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डेटा प्रोटेक्शन पर सरकार के बिल में खामियां, विचार करे सरकार: थरूर

थरूर ने अपने बिल को सरकार के डेटा प्रोटेक्शन बिल से बेहतर बताया

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डेटा प्रोटेक्शन बिल: जानिए सरकार के बिल और थरूर के बिल में क्या है अंतर?
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डेटा प्रोटेक्शन बिल: जानिए सरकार के बिल और थरूर के बिल में क्या है अंतर?
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आपके निजी डेटा पर किसका हक होना चाहिए? आपके आधार की जानकारी, बैंक खातों की जानकारी, जमीन जायदाद वगैरह की जानकारी में किसका हक होना चाहिए? जाहिर है आपका. लेकिन कांग्रेस सांसद शशि थरूर को आशंका है कि सरकार जो डेटा प्रोटेक्शन कानून बनाने की तैयारी कर रही है वो हर भारतीय के लिए नुकसानदेह हो सकता है.

थरूर ने डेटा की सख्त पहरेदारी के लिए कानून का ड्राफ्ट तैयार किया है जो उनका दावा है कि सरकार के प्रस्तावित कानून से बेहतर होगा. श्रीकृष्ण कमिटी ने आईटी मंत्रालय को डेटा प्रोटेक्शन बिल का फाइनल ड्राफ्ट दिया है. लेकिन एक हफ्ते बाद कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने संसद में 'डेटा प्राइवेसी और प्रोटेक्शन बिल 2017' पेश किया. क्विंट से इस बारे में बातचीत में उन्होंने बताया कि उनका बिल सरकार के बिल से बेहतर है.

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शशि थरूर का कहना है कि सरकार के बिल में कई खामियां हैं. डेटा सुरक्षा से जुड़े जिसे सरकार और जनता के सामने लाना जरूरी है जो सरकार के बिल में शामिल नहीं है.

केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने डेटा प्राइवेसी को लेकर चर्चा और विचार करने का भरोसा दिया है. थरूर के मुताबिक उन्होंने मंत्रालय को एक कॉपी भेजी है जिसमें दोनों बिल के बीच के फर्क की जानकारी दी गई है.

मुझे लगता है कि हम सभी का डेटा प्राइवेसी पर एक मत है, एक क्लियर-कट प्राइवेसी कमीशन और इसपर निगरानी रखने के लिए स्वतंत्र संस्था होनाी चाहिए.
शशि थरूर, सांसद, कांग्रेस

श्रीकृष्ण कमिटी के ड्राफ्ट बिल से डॉ थरूर का बिल अलग कैसे?

डेटा पर हक

थरूर के मुताबिक भारत के हर नागरिक को अपने डेटा पर पूरा हक है और उनके बिल में इस बात की पक्की व्यवस्था की गई है. जबकि सरकार के बिल में लोगों के पास अपने ही डेटा का मालिकाना अधिकार नहीं है. जब चाहे सरकार इस पर कब्जा कर सकती है.

आधार नंबर

सरकार का बिल आधार पर लागू नहीं होता, जबकि थरूर का दावा है कि उनके प्रस्तावित बिल में ऐसा है. आधार पर डेटा प्राइवेसी के नियम इसलिए लागू होते हैं क्योंकि आधार, डेटा प्राइवेसी लीक का बड़ा स्रोत बन गया है.

साइबर स्नूपिंग(ताक-झांक)

थरूर का कहना है कि साइबर दुनिया में निगरानी, ताक-झांक की समस्या है. ये भारत ही नहीं बल्कि कहीं के लिए भी एक खतरा बन रहा है.

भारतीय नागरिकों पर निगरानी के खतरे

थरूर के मुताबिक हर किसी का डेटा बेहद कीमती चीज है इसलिए इसकी निगरानी पर सख्त पहरेदारी होनी चाहिए. इसलिए एक ऐसी बॉडी होनी चाहिए जिसके पास आपके अकाउंट की सुरक्षा का अधिकार हो. ये सरकार की बनाई गई किसी एजेंसी की निगरानी में भी हो सकता है या कोर्ट की बनाई गई एजेंसी के पहरे में. जैसे किसी पर शक होने पर पुलिस अदालत से मंजूरी लेकर फोन को टैप करते हैं..

साफ कहूं तो, हम मीडिया लीक से समझ गए हैं कि ऐसे कई लीक हुए हैं जिनका किसी अपराध से कोई लेना देना नहीं है. इनमें व्यक्तिगत मसले, पारिवारिक मामले, अंतरंग मामले, वित्तीय मामले हो सकते हैं. सवाल ये है कि इस तरह की तमाम रिकॉर्डिंग को कौन कंट्रोल करेगा. इस डेटा का अधिकार किसके पास है?

थरूर के मुताबिक प्राइवेसी कमीशन को इस तरह की निगरानी पर नजर रखने का अधिकार होना चाहिए, जो ये कहे कि निगरानी सिर्फ उन कुछ खास मकसद के लिए की जा सकती है जिनके लिए वो अधिकृत हैं. ये जरूरी है ताकि जहां राज्य की ताकत इतनी ज्यादा न हो पाए कि नागरिकों की कोई निजी जिंदगी ही न रह पाए.

थरूर ने उम्मीद जताई कि सरकार उनके सुझावों पर नजर डाले तो देश के लिए ये बहुत फायदेमंद होगा.

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