RSS ने भी कर लिया स्वीकार, अब तो मान लीजिए सरकार!

सरकार बढ़ती बेरोजगारी, असमानता और गरीबी की सच्चाई को मानती क्यों नहीं?

शादाब मोइज़ी
न्यूज वीडियो
Published:
<div class="paragraphs"><p>जनाब ऐसे कैसे?</p></div>
i

जनाब ऐसे कैसे?

फोटो: क्विंट

advertisement

क्या देश में बेरोजगारी है? गरीबी? गैरबराबरी? मैं अगर हां कहूंगा तो कुछ लोग कहेंगे कि देश विरोधी, सरकार विरोधी, कांग्रेसी, RJD समर्थक.. और न जाने क्या-क्या? लेकिन आप ये पढ़िए- "देश में गरीबी है, बेरोजगारी है, ये एक चुनौती तो है ही, लेकिन इसके साथ-साथ एक और विषय के बारे में हमें विचार करना होगा, वो है आर्थिक असमानता." ये बयान बीजेपी की मदर ऑर्गेनाइजेशन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी RSS के महासचिव दत्तात्रेय होसबाले का है.

लेकिन क्या दत्तात्रेय होसबाले की तरह सरकार भी ऐसा मानती है? क्या सरकार के पास गरीबी (Poverty) का आंकड़ा है? क्या RSS के सदस्य के ऐसे बयान पर उन्हें भी देश विरोधी कहा जाएगा? गरीबी, बेरोजगारी और गैरबराबरी की सच्चाई से आंख मूंदा जाएगा तो हम पूछेंगे जनाब ऐसे कैसे?

बेरोजगारी की कहानी

आपको एक कहानी सुनाते हैं. बात है साल 2019 की. मौसम चुनावी था. एक थी जनता और एक सरकार, दोनों प्रेम में. जनता प्यार में इस कदर डूब चुकी थी कि उसे किसी और की कोई बात सुनाई ही नहीं देती. इसी बीच बेरोजगारी (Unemployment) से जुड़ी National Sample Survey Office यानी NSSO की एक रिपोर्ट सामने आई. ऐसे तो बिना रिपोर्ट के भी सरकार और बेरोजगारी के चर्चे मोहल्ले में हो रहे थे. लेकिन उस रिपोर्ट से कनफर्म हो गया था कि बेरोजगारी पिछले 45 साल में सबसे ज्यादा है. सरकार ने कहा ये तो ड्राफ्ट है, फाइनल रिपोर्ट नहीं. जनता बेचारी, अपने प्यार पर अंधा विश्वास कर बैठी.

लेकिन चुनावी मौसम खत्म हुआ, शपथ समारोह के बाद सच जनता के सामने आ गया. सरकार ने रिपोर्ट को सही माना. लेकिन तबतक बहुत देर हो चुकी थी.

अब आते हैं प्वाइंट पर. RSS से जुड़ी स्वदेशी जागरण मंच द्वारा आयोजित एक वेबिनार में, दत्तात्रेय होसाबले ने देश में गरीबी, बेरोजगारी और बढ़ती आर्थिक असमानता पर चिंता जताई. दत्तात्रेय होसबाले ने कहा,

"देश में चार करोड़ बेरोजगार हैं, जिनमें ग्रामीण क्षेत्रों में 2.2 करोड़ और शहरी क्षेत्रों में 1.8 करोड़ बेरोजगार हैं. श्रम बल सर्वेक्षण में बेरोजगारी दर 7.6 प्रतिशत आंकी गई है ... हमें रोजगार पैदा करने के लिए न केवल अखिल भारतीय योजनाओं की आवश्यकता है, बल्कि स्थानीय योजनाओं की भी आवश्यकता है."

