15 अगस्त: आजादी के लिए लड़ने वाली 15 महिलाओं की कहानी

जरा याद करो कुर्बानियां: 15 अगस्त-15 कहानियां

शोहिनी बोस
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15 अगस्त: आजादी के लिए लड़ने वाली 15 महिलाओं की कहानी
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15 अगस्त: आजादी के लिए लड़ने वाली 15 महिलाओं की कहानी
(फोटो: क्विंट हिंदी)

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वीडियो एडिटर: विशाल कुमार

वीडियो प्रोड्यूसर: शोहिनी बोस

‘खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी’

रानी लक्ष्मीबाई, भिकाजी कामा, सरोजिनी नायडू, कस्तूरबा गांधी, अरुणा आसफ अली, कैप्टन लक्ष्मी सहगल, सुचेता कृपलानी- देश की आजादी की लड़ाई में महिलाओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. 15 अगस्त को उन 15 महिला स्वतंत्रता सेनानियों की कहानी जो इतिहास के पन्नों में खो गईं.

1. मातंगिनी हाजरा

मातंगिनी हाजरा पश्चिम बंगाल की क्रांतिकारी थीं, जिन्हें लोग 'गांधी बुढ़ी' भी बुलाते थे, 1942 में ब्रिटिश सेना की गोलियों की शिकार हुई. मरने से पहले उन्होंने लगाया ‘वंदे मातरम’ का नारा.

2. कनकलता बरुआ

असम की स्वतंत्रता सैनानी बरुआ को अंग्रेजों ने 1942 में गोली मारी थी. कनकलता तब सिर्फ 17 साल की थीं और इतनी सी उम्र में ही अपने हाथ में तिरंगा लेकर शहीद हो गईं थीं.

3. झलकारी बाई

झांसी की रानी लक्ष्मीबाई को तो सब जानते हैं, लेकिन झांसी की एक और ‘रानी’ भी थी. झलकारी बाई. रानी लक्ष्मीबाई की सेना की एक वीरांगना जिन्होंने भेष बदलकर रानी लक्ष्मीबाई का रूप धरा था और रानी बन गईं. झलकारी बाई आखिरी दम तक अंग्रेजों से लड़ीं. उनके भेस बदलने के कारण ही रानी लक्ष्मीबाई बचकर निकल पाईं

4. रानी चेन्नम्मा

कित्तूर रियासत की रानी थीं. रानी चेन्नम्मा अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाने वाले कुछ चुनिंदा शासकों में से एक थीं. उन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ जंग का नेतृत्व किया था. अंग्रेजों के खिलाफ तीसरी लड़ाई में रानी चेन्नम्मा हार गईं और 1829 में जेल में शहीद हो गईं.

5. प्रीतिलता वादेदार

‘मास्टर दा’ सूर्य सेन की खास साथी थी प्रीतिलता. उन्होंने सूर्यसेन के साथ मिलकर पहाड़तली यूरोपीय क्लब को आग लगाई. ये ही वो क्लब था जिसके साइनबोर्ड में लिखा था, “कुत्तों और हिंदुस्तानियों को इजाजत नहीं”. गिरफ्तारी से बचने के लिए 1932 में वादेदार ने अपनी जान दे दी.

6. ऊदा देवी

1857 के संग्राम की एक ‘दलित वीरांगना’ थीं ऊदा देवी. लखनऊ के सिकंदर बाग की लड़ाई में पीपल के पेड़ पर चढ़कर ऊदा देवी ने 30 से ज्यादा ब्रिटिश सैनिकों को ढेर कर दिया और फिर खुद भी शहीद हो गईं.

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7. भोगेश्वरी फुकनानी

असम की वीर स्वतंत्रता सेनानी जिन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लिया. ’60 साल की शहीद’ के नाम से प्रसिद्ध हुईं. 1942 में अंग्रेजों ने गोली मारकर उनकी हत्या की.

8. भीमाबाई होलकर

इंदौर के महाराज की बेटी भीमाबाई ने 1817 में गुरिल्ला युद्ध की रणनीति अपनाकर अंग्रेजों को धूल चटाई. माहिदपुर की लड़ाई में उन्होंने 2,500 घुड़सवारों की फौज का नेतृत्व किया. कहा जाता है कि भीमाबाई ने ही रानी लक्ष्मीबाई को प्रेरित किया.

9. रानी गाइदिनल्यू

मणिपुर की वो क्रांतिकारी जो 13 साल की उम्र में ही आजादी की लड़ाई से जुड़ीं थी. महज 16 की उम्र में गिरफ्तार भी हो गईं और आजीवन कैद की सजा पाई. हालांकि जल्द ही आजादी की खुशी आई और आजादी के बाद वो भी जेल से रिहा हुईं.

10. ऊषा मेहता

ऊषा मेहता सिर्फ 8 साल की थी, जब ‘साइमन गो बैक’ आंदोलन से जुड़ीं. उन्होंने ‘सीक्रेट कांग्रेस रेडियो’ के प्रसारण के में सबसे बड़ा रोल निभाया और आज भी इसके लिए प्रसिद्ध हैं. भारत छोड़ो आंदोलन में इस अंडरग्राउंड रेडियो ने बड़ी भूमिका निभाई. 1998 में ऊषा मेहता को पद्म विभूषण सम्मान भी मिला.

11. पार्बती गिरि

ओडिशा की महान क्रांतिकारी, जिन्हें अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन के कारण गिरफ्तार किया गया. आजादी के बाद उन्होंने अनाथों के नाम अपना जीवन किया. वो ‘ओडिशा की मदर टेरेसा’ के नाम से जानी जाती रहीं.

12. कृष्णम्मल जगन्नाथन

तमिल नाडु की प्रख्यात गांधीवादी कृष्णम्मल लंबे समय तक विनोबा भावे की खास सहयोगी रहीं. सामाजिक अन्याय के खिलाफ लड़ाई लड़ी और उन्हें 1989 में मिला पद्म श्री से सम्मानित भी किया गया.

13. अमृत कौर

पंजाब की स्वाधीनता सेनानी, जिन्होंने 1930 में महात्मा गांधी के दांडी मार्च में हिस्सा लिया. इसके कारण अंग्रेजों ने उन्हें 4 साल की कैद में डाल दिया. आजादी के बाद वो संविधान सभा की सदस्य रहीं और भारत की पहली स्वास्थ मंत्री बनीं.

14. एवी कुट्टीमालु अम्मा

केरल की क्रांतिकारी और राजनीतिज्ञ कुट्टीमालु, स्वदेसी आंदोलन से जुड़ी रहीं. इस दौरान उन दुकानों के खिलाफ कार्रवाई की गई जिनमें विदेशी सामान बिकता था. कुट्टीमालु 3 साल की बेटी को गोद में लेकर सविनय अवज्ञा आंदोलन में शामिल हो गईं. उन्हें अंग्रेजों ने दो बार जेल भी भेजा.

15. सावित्रीबाई फुले

महाराष्ट्र की प्रसिद्ध समाज सुधारक सावित्रीबाई फुले, सिर्फ लड़कियों के लिए बने भारत के पहले स्कूल की पहली महिला टीचर थीं. ब्रिटिश हुकूमत के दौरान सावित्रीबाई फुले ने महिला अधिकारों की लड़ाई भी लड़ी.

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