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निर्भया केस: कठोर सजा से भी कम क्यों नहीं हो रहे रेप के मामले?

निर्भया गैंग-रेप मर्डर केस के 8 साल बाद भी देश में क्या बदला?

मैत्रेयी रमेश
न्यूज वीडियो
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निर्भया गैंग-रेप मर्डर केस के 8 साल बाद भी देश में क्या बदला?
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निर्भया गैंग-रेप मर्डर केस के 8 साल बाद भी देश में क्या बदला?
(फोटो: क्विंट हिंदी)

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वीडियो एडिटर: अभिषेक शर्मा

एंकर: कौशिकी कश्यप

इंसाफ के लिए सात साल लंबी लड़ाई के बाद, निर्भया गैंगरेप के दोषियों को 20 मार्च 2020 को फांसी पर चढ़ा दिया गया. हां, आपने सही सुना. ये भले ही कई सालों पुरानी बात लग रही हो, लेकिन निर्भया के दोषियों को इसी साल, 2020 में फांसी हुई है.

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दोषियों को फांसी की सजा काफी सुर्खियां बनी थीं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर फिल्मी हस्तियों, खेल जगत के सितारों ने इसे "इंसाफ की जीत" बताते हुए ट्वीट किया था. कई लोगों के लिए, फांसी एक तरह से अंत था.

लेकिन 6 महीनों के अंदर ही, उत्तर प्रदेश के हाथरस में एक 19 साल की दलित लड़की की कथित गैंगरेप के बाद मौत हो गई. इस जघन्य अपराध ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया. उसके परिवार ने इंसाफ की मांग की, नेताओं ने भी “सख्त कार्रवाई” का वादा किया. 

एक और गैंगरेप. एक और महिला की जान गई. एक और वादा किया गया. ये एक तरह से हर बार की बात हो गई है. जमीनी स्तर पर हालात नहीं बदल रहे हैं.

पिछले सिर्फ एक साल में, महिलाओं के खिलाफ अपराध में 7.3% तक की बढ़ोतरी हुई है. 2019 NCRB डेटा बताता है कि भारत में हर रोज रेप के 87 मामले दर्ज किए जाते हैं. इसने हमें फिर एक बार ये पूछने पर मजबूर कर दिया है कि, भारत में बचाव की जगह सज़ा पर क्यों फोकस किया जा रहा है? इससे हालात सुधरने की बजाय बिगड़ते ही दिख रहे हैं.

हाल ही के उदाहरण पर नजर डालते हैं. महाराष्ट्र सरकार ने शक्ति एक्ट के पार्ट के तौर पर, दो बिलों का प्रस्ताव रखा है. ये बिल आंध्र प्रदेश के दिशा एक्ट की तर्ज़ पर बनाया गया है, जो 2018 में तेलंगाना में वेटनरी डॉक्टर के रेप के बाद तैयार किया गया था.

बिल के नाम हैं- शक्ति क्रिमिनल लॉ महाराष्ट्र अमेंडमेंट एक्ट 2020 और द स्पेशल कोर्ट एंड मशीनरी फॉर इंप्लीमेंटेशन ऑफ महाराष्ट्र शक्ति क्रिमिनल लॉ 2020. ये दोनों बिल राज्य की विधायिका में पेश कर दिया गया है.

इस बिल में प्रस्ताव है कि रेप, गैंगरेप, माइनर्स के साथ गंभीर यौन उत्पीड़न के मामले में और इसके साथ घातक एसिड अटैक के मामलों में मौत की सजा का प्रावधान हो. बिल में ये भी प्रस्तावित है कि दोषी पाए जाने पर जुर्माना 10 लाख रुपये तक का भारी भरकम होना चाहिए.

अपराधियों को आजीवन कारावास की सजा दी जाएगी जो कम से कम दस साल की होगी लेकिन अगर जघन्य अपराध हुआ तो ये सजा बढ़कर व्यक्ति की मौत तक हो सकती है...

