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क्विंट की नई वीडियो सीरीज 'लड़की हूं... पढ़ना चाहती हूं – India's Girls Out of School' में क्विंट पहुंचा है मुंबई(Mumbai). हमने मुंबई की झुग्गी बस्तियों में रहने वाली तीन ऐसी लड़कियों से बात की जिन्हें कोविड महामारी(COVID-19) के कारण अपने सपनो से समझौता करना पड़ा. तीनों लड़कियां अभी भी पढ़ना चाहती है. और अपने रोजमर्रा के संघर्षों के बीच किसी तरह फिर से स्कूल में कदम रखने का मौका तलाश रही है.
इस वीडियो सीरीज को पूरा करने के लिए हमें 7,55,630 रुपयों की जरुरत है. आप इस प्रोजेक्ट को यहां सपोर्ट कर सकते हैं.
क्विंट की इस नई वीडियो सीरीज का उद्देश्य ऐसी लड़कियों की कहानियों को सामने लाना हैं, जिन्हें कम उम्र में ही शादी, काम या किसी और कारण से पढ़ाई छोडनी पड़ी. सीरीज के पहले वीडियो में हमने तबस्सुम, फलक और मरियम से बात की है, उन्होंने क्विंट से अपने रोजमर्रा के संघर्ष और सपनों को लेकर बात की.
तबस्सुम पढ़ने में होशियार होने के साथ-साथ स्कूल में आयोजित प्रतियोगिताओं में भी हिस्सा लेती थीं. तबस्सुम को डांस करना बेहद पसंद था. वो स्कूल में जब भी कोई समारोह होता तो उसमें डांस करना पसंद करती थीं.
तबस्सुम की तरह फलक शाह को भी मजबूरन स्कूल छोड़ना पड़ा. जब उसके पिता की ग्राफिक डिजाइनर की नौकरी 2020 में चली गई,मगर वो किसी भी तरह की नौकरी के लिए बहुत छोटी है. फलक अपने भाई की बदौलत थोड़ा बहुत सीख पा रही है.
फलक की मां ने पिता की नौकरी छूट जाने के बाद परिवार को संभाला. फलक की मां रिबन बनाकर परिवार का आर्थिक सहयोग कर रही हैं और उम्मीद करती हैं कि जल्द ही फलक दोबारा स्कूल जा पाएगी.
मरियम के पिता लॉकडाउन में बीमार हो गए ऐसे में परिवार की प्राथमिकता फोन खरीदना नहीं बल्कि जीवन निर्वाह थी. मरियम को क्लास 4 से स्कूल छोड़ना पड़ा और उसे मजबूरन अब अपने घर में पूरा समय रहना पड़ रहा है. पढ़ाई को लेकर उसकी प्रगति पूरी तरह से रुक गई है. मरियम की कहानी एक उम्मीद और सपनों से भरी बच्ची की कहानी है जिसे अभी किसी शेयर की जरूरत है ताकि उसके सपने और उम्मीदें जिंदा रह सकें.
महामारी ने लड़कियों की शिक्षा की प्रगति को बहुत पीछे कर दिया. तबस्सुम, मरियम और फलक जैसे भारत में हजारों हैं जिनके सपने टूट गए. यहां सवाल ये नहीं है कि परिवारों को ये फैसला क्यों लेना पड़ा बल्कि सवाल ये है कि नीति निर्माता इन लड़कियों को वापस स्कूल लाने के लिए क्या कर रहे हैं.
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