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दिल्ली के मयूर विहार स्टेशन के करीब से, एक संकरा, धूल भरा और घुमावदार रास्ता, यमुना खादर की ओर जाता है. जैसे-जैसे आप उस रास्ते पर आगे बढ़ते हैं, फूलों के बागीचे को पीछे छोड़ अचानक आपका सामना फ्लाईओवर के स्लैब्स और कंस्ट्रक्शन मशीनों से होता है.
इन सब के बीच आपको दिखेगी बच्चों की कतार, जो स्लैब के नीचे बैठ कर पढ़ाई करते हैं. टीचर सत्येन्द्र पाल का कहना है कि जब वो यहां पढ़ाने आये थे तब बच्चे मामूली गणित और विज्ञान के सवालों का जवाब भी नहीं दे पाते थे.
2016 में जब सत्येंद्र पाल ने यमुना खादर के बच्चों को पढ़ाना शुरू किया था, तब वो गणित विज्ञान जैसे विषयों में बहुत पीछे थे. हालांकि बच्चे पास ही के सरकारी स्कूल में पढ़ने जाते थे, लेकिन उनकी पढ़ाई न के बराबर थी. और इस कारण से बच्चों में विषयों को लेकर डर था.
गांव में रहने वाले ज्यादातर लोग खेती और मजदूरी कर अपना घर चलाते हैं. घर की स्थिति खराब होने के कारण ज्यादातर बच्चे भी अपने मां-बाप का हाथ बंटाने के लिए पढ़ाई छोड़ काम करते है.
इन सब परेशानियों के बावजूद कुछ बच्चों में पढ़ने की इच्छा है और सत्येंद्र पाल के आने के बाद कई बच्चों में पढ़ने का उत्साह जाग उठा है. 9वीं क्लास में पढ़ने वाले अर्जुन का कहना है कि वो फिर से 9वीं क्लास पढ़ रहे हैं क्योंकि वो एक बार गणित और विज्ञान के विषयों को ठीक से न पढ़ पाने के कारण फेल हो चुके हैं. लेकिन अब पाल के आने के बाद वो पढ़ाई पर ठीक से ध्यान दे पाते हैं और उन्हें अब गणित से डर नहीं लगता.
लेकिन अब उन्हें अपने टीचर और अपने स्कूल के हट जाने का डर है.
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