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वीडियो एडिटर: अभिषेक शर्मा
एंकर: कौशिकी कश्यप
इंसाफ के लिए सात साल लंबी लड़ाई के बाद, निर्भया गैंगरेप के दोषियों को 20 मार्च 2020 को फांसी पर चढ़ा दिया गया. हां, आपने सही सुना. ये भले ही कई सालों पुरानी बात लग रही हो, लेकिन निर्भया के दोषियों को इसी साल, 2020 में फांसी हुई है.
दोषियों को फांसी की सजा काफी सुर्खियां बनी थीं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर फिल्मी हस्तियों, खेल जगत के सितारों ने इसे "इंसाफ की जीत" बताते हुए ट्वीट किया था. कई लोगों के लिए, फांसी एक तरह से अंत था.
एक और गैंगरेप. एक और महिला की जान गई. एक और वादा किया गया. ये एक तरह से हर बार की बात हो गई है. जमीनी स्तर पर हालात नहीं बदल रहे हैं.
पिछले सिर्फ एक साल में, महिलाओं के खिलाफ अपराध में 7.3% तक की बढ़ोतरी हुई है. 2019 NCRB डेटा बताता है कि भारत में हर रोज रेप के 87 मामले दर्ज किए जाते हैं. इसने हमें फिर एक बार ये पूछने पर मजबूर कर दिया है कि, भारत में बचाव की जगह सज़ा पर क्यों फोकस किया जा रहा है? इससे हालात सुधरने की बजाय बिगड़ते ही दिख रहे हैं.
बिल के नाम हैं- शक्ति क्रिमिनल लॉ महाराष्ट्र अमेंडमेंट एक्ट 2020 और द स्पेशल कोर्ट एंड मशीनरी फॉर इंप्लीमेंटेशन ऑफ महाराष्ट्र शक्ति क्रिमिनल लॉ 2020. ये दोनों बिल राज्य की विधायिका में पेश कर दिया गया है.
इस बिल में प्रस्ताव है कि रेप, गैंगरेप, माइनर्स के साथ गंभीर यौन उत्पीड़न के मामले में और इसके साथ घातक एसिड अटैक के मामलों में मौत की सजा का प्रावधान हो. बिल में ये भी प्रस्तावित है कि दोषी पाए जाने पर जुर्माना 10 लाख रुपये तक का भारी भरकम होना चाहिए.
अपराधियों को आजीवन कारावास की सजा दी जाएगी जो कम से कम दस साल की होगी लेकिन अगर जघन्य अपराध हुआ तो ये सजा बढ़कर व्यक्ति की मौत तक हो सकती है...
आप ऐसा सोच सकते हैं कि ये बिल राज्य में महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराधों का पुख्ता जवाब हैं. लेकिन 92 एक्टिविस्ट और वकीलों ने महाराष्ट्र सरकार को लिखा खुले पत्र लिखकर इस बिल को पास किए जाने के खिलाफ आवाज उठाई है.
नारीवादी स्कॉलर्स भी रेप के मामले में मृत्युदंड दिए जाने का विरोध करते हैं. इसके पीछे कई कारण गिनाए जाते हैं
भारत की नीतियां महिलाओं के खिलाफ अपराधों को रोकने के लिए मानसिकता को सही करने के बारे में बात नहीं करती हैं. हम केवल 'अब क्या' के बारे में बात करते हैं जब अपराध पहले से ही हो चुका होता है
हम मौजूदा कानूनों को बेहतर तरीके से लागू नहीं करना चाहते हैं, लेकिन ऐसे कठोर कानूनों के बारे में सवाल करते हैं जो उससे भी कम लागू हों. निर्भया गैंगरेप में भले ही चार दोषियों को फांसी की सजा सुना दी गई हो, लेकिन वास्तव में न्याय के लिए - महिलाओं के खिलाफ अपराधों की रोकथाम से असली फर्क पड़ेगा न की सिर्फ सजा से..
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