कुछ खामियां ऐसी हैं जो समझ से परे है. ये बात गले नहीं उतरती कि रुमी के दिल में बदलाव कैसे आता है या कैसे विकी उसमें वजह देखता है.
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