Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Videos Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News videos  Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019भूषण Exclusive: ‘इससे बुरी सरकार कभी नहीं आई,कोर्ट से उम्मीद बाकी’

भूषण Exclusive: ‘इससे बुरी सरकार कभी नहीं आई,कोर्ट से उम्मीद बाकी’

‘’इससे बुरी सरकार कभी नहींआई, कोर्ट से उम्मीद बाकी’’: प्रशांत भूषण

ऐश्वर्या एस अय्यर
न्यूज वीडियो
Published:
(फोटो: क्विंट हिंदी)
i
null
(फोटो: क्विंट हिंदी)

advertisement

वीडियो एडिटर: दीप्ती रामदास

अवमानना मामले में सुप्रीम कोर्ट में दोषी पाए जाने और 1 रुपये का जुर्माना देने की सजा पाने के बाद, एक्टिविस्ट-वकील प्रशांत भूषण ने क्विंट से न्यायपालिका, सरकार और उम्मीद नहीं छोड़ने की जरूरत पर बात की.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

क्या आपको 1 रुपए जुर्माना देने के लिए कहना आपकी सजा थी. बहुत से ऐसे लोग थे जिन्हें लगा कि आप या तो इस जुर्माने को नहीं भरेंगे या फिर आप ऐसा करना नहीं चाहेंगे. क्या आपके दिमाग में भी ऐसे विचार आए?

नहीं, ऐसा नहीं है, क्योंकि मैं जेल जाने के लिए बैचेन नहीं हो रहा था. मैंने कहा था कि अगर सजा होती है तो मैं जेल जाने के लिए तैयार था, लेकिन सजा 1 रुपए थी इसलिए मैंने जुर्माना भरने का फैसला किया.

हमने सुप्रीम कोर्ट में आपका बहुत ही विद्रोही रूप देखा है. आपके और आपके परिवार के लिए इस समय का सामना करना कैसा रहा?

मेरे परिवार के कुछ सदस्य थोड़े चिंतित थे कि क्या होगा. खासकर मेरे जेल जाने की संभावना से लेकिन मेरे पिता चिंतित नहीं थे और मैं भी चिंतित नहीं था. क्योंकि मैंने जेल जाने की संभावना को देखा था और मैंने कहा था कि ठीक है, कई लोग जेल जाते हैं, मेरे दादा-दादी स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान एक साल से ज्यादा समय तक जेल में थे. ये सभी भीमा कोरेगांव के लोग 2-2 साल से जेल में हैं. मैं उस 6 महीने का उपयोग करूंगा. यही वो अधिकतम सजा है जितना वो मुझे जेल भेज सकते हैं. मैं इस वक्त को पढ़ने के लिए इस्तेमाल करूंगा. शायद न्यायपालिका के बारे में एक किताब लिखूंगा. मैं देखूंगा कि जेल में क्या स्थिति है. वहां कुछ लोगों से मिलूंगा, देखूंगा किस तरह के लोग वहां हैं.

आपने ये भी कहा है कि 2014 से पहले गंभीर समस्याएं थीं, तो आप ये क्यों कहते हैं कि 2014 के बाद ही लोकतंत्र को खत्म करने की कोशिश की गई है?

2014 से पहले कई समस्याएं थीं. सभी तरह की समस्याएं थीं. लेकिन 2014 के बाद हमने जो देखा है, वो पूरी तरह से एक अलग क्रम है. भीड़ की हिंसा है, जिन्हें सड़कों पर कुछ भी करने की आजादी है, सोशल मीडिया पर भीड़ की हिंसा है जो आपको बलात्कार, हत्या की धमकी देते हैं. मुख्यधारा की मीडिया को संभाल लिया गया है और सांप्रदायिक नफरत फैलाने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है. झूठ फैलाने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है ताकि लोग इस बात में अंतर न कर सकें कि क्या सही है और क्या गलत. वैज्ञानिक स्वभाव और तर्क पर हमला हो रहा है. पीएम खुद सभी तरह की बकवास फैलाते रहते हैं- जलवायु परिवर्तन जैसी कोई चीज नहीं है, भगवान गणेश की सूंड़ ‘प्लास्टिक सर्जरी’ से लगाई गई थी, उनके मंत्री कहते हैं ‘गो कोरोना गो’ इससे कोरोना भाग जाएगा. ये हमारे समाज पर हमला है. 2014 के पहले तक ऐसा कुछ भी नहीं था. ये सबसे बुरी सरकार है, जो हमने इस देश में या शायद इस दुनिया में कहीं भी देखी है.

क्या संतुलन बनाने और कानून का शासन तय करने के लिए युवा वकीलों, पत्रकारों और कार्यकर्ताओं को आशा की किरण के रूप में सुप्रीम कोर्ट की ओर देखना चाहिए? क्या आपको लगता है कि सुप्रीम कोर्ट की तरफ अब किसी उम्मीद से नहीं देखने का समय आ गया है?

नहीं, मुझे ऐसा बिल्कुल नहीं लगता. अगर ऐसा होता तो मैं भी उम्मीद छोड़ देता न्यायपालिका के बारे में. मेरी आलोचना केवल इस उम्मीद में है कि सुधार होगा. हम उम्मीद नहीं छोड़ सकते. हम निंदक नहीं बन सकते. हमें इस पर काम करते रहना होगा, विशेष रूप से युवा और युवा वकील जो मुख्य स्टेकहोल्डर भी हैं. देखिए उनकी पूरी जिंदगी और उनका करियर उनके सामने है और ये इस न्यायिक व्यवस्था के सामने होने जा रहा है, तो ये न्यायिक गैर-कार्यात्मक, भ्रष्ट आदि हैं.

हाल ही में उच्च न्यायालयों ने कुछ निर्णय दिए हैं जिनके माध्यम से लोगों को वो उम्मीद मिलने लगी है. इस मायने में कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय में कफील खान के साथ या देवांगना कालिता के साथ दिल्ली उच्च न्यायालय में उनकी जमानत. क्या आपको लगता है कि असहमति के अधिकार की रक्षा करने में SC को महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए या इसे हाईकोर्ट पर छोड़ देना चाहिए?

नहीं, मुझे लगता है कि उन्हें (सुप्रीम कोर्ट) एक बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की जरूरत है. और SC को जिन चीजों की जरूरत है उनमें से एक UAPA की संवैधानिक वैधता की फिर से जांच करना है. मेरे विचार में ये पूरी तरह से असंवैधानिक कानून है. दुर्भाग्य से उन्होंने इसे संवैधानिक मान्यता दे रखा है, लेकिन मुझे लगता है कि फैसले को फिर से देखने की जरूरत है.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT