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मंगलवार 18 जुलाई 2023 को सभी की निगाहें विपक्ष और एनडीए की बैठकों पर थीं, एक तरफ बेंगलुरु में 26 विपक्षी दल एक साथ आए और INDIA (इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस) के गठन की घोषणा की. वहीं दूसरी ओर, बीजेपी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) में 38 दल उपस्थित थे.
मतलब ये हुआ कि देश की 64 पार्टियों ने अपना कुंबा चुन लिया है, 2024 लोकसभा चुनाव के लिए दोनों ही ग्रुप तैयारी में जुट गई हैं, लेकिन देश की कई ऐसी प्रमुख पॉलिटिकल पार्टियां हैं जो इन दोनों गुट की गुटबाजी से अलग हैं.
चलिए आपको बतातें हैं कौन-कौन सी पार्टियां हैं जो किसी भी गठबंधन का हिस्सा फिलहाल नहीं हैं.
मायावती 'एकला चलो' की राह पर हैं. मायावती के नेतृत्व वाली BSP कभी भी एनडीए का हिस्सा नहीं रही है, लेकिन फिलहाल वो INDIA यानी इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस में शामिल नहीं है.
हालांकि 2014 में उत्तर प्रदेश में जीरो सीट जीतने वाली बीएसपी को 2019 लोकसभा चुनाव में समाजवादी साइकिल की सवारी रास आई थी. समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन हुआ तो बीएसपी को यूपी में जीरो से 10 सीटों पर जीत हासिल मिल गई. हालांकि वो गठबंधन चुनाव बाद टिक न सका.
बीएसपी ने पिछले कुछ वक्त पहले ही अपना स्टैंड साफ कर दिया था कि वो किसी भी पक्ष का हिस्सा नहीं बनने जा रही है, साथ ही उसे कोई निमंत्रण भी नहीं मिला है.
वहीं अगर बीएसपी की ताकत की बात करें तो सियासी आधार उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि देशभर के राज्यों में भी बीएसपी कमजोर होती गई है. दलित वोट बैंक भी मायावती से छिटक चुका है. वहीं बीएसपी की विरोधी समाजवादी पार्टी विपक्षी INDIA गठबंधन का हिस्सा है ऐसे में बीएसपी फिर एसपी के साथ गठबंधन के मूड में नहीं है. शायद इसलिए भी उसने INDIA में आने की कोशिश ना की हो और शायद मायावती के रुख को देखते हुए भी INDIA वालों ने उन्हें निमंत्रण नहीं भेजा हो.
कर्नाटक की जेडी (एस) पहले कांग्रेस और बीजेपी के साथ गठबंधन का हिस्सा रही है, लेकिन 18 जुलाई को जेडी (एस) के सबसे बड़े चेहरे एचडी देवगौड़ा और एचडी कुमारस्वामी दोनों में से किसी भी गठबंधन की बैठक में नहीं दिखे.
हालांकि एक बार फिर चर्चा है कि साल 2023 कर्नाटक विधानसभा चुनाव में बुरी हार और चुनाव में मुस्लिम वोटर का कांग्रेस की तरफ झुकाव को देखते हुए जेडीएस बीजेपी के साथ पूर्ण गठबंधन पर विचार कर रही है.
इसके अलावा जेडीएस का बीजेपी के साथ जाने की अटकलों के पीछे एक अहम वजह ये है कि दक्षिण कर्नाटक जोकि जेडीएस का गढ़ माना जाता है वहां कांग्रेस से उसका असल मुकाबला रहा है, जिस वजह से जेडीएस का झुकाव एनडीए की ओर हो सकता है. हालांकि कर्नाटक के पूर्व सीएम और जेडी (एस) नेता एचडी कुमारस्वामी ने हाल ही में कहा था कि किसके साथ गठबंधन करेंगे, यह तय करना जल्दबाजी होगी. मतलब फिलहाल जेडीएस वेट एंड वॉच के मूड में है.
बीजेपी के पाले में वापस लौटने की अफवाहों के बावजूद शिरोमणि अकाली दल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली NDA की बैठक से दूर रहा. वहीं शिरोमणि अकाली दल ने विपक्ष की बैठक का हिस्सा भी नहीं बनने का फैसला किया.
शिरोमणि अकाली दल का एनडीए में वापसी न करने के पीछे की एक वजह किसान आंदोलन माना जा रहा है. क्योंकि शिरोमणि अकाली दल ने तीन कृषि कानूनों के खिलाफ जाकर सितंबर 2020 में एनडीए से अपना रिश्ता तोड़ लिया था. वहीं बीजेपी ने भी ऐलान किया था कि वो पंजाब की 13 लोकसभा सीटों पर अकेले चुनाव लड़ेगी.
शिरोमणि अकाली दल के विपक्षी गठबंधन का हिस्सा नहीं बनने के पीछे की एक अहम वजह कांग्रेस और आम आदमी पार्टी भी है. क्योंकि पंजाब में शिरोमणि अकाली दल का मुकाबला आप और कांग्रेस से ही है.
जब विपक्षी एकता के लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार देशभर में घूम रहे थे तब ही ओडिशा के मुख्यमंत्री और बीजेडी प्रमुख नवीन पटनायक से उनकी मुलाकात हुई थी. उस मुलाकात के तुरंत बाद ही नवीन पटनायक ने साफ कर दिया था कि उनकी पार्टी विपक्षी गठबंधन का हिस्सा नहीं रहेंगी. हालांकि पीएम मोदी से उनकी मुलाकात के बाद अटकलें लगाई जा रही थीं कि वो एनडीए का हिस्सा हो सकते हैं, लेकिन उन्होंन फिर साफ कर दिया था कि बीजेडी लोकसभा और विधानसभा में अकेले चुनाव लड़ेगी जैसा कि उसने 'हमेशा' किया है.