आप ऐसा सोच सकते हैं कि ये बिल राज्य में महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराधों का पुख्ता जवाब हैं. लेकिन 92 एक्टिविस्ट और वकीलों ने महाराष्ट्र सरकार को लिखा खुले पत्र लिखकर इस बिल को पास किए जाने के खिलाफ आवाज उठाई है.

“मृत्युदंड को सजा के रूप में शामिल करना महिलाओं के प्रतिकूल होगा और कानून के उद्देश्यों के भी विपरीत होगा. महिला और बाल अधिकार कार्यकर्ता और स्कॉलर्स ने बार-बार कहा है कि मृत्युदंड पहले से ही खस्ताहाल में पड़े कनविक्शन रेट और केस की रिपोर्टिंग पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा..” 

नारीवादी स्कॉलर्स भी रेप के मामले में मृत्युदंड दिए जाने का विरोध करते हैं. इसके पीछे कई कारण गिनाए जाते हैं

  • पहला- डेटा से साफ है कि भारत जैसे देश में सजा बढ़ा देने से अपराध किए जाने के रेट पर कोई खास फर्क नहीं पड़ता है. लेकिन इससे सर्वावर या फिर पीड़िता के परिवार के लिए कानूनी लड़ाई और लंबी हो जाती है.
  • दूसरा- ज्यादा कठिन सजा होने की वजह से अपराधी सिर्फ रेप नहीं करते बल्कि पहचान उजागर होने के डर से पीड़िता को मार भी डालते हैं.
  • तीसरा- 95% मामलों में अपराधी पीड़ित के जान पहचान का ही होता है.. उदाहरण के लिए अगर अपराधी परिवार का सदस्य होता है.. तो कठोर सज़ा से बचने के लिए अपराध की सूचना भी नहीं दी जाती है
  • चौथा- 2000 और 2015 के बीच 16 साल में, निचली अदालतों के सुनाए गए मौत की सजा मामले में उच्च न्यायालयों में अपील किए जाने पर 30% बरी (सिर्फ़ सज़ा ही कम नहीं की गई) हो गए (स्रोत: द वायर)
  • पांचवा और सबसे जरूरी: महिलाओं का 'सम्मान' और बलात्कार जुड़े हुए नहीं हैं.. 2018 में एक बयान में, एक वुमन कलेक्टिव ने कहा:
बलात्कारियों को मौत की सजा देने का तर्क इस विश्वास पर आधारित है कि बलात्कार मौत से भी बदतर है. ‘सम्मान’ की पितृसत्तात्मक परिभाषा ही हमें यह यकीन दिलाती है कि बलात्कार से बुरा एक औरत के लिए कुछ हो ही नहीं सकता. इस ‘सम्मान खो चुकी बर्बाद औरत वाले’ और ‘यौन हिंसा का शिकार होने के बाद इसकी समाज में कोई जगह नहीं’ जैसे रूढ़िवादी विचार को कड़ी चुनौती देने की जरूरत है.

भारत की नीतियां महिलाओं के खिलाफ अपराधों को रोकने के लिए मानसिकता को सही करने के बारे में बात नहीं करती हैं. हम केवल 'अब क्या' के बारे में बात करते हैं जब अपराध पहले से ही हो चुका होता है

बलात्कार को रोकने के लिए भारतीय ये समझना नहीं चाहते हैं कि ऐसा क्यों होता है, लेकिन वो सर्वाइवर या पीड़ित को शर्मसार करने के लिए आगे आ जाते हैं

हम मौजूदा कानूनों को बेहतर तरीके से लागू नहीं करना चाहते हैं, लेकिन ऐसे कठोर कानूनों के बारे में सवाल करते हैं जो उससे भी कम लागू हों. निर्भया गैंगरेप में भले ही चार दोषियों को फांसी की सजा सुना दी गई हो, लेकिन वास्तव में न्याय के लिए - महिलाओं के खिलाफ अपराधों की रोकथाम से असली फर्क पड़ेगा न की सिर्फ सजा से..

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