Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Videos Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News videos  Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019मोदी सरकार के आर्थिक सुधारों का रिपोर्ट कार्ड : पार्ट 2

मोदी सरकार के आर्थिक सुधारों का रिपोर्ट कार्ड : पार्ट 2

मैं यहां इजरायल के 10 स्मार्ट बम की तरह खटाखट आंकड़े पेश कर रहा हूं, जो सर्जिकल स्ट्राइक की तरह ही हैं.

राघव बहल
न्यूज वीडियो
Published:
(फोटो:क्विंट हिंदी)
i
null
(फोटो:क्विंट हिंदी)

advertisement

इस लेख के पहले हिस्से में मैंने मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के चार आर्थिक सुधारों का विश्लेषण किया था. मेरी नजर में इस सरकार ने इतने ही रिफॉर्म किए हैं. उस लेख के आखिर में मैंने तीन आंकड़ों- प्रत्यक्ष विदेशी निवेश यानी एफडीआई, बॉन्ड और इक्विटी से जुटाई गई रकम का जिक्र किया था.

पीएम मोदी हर बिजनेस सम्मेलन में इनके आंकड़ों का हवाला देकर ‘इकनॉमिक डायनामिज्म’ पर खुद को शाबाशी देते रहते हैं. मैं इन पर माननीय प्रधानमंत्री से इत्तेफाक नहीं रखता, लेकिन उन्हें आंकड़ों का खेल दिलकश लगता है.

इसलिए मैं यह खेल उनके बनाए नियमों के हिसाब से खेल रहा हूं. लेख के दूसरे हिस्से में मैं बता रहा हूं कि अर्थनीति को लेकर उन्होंने कौन सी बड़ी गलतियां की हैं.

मैं यहां इजरायल के 10 स्मार्ट बम की तरह खटाखट आंकड़े पेश कर रहा हूं, जो सर्जिकल स्ट्राइक की तरह ही है. ये रहे आंकड़े:

1. वास्तविक ब्याज दर

2014 के बाद से यह काफी ऊंचे स्तर पर है. यूपीए के समूचे 10 साल के कार्यकाल में वास्तविक ब्याज दर 5 पर्सेंट से कम थी, जो अच्छी है. मोदी राज में यह 9-11 पर्सेंट के लाल निशान से ऊपर पहुंच गई.

कम महंगाई दर के बावजूद वास्तविक ब्याज दर के ऊंचा होने का मतलब है कि सरकार ने देश की घरेलू बचत में सेंध लगाई, ब्याज दरों को ऊंचा बनाए रखा, जिससे प्राइवेट इनवेस्टमेंट के लिए फंड कम पड़ गया.

2. कमजोर कंज्यूमर डिमांड

महंगे कर्ज ने कंज्यूमर डिमांड का भी गला घोंट डाला. इस साल फरवरी में रिटेल ऑटो सेल्स यानी गाड़ियों की बिक्री पिछले साल के इसी महीने से 8 पर्सेंट कम रही. देश के कार बाजार में 50 पर्सेंट हिस्सेदारी रखने वाली मारुति को कमजोर मांग के कारण मार्च में प्रॉडक्शन 27 पर्सेंट घटाना पड़ा.

यहां तक कि दोपहिया कंपनियों को भी उत्पादन में 15 पर्सेंट सालाना की कटौती करनी पड़ी. ट्रैक्टर-ट्रकों की बिक्री में भी रिवर्स गियर लगा और ट्रक सेल्स तो 20 पर्सेंट से अधिक गिर गई. जनवरी में भारत में हवाई जहाज से यात्रा करने वालों की संख्या दोहरे अंकों में घटी.

2014 के बाद से एक्सपोर्ट का बेड़ा गर्क है. अजीब बात है कि मोदी सरकार पांचवें साल में जाकर ही इस मामले में यूपीए से आगे निकल पाई. वित्त वर्ष 2014 में यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान 313 अरब डॉलर के निर्यात का रिकॉर्ड बना था. मोदी राज में अब जाकर यह 330 अरब डॉलर हुआ है.

