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ब्रिटेन से भी बड़ा जमीन का एक टुकड़ा बाढ़ में डूबा. 1300 से ज्यादा लोग मर चुके हैं. हजारों लोग घायल हैं, करीब साढ़े तीन करोड़ लोग प्रभावित हुए हैं. हजारों गांव पूरी तरह जलमग्न हो चुके हैं. ये कहानी है पाकिस्तान में आई भयानक बाढ़(Pakistan Floods) की और उसपर पाकिस्तानी सरकार के भयानक झूठ की.
पाकिस्तान सरकार की क्लाइमेट चेंज मिनिस्टर शेरी रहमान ने बाढ़ को लेकर कहा कि मानसून की अधिक बारिश की वजह से एक तिहाई पाकिस्तान बाढ़ का सामना कर रहा है. मिनिस्टर शेरी रहमान ने इसे मॉन्स्टर मानसून बताया और कहा कि ये बाढ़ ‘अभूतपूर्व’ है
इसमें कोई संदेह नहीं कि ये बाढ़ बड़े पैमाने पर थी, लेकिन ये न तो अति भयंकर थी न ही अभूतपूर्व.
12 साल पहले ही पाकिस्तानियों ने ऐसी त्रासदी को देखा है. जब भयंकर मानसूनी बारिश की वजह से करीब 2000 लोगों की मौत हुई थी, करोड़ों लोग प्रभावित हुए थे. और यही क्षेत्र जो इस बार भी बाढ़ की चपेट में आया 2010 में भी जलमग्न था. इसमें खैबर पख्तूनख्वा, सिंध, पंजाब और बलूचिस्तान शामिल है. लेकिन सरकार ने इन 12 सालों में ऐसी आपदा से निपटने के लिए न के बराबर काम किया है.
WHO ने पाकिस्तान की इस बाढ़ को ग्रेड 3 इमरजेंसी बताया है. ग्रेड 3 इमरजेंसी UN के इंटरनल ग्रेडिंग सिस्टम की सबसे खतरनाक ग्रेड है.
एक्सपर्ट्स का मानना है पाकिस्तान में इस तरह की आपदा फिर से आ सकती है और इसकी वजह है-
जलवायु परिवर्तन
खराब शासन
बुनियादी ढांचे की कमी
तकनीकी और भू-रणनीतिक मुद्दों पर लिखने वाले जियो-साइंस प्रोफेशनल डॉ. असिम यूसुफजई लिखते हैं-
2 महीने पहले ही वाशिंगटन पोस्ट में लिखे एक लेख में पाकिस्तान के वरिष्ठ पत्रकार हामिद मीर ने लिखा था- “Climate Change is a bigger threat to Pakistan than terrorism” मतलब 'पाकिस्तान को आतंकवाद से ज्यादा जलवायु परिवर्तन से खतरा है.'
लेकिन पाकिस्तान में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए नीतियों का कोई सिलसिला एक सरकार से दूसरी सरकार तक नहीं है. जलवायु परिवर्तन के खतरों से निपटने को लेकर पाकिस्तान की प्रतिक्रिया काफी निराशाजनक रही है.
महत्वाकांक्षी राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन नीति को मार्च 2013 में लॉन्च किया गया था, लेकिन लॉन्च के ठीक बाद इसे स्थगित कर दिया गया था. पाकिस्तान में जलवायु मंत्रालय के लिए कोई बजट आवंटन नहीं है, यह अब तक उसी बिल्डिंग में है जहां 2012 में था.
डॉ. असिम यूसुफजई लिखते हैं-
“पाकिस्तान को जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय गिरावट के प्रतिकूल प्रभावों के कारण 24 बिलियन यूएस डालर का सालाना नुकसान होता है. ये बात जाहिर है कि पाकिस्तान सैन्य बजट पर काफी खर्च करता है लेकिन जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए स्थानीय रणनीति तैयार करने पर उस राशि का एक अंश खर्च करने से पाकिस्तान जैसे विकासशील देश को बहुत बड़ा लाभ प्राप्त हो सकता है.”
इस भयंकर बाढ़ और पाकिस्तान के झूठ से हो रही त्रासदी यहीं नहीं रुकने वाली. आगे भी पाकिस्तान के लिए चुनौतियां बहुत हैं.
डॉ. असिम यूसुफजई लिखते हैं-
“बाढ़ की वजह से पाकिस्तान को पावर लाइन का भारी नुकसान हुआ है.जल विद्युत उत्पादन में दिक्कत है क्योंकि जलाशयों में पहले से ही गाद भरी हुई है. ऊर्जा की कमी को दूर करने का एकमात्र विकल्प वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत है.जल असीमित संसाधन नहीं है; मीठे पानी के जलस्रोत गंभीर दबाव में हैं, अगले सात वर्षों में पाकिस्तान पानी की कमी वाला देश बन जाएगा.
हिंद महासागर की समुद्री सतह का तापमान दुनिया के बाकी महासागरों की तुलना में कहीं अधिक तेज गति से बढ़ रहा है, जिससे मानसून पैटर्न बदल रहा है. इससे खारे पानी की घुसपैठ नामक एक और जियोलॉजिक खतरा पैदा होगा. इस परिदृश्य में समुद्र का खारा पानी धीरे-धीरे सिंध और बलूचिस्तान तट के किनारे मीठे पानी के जलाशयों की जगह लेगा, जिसका प्रभाव पेयजल आपूर्ति पर पड़ेगा.
पाकिस्तान में 7000 से अधिक ग्लेशियर हैं, इससे कोई भी बड़ा खतरा पैदा हो सकता है. अट्टाबाद झील की घटना ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड से शुरू हुई थी. बाढ़, सूखा और मरुस्थलीकरण की वजह से पहले से ही पूरे मुल्क में गरीब किसानों की आजीविका पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है.”
पाकिस्तान की ये त्रासदी, खुद पाकिस्तान के लिए तो फिर से एक सबक है ही. लेकिन उन देशों के लिए भी चेतावनी है जो जलवायु परिवर्तन को लेकर असंवेदनशील हैं. जरूरत है कि हम जलवायु परिवर्तन के खतरे को गंभीरता से लें और इससे निपटने के लिए बेहतर दीर्घकालिक रणनीति बनाए.
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