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वीडियो एडिटर: विशाल कुमार
WhatsApp ने इस बात की पुष्टि की है कि इजरायल की साइबर खुफिया कंपनी एनएसओ ग्रुप की ओर से भारतीय मानवाधिकार कार्यकर्ता और पत्रकारों की जासूसी की गई. आरोप है कि एनएसओ ग्रुप ने दुनिया भर में WhatsApp का इस्तेमाल करने वाले करीब 1,400 लोगों के मोबाइल फोन में ‘पैगेसस’ नाम का स्पाइवेयर पहुंचा, उनकी जासूसी की और अहम जानकारी चुराने की कोशिश की. अब ये कितना बड़ा खतरा है ये जानने के लिए क्विंट ने सुप्रीम कोर्ट के वकील और इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर अपार गुप्ता से बातचीत की.
अपार का कहना है किऐसे सॉफ्टवेयर से स्मार्टफोन को पूरी तरह से अपने कंट्रोल में किया जा सकता है.
एनएसओ के इस दावे पर कि वो अपनी सारी जानकारी सरकारों को बेचता है, गुप्ता ने कहा, “ये सवाल उठाता है कि क्या सरकार ने स्पाईवेयर खरीदे और इसका इस्तेमाल किया क्योंकि इसे WhatsApp नंबर पर एक साधारण मिस्ड कॉल के जरिये आसानी से इंस्टॉल किया जा सकता है. स्पाईवेयर को कॉन्टैक्ट्स, कॉल लॉग्स का पूरा एक्सेस मिल सकता है और ये कॉल रिकॉर्डिंग डिवाइस पर स्विच भी कर सकता है. ”
जहां तक इस जासूसी से जुड़े कानूनी पहलू का सवाल है, गुप्ता ने कहा कि 2017 में, सुप्रीम कोर्ट ने निजता को मौलिक अधिकार बताया जो ऐसे मामलों में न्यायिक निगरानी को जरूरी बनाता है.
लेकिन भारत में सर्विलेंस कानून 2 दशक पहले बनाए गए थे और ये लैंडलाइन फोन के लिए बनाए गए थे. ये कानून निजता को सुरक्षित नहीं बनाते.
सरकार को सर्विलेंस कानून को देखने की जरूरत है. साथ ही सरकार ये बताए कि उन्होंने ‘पैगेसस’ सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया है या नहीं? और कैसे इस्तेमाल किया है ताकि इन मामलों पर भविष्य में नजर रखी जा सके और इन घटनाओं को रोका जा सके.
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