3. कोर सेक्टर की ग्रोथ खस्ताहाल

आठ महत्वपूर्ण उद्योगों- बिजली, स्टील, रिफाइनरी प्रॉडक्ट्स, कच्चा तेल, कोयला, सीमेंट, नेचुरल गैस और फर्टिलाइजर- की ग्रोथ 18 महीने के निचले स्तर पर पहुंच गई है.

4. कंपनियों की प्रॉफिट ग्रोथ पांच तिमाहियों में सबसे कम

दिसंबर 2018 तिमाही के कंपनियों के नतीजों के बाद मार्केट एनालिस्टों ने 253 लिस्टेड कंपनियों में से 151 के अर्निंग पर शेयर (EPS) यानी प्रति शेयर मुनाफे का अनुमान घटा दिया है.

यूपीए के कार्यकाल में लीमैन ब्रदर्स के दिवालिया होने के बाद 2008-09 की निगेटिव ईपीएस ग्रोथ को छोड़ दें तो कंपनियों के मुनाफे में शानदार बढ़ोतरी हुई थी. कई साल तक तो यह 20 पर्सेंट से ऊपर थी.

मोदी राज में लगातार दो साल तक ईपीएस ग्रोथ निगेटिव रही और अन्य वर्षों में यह बमुश्किल 10 पर्सेंट से अधिक रही है.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

5. लहूलुहान बैंक

मोदी सरकार ने 2015 में आरबीआई को बैंकों के लोन एकाउंट्स की पड़ताल की इजाजत दी, जिसका श्रेय उसे मिलना चाहिए. इससे विकराल बैड लोन की समस्या का पता चला. मोदी के कार्यकाल के दौरान बैड लोन चार गुना बढ़कर 10.6 लाख करोड़ यानी बैंकों की कुल संपत्ति के 11.6 पर्सेंट तक पहुंच गया.

इसमें से 3.4 लाख करोड़ बट्टे खाते में डाले जा चुके हैं, लेकिन इसके बावजूद ग्रॉस एनपीए इस महीने 10.3 पर्सेंट रहने वाला है. 2015 की तुलना में आज नॉन-फूड क्रेडिट कम है.

पब्लिक सेक्टर बैंकों की फंडिंग करने में सरकार झिझक रही है. वह उन्हें किस्तों में पैसा दे रही है. इससे बैड लोन की समस्या बहुत लंबी खिंच गई है.

अगर मोदी ने पहले साल में बैंकों की बैलेंस शीट को दुरुस्त कर दिया होता तो देश के ज्यादातर आर्थिक मसले खत्म हो गए होते.

6. पब्लिक सेक्टर कंपनियों (CPSE) को बदहाल किया गया

मोदी सरकार ने सीपीएसई को शेयर बायबैक के लिए मजबूर किया ताकि उनके पास जो कैश पड़ा है, वह सरकार के पास आ जाए. बदकिस्मती से इससे भारी संपत्ति का नुकसान हुआ है. इन सभी कंपनियों के शेयर, बायबैक प्राइस से 17-54 पर्सेंट नीचे ट्रेड कर रहे हैं.

पिछले दो साल में लिस्टेड सीपीएसई की मार्केट वैल्यू 13 पर्सेंट घटी है, जबकि इस दौरान ओवरऑल मार्केट वैल्यू में 21 पर्सेंट का इजाफा हुआ.

बुरी बात यह है कि सरकार ने इन कंपनियों के कैश सरप्लस पर डाका डाला. मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद सीपीएसई के कैश में 40 पर्सेंट यानी 1 लाख करोड़ रुपये की गिरावट आ चुकी है.

इसका अप्रत्याशित और खतरनाक अंजाम यह हुआ कि बीएसएनएल जैसी ‘नवरत्न’ कंपनी भी इस साल एंप्लॉयीज को समय पर सैलरी नहीं दे पाई. यहां तक कि एमटीएनएल को भी सैलरी देने के लिए सरकार से 171 करोड़ रुपये की भीख मांगनी पड़ी और एचएएल को इस बेइज्जती से बचने के लिए बैंकों से 1,000 करोड़ रुपये का उधार लेना पड़ा.

सरकार की दिवालिया एयर इंडिया को बेचने की कोशिश भी फेल हो गई. इन सबसे पता चलता है कि कैसे एक के बाद एक सीपीएसई को आईसीयू में भेजा जा रहा है.

