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वीडियो एडिटर: दीप्ती रामदास
ये जो इंडिया है न... फ्रीडम ऑफ़ स्पीच की यहां कीमत है? कुछ के लिए एक रुपया कुछ के लिए अनमोल!
डॉ. कफील खान से पूछिए..बोलने की आजादी की कीमत उन्होंने कई महीने जेल में रहकर चुकाई. उन्हें जेल जाना पड़ा क्योंकि अलीगढ़ के DM चन्द्र भूषण सिंह ने उन्हें गैरकानूनी तरीके से हिरासत में लेने का आदेश दिया.
डॉ. कफील खान को रिहा करने का आदेश देते हुए इलाहाबादा हाईकोर्ट ने कहा - AMU में 12 दिसंबर 2019 को दिए गए जिस भाषण के कारण डॉ. कफील खान को हिरासत में लिया गया उसमें कुछ भी ऐसा नहीं था जो हिंसा और नफरत को बढ़ाता था. उनका भाषणा अलीगढ़ में शांति और व्यवस्था के लिए खतरा नहीं था. असल में वो लोगों के बीच एकता का संदेश देने वाला भाषण था. DM ने भाषण के कुछ हिस्से को देखा और पूरे भाषण की मंशा का नजरअंदाज कर दिया.
तो क्या अलीगढ़ के DM चंद्र भूषण सिंह ने कफील खान की बोलने के अधिकार का हनन अपने आकाओं को खुश करने के लिए किया? और क्या ये सही है?
पिंजरा तोड़ एक्टिविस्ट देवांगना कलिता उनके लिए बोलने की आजादी की कीमत है तीन महीने से जेल जो अभी भी जारी है. नॉर्थ-ईस्ट दिल्ली में फरवरी में हुई हिंसा से जुड़े मामले में होईकोर्ट ने कलिता को जमानत दे दी. इस मामले में कलिता पर हत्या की कोशिश, दंगा करने और साजिश रचने के आरोप थे. लेकिन कोर्ट ने कहा कि कलिता ने सिर्फ शांतिपूर्ण प्रदर्शन में हिस्सा लिया. ये उनका अधिका है. पुलिस के पास कोई सबूत नहीं है कि कलिता ने नफरती भाषण दिया, या हिंसा भड़काई. उनका उत्पीड़न बंद होना चाहिए, उनकी जिल्लत बंद होनी चाहिए. उनकी अवैध हिरासत खत्म होनी चाहिए.
इसलिए कलिता की तरह सरकार की आलोचना करने वाले कई लोग UAPA के तहत गिरफ्तार किए गए हैं, और शायद UAPA लगाने की वजह यही है कि इनके खिलाफ कोई सबूत नहीं है, जो कोर्ट में ठहरेंगे.
इस तरह से बोलने की आजादी को कुचलना, क्या ये सही है?
अब सुदर्शन टीवी के हेड सुरेश चव्हाणके की बोलने की आजादी की क्या कीमत है? कुछ नहीं. तब भी नहीं जब वो हेट स्पीच दे रहे हों. कुछ दिन पहले चव्हाणके ने नया जुमला फेंका नौकरशाली जिहाद. उन्होंने कहा कि जामिया के जिहादी जल्द ही कलेक्टर बन जाएंगे, मंत्रालयों में सचिव बन जाएंगे. ऐसा इसलिए क्योंकि जामिया के 30 स्टूडेंट्स ने इस साल UPSC की परीक्षा पास की है. चव्हाणके ने इन स्टूडेंट्स की कामयाबी को इस्लामि साजिश का रंग दे दिया. नंबर बनेगा ये सोचकर चव्हाणके ने नौकर शाही जिहाद पर अपने ट्वीट में पीएम और RSS को टैग भी किया.
हां जेल जिहाद में मुस्लिम जरूर आगे हैं. तभी तो कुल विचाराधीन कैदियों में मुस्लिम 17% हैं और सजायाफ्ता कैदियों में भी मुस्लिमों की इतनी ही तादाद है. और जो हजारों मुस्लिम सैनिक सेना में अपनी सेवा दे रहे हैं, उन्हें चव्हाणके क्या कहेंगे....फौजी जिहाद? और इसरो में अब्दुल कलाम के काम को क्या कहेंगे, ISRO जिहाद?
सीनियर गोदी मीडिया जर्नलिस्ट सुधीर चौधरी ने तो जिहाद का पूरा चार्ट ही बना डाला- बॉलीवुड जिहाद मीडिया जिहाद हिस्ट्री जिहाद... हाल में एक नया आइडिया दिया कोरोना जिहाद, मेरे ख्याल से कुछ पत्रकारों ने बोलने की आजादी को नफरत फैलाने की आजादी समझ लिया है. और अगर लिब्टार्ड चव्हाणके जैसे इक्के-दुक्के के कुतर्कों से क्या फर्क पड़ता है तो मैं आपको बता दूं कि उनके चैनल के ट्विटर पर 3 लाख फोलोवर्स हैं और दस लाख यूट्यूब सब्स्क्रियबर हैं.
इसी तरह भारत में फेसबुक के कुछ टॉप के अफसर बोलने की आजादी और नफरत फैलाने की आजादी के बीच कन्फ्यूज हो गए हैं. वाल स्ट्रीट जर्न की एक रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि फेसबुक के कर्मचारियों ने तेलंगाना से बीजेपी विधायक टी रजा सिंह के हेट पोस्ट की ओर भारत में फेसबुक की पब्लिक पॉलिसी हेड अंखी दास, का ध्यान दिलाया तो उन्होंने राजा के पोस्ट हटाने से मना किया.
अब फेसबुक ने टी राजा से जुड़े 5 पेज और एक इंस्टा अकाउंट को बैन कर दिया है, लेकिन क्या ये थोड़ा लेट नहीं हो गया?
क्या अब अगले टी राजा पर बैन तब लगेगा जब फेसबुक खुद पीआर संकट में फंस जाएगी. सवाल ये भी है कि भारत का अपना लीगल सिस्टम रजा सिंह से सवाल कब पूछेगा? MLA के खिलाफ नफरती भाषण के कई केस पेंडिंग हैं. उनमें कोई प्रगति नहीं हो रही है, क्या हमें ये मंजूर है?
अवमानना केस में वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण पर सुप्रीम कोर्ट के एक रुपए के जुर्माने पर काफी कहा और लिखा जा चुका है. रकम छोटी है लेकिन सजा ही है. भूषण ने ट्वीट किये थे उनके समर्थन में 134 पेज का हलफनामा दायर किया था. उन्होंने बताया था कि उन्हें कब लगा कि कोर्ट ने नागरिकों के मूल अधिकारों को बचाने में नाकाम रहा और कब उन्हें पारदर्शिता की कमी नजर आई. उन्होंने दलीलें दी की उनकी आलोचना अवमानना नहीं थी बल्कि भली मंशा से की गई शिकायत थी. लेकिन इन दलीलों को देखने के बजदाय कोर्ट ने भूषण को सजा देकर सभी नागरिकों को संदेश दे दिया है कि अदालत आलोचना से परे है.
ये जो इंडिया है न... अगर हम वाकई बोलने की आजादी की कद्र करते हैं तो किसी को भी..किसी को भी इसकी कीमत नहीं लगानी चाहिए.....एक रुपया भी बहुत है.
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