हालांकि बीजेपी से नवीन पटनायक की करीबी भी देखी गई है जिसका नतीजा ये रहा था कि 2019 में, बीजेडी ने बीजेपी के लिए एक राज्यसभा सीट छोड़ दी थी. इसी सीट से ब्यूरोक्रेट से नेता बने अश्विनी वैष्णव चुनाव जीते थे और अब रेल मंत्री हैं. लेकिन फिलहाल अब बीजेपी ओडिशा में बीजेडी की मुख्य प्रतिद्वंद्वी है.
नवीन पटनायक की राजनीतिक ताकत की बात करें तो लोकसभा में उनके 12 सांसद हैं. और मौजूदा समय में राज्य की 146 विधानसभा सीटों में से 112 सीट बीजेडी के पास है.
असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाली एआईएमआईएम भी न 'INDIA' गुट का हिस्सा है और न ही NDA का.
बता दें कि भले ही विपक्षी दलों ने अपनी बैठक में ओवैसी को नहीं बुलाया हो लेकिन AIMIM पहले कांग्रेस की सहयोगी थी. आंध्र प्रदेश के विभाजन के बाद से यह तेलंगाना के मुख्मंत्री केसीआर के साथ आ गए.
AIMIM बीजेपी और कांग्रेस दोनों पर ही हमलावर रहती है, साथ ही दोनों पर मुसलमानों के साथ पक्षपात करने का आरोप भी लगाती है. वहीं कांग्रेस एआईएमआईएम को बीजेपी की बी पार्टी कहती है.
बीजेपी की नीतियों को आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी के नेतृत्व वाली वाईएसआर कांग्रेस पार्टी यानी युवाजना श्रामिका रैतु कांग्रेस पार्टी का समर्थन मिलता रहा है. लेकिन राज्य स्तर पर YSRCP ने बीजेपी से कुछ दूरी बनाए रखी है.
जगन की ताकत की बात करें तो आंध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड्डी की सरकार है. 2019 में हुए विधानसभा चुनाव में 175 सीटों में से जगन की पार्टी ने 151 सीटों पर जीत हासिल की थी. जोकि पिछले चुनाव से 84 सीटें ज्यादा थीं. फिलहाल क्षेत्रीय पार्टियों में तुलना की जाए तो लोकसभा में YSRCP के 22 सांसद हैं. ऐसे में भले ही वह एनडीए में शामिल न हों, लेकिन कई मुद्दों पर मोदी सरकार का समर्थन करते रहे हैं.
विपक्ष और एनडीए की बैठक में तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव यानी केसीआर के नेतृत्व वाले बीआरएस की गैर मौजूदगी कोई चौंकाने वाली बात नहीं है. तेलंगाना में इस साल चुनाव होने हैं और कांग्रेस वहां प्रमुख प्रतिद्वंद्वी है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी पहले स्पष्ट कर दिया है कि केसीआर बैठक का हिस्सा नहीं होंगे, उन्होंने बीआरएस पर बीजेपी की "बी टीम" होने का आरोप लगाया था.
वहीं बीजेपी भी अपने आउटरीच कार्यक्रमों के माध्यम से तेलंगाना में पैठ बनाने की रणनीति बना रही है.
इन सबके अलावा केसीआर ने भी बीजेपी की केंद्रीय नीतियों के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया है और उस पर संघवाद को कमजोर करने का आरोप लगाया है.
राजनीतिक ताकत की बात करें तो तेलंगाना की 119 विधानसभा सीटों में 88 पर बीआरएस के विधायक हैं, वहीं पिछले चुनाव में केसीआर ने 63 सीटें जीती थी. वहीं लोकसभा में केसीआर के 9 सांसद भी हैं.
बदरुद्दीन अजमल की एआईयूडीएफ को एनडीए की बैठक में निमंत्रण न मिलना स्वाभाविक है क्योंकि असम में बड़े पैमाने पर मुस्लिम समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाली पार्टी बीजेपी और उसकी नीतियों की जानी-मानी आलोचक है. हालांकि, विपक्ष की बैठक में भी AIUDF को आमंत्रित नहीं किया गया था.
अजमल और नीतीश की मीटिंग के बाद अब यह माना जा रहा था कि एआईयूडीएफ 2023 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी विरोधी महागठबंधन का हिस्सा होगी. लेकिन AIUDF को न ही पटना में हुई विपक्षी बैठक में बुलाया गया न ही बेंगलुरु में. इसकी वजह कांग्रेस के साथ उसका रिश्ता हो सकता है. दोनों दलों ने 2021 असम विधानसभा चुनाव एक साथ लड़ा था, फिर भी बीजेपी को सत्ता में आने से रोक नहीं पाए थे. जिसके बाद से दोनों के बीच रिश्ते तनावपूर्ण हैं.
बता दें कि असम में, AIUDF के 16 विधायक और एक सांसद हैं. AIUDF और AIMIM को विपक्षी गठबंधन में नहीं शामिल करन पर अब सवाल उठ रहे हैं कि क्यों कांग्रेस की 'INDIA' में मुसलमान वोट बैंक का टैग लगी पार्टियों की जगह नहीं दी गई है जब्कि हिंदुत्ववादी शिवसेना इस गठबंधन में शामिल है.
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