अब ये सच है कि भारत में व्यापक बेरोजगारी देखी जा रही है. लेकिन उच्च बेरोजगारी दर के अलावा, लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट (LFPR) घट रही है. LFPR मतलब नौकरी की मांग करने वाले लोगों की कुल संख्या कितनी है. मतलब न तो नौकरी है न ही लोगों में नौकरी मिलने की उम्मीद है.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT
वहीं बेरोजगारी से याद आया कि केंद्रीय कार्मिक राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने जुलाई 2022 में लोकसभा में बताया था कि साल 2014-15 से 2021-22 के दौरान केंद्र सरकार की नौकरियों के लिए 22.05 करोड़ आवेदन आए थे. लेकिन सरकार के अलग-अलग विभागों में सिर्फ 7 लाख 22 हजार 311 लोगों को नौकरी दी गई है.

हालांकि फेसटिवल सीजन में अच्छी खबर ये है कि सितंबर के महीने में बेरोजगारी दर घटकर 6.43 प्रतिशत पर आ गई है. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग ऑफ इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) की रिपोर्ट के मुताबिक देश के ग्रामीण और शहरी इलाकों में श्रम भागीदारी बढ़ने से बेरोजगारी दर में कमी आई है. इससे पहले अगस्त महीने में राष्ट्रीय बेरोजगारी दर 8.28 फीसदी थी.

गरीबी का कोई आंकड़ा है क्या?

दत्तात्रेय होसबाले से लेकर बीजेपी नेता और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी जनता के गरीब होने की बात कह रहे हैं. नितिन गड़करी ने 29 सिंतबर को एक कार्यक्रम में कहा,

“हमारा देश धनवान है पर जनता गरीब है, भूखमरी, गरीबी, महंगाई, बेरोजगारी से ग्रस्त है. जातिवाद, छुआछूत और अपृश्यता का भाव समाज के लिए दुखद भी है और समाज के प्रगति के लिए घाटक भी है.”

नितिन गडकरी ने साफ किया है कि उनका ये भाषण सामाजिक समस्याओं को दूर करने की भावना वाला है. ठीक उसी तरह हम भी देश की तरक्की के लिए उन कमियों को बता रहे हैं, जिससे दूर कर हम अपने देश को बेहतर बना सके.

वापस आते हैं गरीबी पर. योजना आयोग द्वारा गरीबी के आंकड़े आखिरी बार 2011-12 के लिए जारी किए गए थे. तब देश में गरीबों की संख्या 26.98 करोड़ या कुल जनसंख्या का 21.9 फीसदी आंकी गई थी. लेकिन 10 साल बाद गरीबी का कोई आधिकारिक अनुमान जारी नहीं किया गया है. चूंकि सरकार 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज दे रही है, इसलिए माना जाना चाहिए कि इतने लोग गरीब हैं. प्रतिशत आप खुद निकाल लीजिएगा.

प्रोफेसर सुरेश तेंदुलकर के नेतृत्व वाली समिति ने गरीबी रेखा को लेकर सुझाव दिए थे. उसी के आधार पर सरकार कहती है कि गांव में अगर कोई हर महीने 816 रुपये और शहर में 1000 रुपये से कम खर्च करता है तो वो गरीबी रेखा के अंदर रहेगा.

भारत में गैरबराबरी

इन सबके बाद एक और अहम मुद्दा आता है गैरबराबरी का. जिसकी बात मैं नहीं बल्कि RSS के महासचिव दत्तात्रेय होसबाले कर चुके हैं और साथ ही आंकड़े भी यही कह रहे हैं.

World Inequality Report के मुताबिक भारत में एक फीसदी लोग देश के करीब 22 फीसदी इनकम पर काबिज हैं. वहीं भारत के 57 फीसदी इनकम पर देश के टॉप-10 फीसदी लोग काबिज हैं. और देश की 50% आबादी के पास देश की आय का सिर्फ 13% है.

आंकड़े से लेकर सरकार के अपने ही लोग बेरोजगारी और गैरबराबरी पर अब बात कर रहे हैं, तो फिर सरकार बढ़ती बेरोजगारी, असमानता और गरीबी की सच्चाई को मानती क्यों नहीं? अब तो RSS ने भी बोल दिया अब तो मान लीजिए, और कोई ठोस रास्ता निकालिए, नहीं तो हर कोई पूछेगा जनाब ऐसे कैसे?

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: undefined

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT