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केंद्र सरकार को झटका देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पेगासस जासूसी मामले (Pegasus Snoopgate) में स्वतंत्र जांच की मांग वाली याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए जांच के लिए तीन सदस्यीय कमेटी गठित करने का आदेश दिया है. कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए ये भी कहा कि लोगों की जासूसी किसी भी कीमत पर मंजूर नहीं की जा सकती.
पेगासस मामले की जांच के आदेश देकर सुप्रीम कोर्ट ने एक नजीर पेश की है. इससे पहले के मामलों में देखें तो पता चलता है कि सरकार जिन मामलों में राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देती है, उन मामलों पर सुप्रीम कोर्ट भी ज्यादा जोर नहीं देता, और रफाल विमान, जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट बैन पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी इसके कुछ उदाहरण हैं.
सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय टेक्नीकल कमेटी में गांधीनगर स्थित नेशनल फॉरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी के डीन, डॉ. नवीन कुमार चौधरी, केरल स्थित अमृत विश्व विद्यापीठम के प्रोफेसर, डॉ. प्रभाकरन और IIT बॉम्बे के प्रोफेसर डॉ. अश्विन अनिल गुमस्ते हैं, जो अमेरिका की MIT के साथ भी काम कर चुके हैं.
ये कमेटी जांच करेगी कि कैसे इस स्पाइवेयर को भारतीय नागरिकों के खिलाफ इस्तेमाल किया गया. कमेटी ये भी देखेगी कि इस स्पाइवेयर को इस्तेमाल करने के लिए किसने कहा था. क्या केंद्र सरकार ने इसका इस्तेमाल किया, या राज्य सरकार या किसी प्राइवेट संस्थान ने इसे इस्तेमाल किया? क्योंकि ये स्पाइवेयर बनाने वाली इजरायली कंपनी NSO कई बार साफ कर चुकी है कि वो अपना पेगासस स्पाइवेयर केवल सरकारों को बेचती है. इसलिए ही इस मामले में सरकार पर सवाल उठ रहे हैं.
इजरायली स्पाईवेयर पेगासस के जरिए भारत के कई नेताओं, पत्रकार, समाजिक कार्यकर्ताओं के कथित जासूसी का मामला सामने आया था. एक इंटरनेशनल पड़ताल में दावा किया गया है कि राहुल गांधी, प्रशांत किशोर, पूर्व चुनाव आयुक्त अशोक लवासा - सभी पेगासस के रडार पर थे. भारत के 40 पत्रकारों के फोन में झांका गया था, यहां तक कि मोदी सरकार के 2 मंत्री भी घेरे में थे.
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