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उत्तर प्रदेश, बिहार और दिल्ली जैसे कुछ राज्यों की पुलिस जेएनयू के छात्र शरजील इमाम की तलाश में लगी हुई है. इमाम पर UAPA और राजद्रोह जैसे कानूनों के तहत कई राज्यों में केस दर्ज किया गया है. बिहार में उसके घर पर पुलिस ने छापेमारी की और परिवार के कुछ लोगों को हिरासत में लिया. शरजील इमाम पर क्यों इतने केस दर्ज किए गए हैं? ऐसा क्या कहा है उसने?
ये तकरीर तकरीबन 40 मिनट लंबी है और अगर पूरी बात सुनी जाए तो पता चलेगा कि वो बिहार और बंगाल से असम जाने वाले हाईवे और रेल पटरियों पर चक्का जाम करने की बात कर रहे हैं. यहां भारत के किसी भी हिस्से को तोड़ने की बात नहीं हो रही.
एक जगह उन्होंने गलत तर्जुमा कर दिया और इंग्लिश में 'टू कट ऑफ असम' को हिंदी में 'असम को अलग कर दो' कह दिया. ये शायद अंग्रेजी में सोच कर हिंदी में बोलने का नतीजा है, लेकिन मतलब साफ है कि बात चक्का जाम करने की हो रही थी.
चक्का जाम विरोध करने का एक तरीका है. 2008 में अमरनाथ आंदोलन में हिंदुत्व संगठनों ने जम्मू-श्रीनगर हाईवे पर चक्का जाम किया था, जिससे कश्मीर बाकी इलाकों से कट गया. लेकिन क्या किसी ने भी अमरनाथ आंदोलनकारियों को कहा कि आप कश्मीर को अलग करना चाहते हैं?
साफ बात है कि बीजेपी सरकार नागरिकता कानून के खिलाफ हो रहे प्रदर्शनों से परेशान है. खासतौर पर दिल्ली की शाहीन बाग की महिलाओं से.
गृहमंत्री अमित शाह ने दिल्ली में एक जनसभा में कहा कि बटन इस तरह दबाइए कि शाहीन बाग में करंट लग जाए. रविशंकर प्रसाद का कहना है कि शाहीन बाग 'टुकड़े-टुकड़े गैंग' को प्लेटफार्म दे रहा है.
पिछले कुछ हफ्तों में बीजेपी से जुड़े लोग अलग-अलग तरह से शाहीन बाग विरोध प्रदर्शन की आलोचना कर रहे हैं. कभी इसे कांग्रेस या आम आदमी पार्टी की साजिश बता रहे हैं, तो कभी इस्लामिस्ट की चाल... लेकिन शाहीन बाग में बढ़ती भीड़, भीड़ में लहराते तिरंगे और हिंदुस्तान में उभरते हुए हजारों शाहीन बाग ने इस प्रोपगैंडा पर पानी फेर दिया है.
तो आप क्रोनोलॉजी समझिए! पहले शरजील को देशद्रोही करार किया जाएगा. फिर उसे शाहीन बाग का मास्टरमाइंड बताया जाएगा, और फिर शाहीन बाग को एक आतंकवादी साजिश की तरह पेश किया जाएगा.
शरजील की बातों से ज्यादातर मुस्लिम प्रदर्शनकारी खुद इत्तेफाक नहीं रखते होंगे.
प्रदर्शनकारी इसे संविधान की लड़ाई बताते हैं... शरजील कहते हैं कि इन लोगों को संविधान की समझ नहीं.
शरजील कहते हैं कि गांधी फासिस्ट हैं, लेकिन प्रदर्शनकारियों के लिए गांधी एक हीरो हैं. अगर शशि थरूर को प्रदर्शन में 'ला इलाहा इलल्लाह' सुनना पसंद नहीं, तो शरजील को प्रदर्शन में राष्ट्रवादी नारे पसंद नहीं.
फिलहाल हकीकत ये है कि सरकार और पुलिस एक कलेक्टिव पनिशमेंट की नीयत से काम कर रही है. इसी नीयत के तहत प्रदर्शन करने वालों पर गोलियां चलाई गईं. इसी के तहत मुस्लिम मोहल्लों पर पुलिस हमले कर रही है, और इसी के तहत शरजील और उनके जैसे कई लोगों को देशद्रोही बोला जा रहा है और उनके परिवारवालों को परेशान किया जा रहा है.
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