7. बेजान शेयर बाजार

हाल की तेजी को छोड़ दें तो शेयर बाजार पस्त पड़ा हुआ था. 364 इक्विटी म्यूचुअल फंड स्कीम्स का एक साल का रिटर्न माइनस में था और 78 ने अपने निवेशकों को 10 पर्सेंट का निगेटिव रिटर्न दिया था.

इस वजह से प्योर इक्विटी स्कीम्स में निवेश 25 महीने के निचले स्तर पर आ गया है. मोदी नैरेटिव के लिए यह बड़ा झटका है कि यूपीए 1 में निफ्टी ने सालाना 29.6 पर्सेंट, यूपीए 2 में 20.7 पर्सेंट का रिटर्न दिया, जबकि 2014-18 तक इसमें सालाना 11.6 पर्सेंट की ही बढ़ोतरी हुई. हे राम!

8. प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) में भी फिसड्डी

एफडीआई का सच भी चुभने वाला है. मोदी सरकार एफडीआई समर्थक नीतियों का बखान करते नहीं अघाती, लेकिन यूपीए के 10 साल के कार्यकाल के 10.7 पर्सेंट की तुलना में मोदी राज में इसमें 8.7 पर्सेंट की ही बढ़ोतरी हुई है. जीडीपी के अनुपात में यह वित्त वर्ष 2009 के 3.4 पर्सेंट के शिखर से वित्त वर्ष 2019 में 2.3 पर्सेंट पर आ गया है.

जुमलेबाजी पर ध्यान न दें तो पता चलेगा कि इस वित्त वर्ष में एफडीआई में 7 पर्सेंट की गिरावट आई है. इसमें जहां सर्विसेज सेक्टर का प्रदर्शन अच्छा रहा है, वहीं ‘मेक इन इंडिया’ के शोर के बावजूद मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में विदेशी निवेशक पैसा नहीं लगा रहे.

वित्त वर्ष 2016 और 2017 में से हरेक साल दवा उद्योग में 1 अरब डॉलर से कम का एफडीआई आया, जो वित्त वर्ष 2015 के 1.5 अरब डॉलर से कम है. ऑटो सेक्टर में वित्त वर्ष 2016 में 2.6 अरब डॉलर का एफडीआई आया था, जो 2017 में 1.6 अरब डॉलर रह गया. खुदा खैर करे कि ई-कॉमर्स सेक्टर में 8 अरब डॉलर का एफडीआई आ गया, नहीं तो मुंह छिपाना भी मुश्किल होता.

9. कृषि संकट

मोदी राज में यह नासूर बन गया है. कृषि क्षेत्र की ग्रोथ 2.7 पर्सेंट के साथ 11 तिमाहियों के निचले स्तर पर पहुंच गई. इससे भी बुरी बात यह है कि फूड प्राइसेज में गिरावट के कारण किसानों की वास्तविक आमदनी सिर्फ 2.04 पर्सेंट बढ़ी, जो पिछले 14 साल में सबसे कम इनकम ग्रोथ है. यूपीए 2 में कृषि क्षेत्र की सालाना ग्रोथ 4.3 पर्सेंट थी, जबकि मोदी राज में यह सिर्फ 2.9 पर्सेंट रही है.

10. आखिर में नौकरियों की बात!

इसके आंकड़े वाकई डराने वाले हैं. रोजगार नहीं मिलने से तंग आकर करीब 2 करोड़ पुरुष घर बैठ गए, जबकि बेरोजगारी दर 6.1 पर्सेंट के साथ 45 साल में सबसे अधिक हो गई. उफ, उफ, उफ!

चलिए, मैं सरकार के जख्मों पर और नमक नहीं छिड़कता. मैं इसकी याद नहीं दिलाऊंगा कि जीडीपी ग्रोथ 6 तिमाहियों के निचले स्तर पर है. सेहत के पैमाने पर हम नेपाल, श्रीलंका और बांग्लादेश से भी बदतर स्थिति में हैं और हैपीनेस इंडेक्स में भी हम फिसल गए हैं...बस अब मैं यहीं रुक जाता हूं.

ये आर्टिकल इंग्लिश में पढ़ें: Modi Must Improve These 10 Economic Stats If He Returns to Power

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT