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मणिरत्नम (Mani Ratnam) की पोन्नियिन सेल्वन-1 (Ponniyin Selvan-1) जवाबों से अधिक सवालों पर खत्म हुई थी, जो कि इसके सीक्वल की ओर एक इशारा था. चोल वंश के राजकुमार अरुलमोझी वर्मन (Jayam Ravi) और उनके सिपहसालार वंदियादेवन (Karthi) पंड्या हमलावरों के हमले के बाद समुंद्र में डूब जाते हैं. एक बुजुर्ग महिला उनकी जान बचाने के लिए आती है. वो महिला पझुवूर की रानी नंदिनी (Aishwarya Rai Bachchan) की हमशक्ल लगती है.
फिल्म का दूसरा पार्ट वहां से शुरू नहीं होता जहां पहला पार्ट खत्म हुआ था. बल्कि दूसरा पार्ट दर्शकों को और पीछे लेकर जाता है, जब नंदिनी एक बच्ची थी. हमें युवा नंदिनी (Sara Arjun) और आदित्य करिकालन (Santosh Sreeram) के बीच पनपते प्रेम की झलक देखने को मिलती है. हालांकि परिस्थितियां बदल जाती हैं और दोनों अलग हो जाते हैं. नंदिनी बदले की भावना लिए बड़ी होती है.
राय अपनी दोहरी भूमिका में और विक्रम (आदित्य के किरदार में) पोन्नियिन सेल्वन-2 में अभूतपूर्व हैं. उनके दृश्यों को एक साथ बेहद अच्छी तरह से तैयार किया गया है और समान रूप से अच्छी तरह से प्रदर्शित किया गया है. ऐश्वर्या राय की बड़े पर्दे पर वापसी उनके कला के योग्य है और एक आइकन के रूप में उनकी स्थिति को और मजबूत करती है.
लेकिन जरा रुकिए, PS-2 में और भी बहुत कुछ है. चोल साम्राज्य की कमान सुंदरा चोलन (Prakash Raj) के हाथों में है. लेकिन नंदिनी के पति पेरिया पझुवेट्टायार (R Sarathkumar) तख्तापलट कर सुंदरा चोलन के चचेरा भाई मधुरंतका (Rahman) को गद्दी पर बैठाना चाहते हैं.
पहले पार्ट के मुकाबले इस फिल्म में कुंदावई (Trisha) की भूमिका कम है, लेकिन जितनी भी है उसमें तृषा ने बेहतरीन प्रदर्शन किया है. भारी संवादों के बिना बहुत कुछ व्यक्त करने की उनकी क्षमता आनंददायक है.
PS-2 का निर्माण स्तर काफी खर्चीला और बेहद भव्य है. लेकिन यह कहीं भी गैर जरूरी ढंग से भड़कीला नहीं लगता. इसका श्रेय प्रोडक्शन डिजाइनर थोटा थरानी (Thota Tharrani) और सिनेमैटोग्राफर रवि वर्मन (Ravi Varman) को देना चाहिए, जिन्होंने निर्देशक के दृष्टिकोण को समझा और उसे पर्दे पर साकार किया. फिल्म के सेकेंड हाफ में ऐश्वर्या राय एक सीन बेहद ही सुंदर है.
इस फिल्म में एक ऐसा सीन भी है जिसे देखकर आपको लगता है कि दूसरे पार्ट में पहले पार्ट के मुकाबले ज्यादा दया और करुणा का भाव है. फिल्म न केवल लालच, महत्वाकांक्षा, साजिश और आवेग में लिए गए फैसले और उसके परिणामों को दिखाती है, बल्कि यह हमें यह भी दिखाती है कि जब सब कुछ विफल हो जाता है तो क्या होता है.
PS-2 की खामी इसके रनटाइम में है. यह एक बहुत लंबी फिल्म लगती है. पहला हाफ काफी स्लो है. जो विशेष रूप से तब स्पष्ट होता है जब दूसरा हाफ रफ्तार पकड़ता है.
अक्सर बड़ी पीरियड ड्रामा फिल्मों में भव्य सेट और विलासिता देखने को मिलती है, लेकिन मणि रत्नम ने इसके बीच का रास्ता निकाला है, और ये दोनों पार्ट में देखने को मिलता है.
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