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वीडियो एडिटर: विवेक गुप्ता/संदीप सुमन
कश्मीर की राजनीति के जाने-माने नाम फारूक अब्दुल्ला को जम्मू-कश्मीर पब्लिक सेफ्टी एक्ट यानी PSA के तहत हिरासत में ले लिया गया है. PSA कानून को 1978 में लकड़ी तस्करों पर लगाम कसने के लिए लाया गया था, लेकिन पिछले कुछ सालों से इसका इस्तेमाल जम्मू-कश्मीर में ऐहतियातन हिरासत में लेने के लिए किया जा रहा है.
6 अगस्त को गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में कहा "वो हाउस अरेस्ट में नहीं हैं. उनको नहीं आना है तो कनपटी पर गन रखकर बाहर नहीं ला सकते." उसी दिन फारूक अब्दुल्ला ने सरकार के दावे को झूठ बताया और कहा कि उन्हें घर में नजरबंद किया गया है.
6 अगस्त 2019 को फारूक अब्दुल्ला ने कहा-
11 सितंबर को MDMK नेता वाइको ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली और कहा "फारूक अब्दुल्ला को गलत तरीके से बिना किसी कानूनी आधार के हिरासत में रखा जा रहा है."
16 सितंबर को इस मामले में हुई सुनवाई में जब सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की तरफ से हाजिर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से सवाल किया, तो उन्होंने कहा "उन्हें इस बारे में जम्मू-कश्मीर सरकार से पूछना होगा."
सबसे बड़ी बात ये ही नहीं पता कि जिन फारूक अब्दुल्ला ने कोई गुनाह नहीं किया, उनपर PSA क्यों लगाया गया? क्योंकि फारूक अब्दुल्ला वो शख्स हैं जो पिछले कई दशकों में हर-बार भारत के साथ खड़े दिखे.
क्या 5 अगस्त को जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाए जाने के बाद उन्होंने कोई बवाल खड़ा करने की कोशिश की? ऐसी कोई खबर सरकार की तरफ से तो नहीं आई. हकीकत ये है कि फारूक अब्दुल्ला को जिस तरह से हिरासत में रखा गया है, उसमें कानूनी तौर पर कई खामिया हैं और ऐसा सिर्फ फारूक के साथ नहीं बल्कि हजारों कश्मीरियों के साथ हो रहा है.
अगर फारूक अब्दुल्ला पर 15 सितंबर को PSA लगाया गया तो फिर उन्हें उससे पहले करीब एक महीने तक किस बिनाह पर घर में नजरबंद किया गया था?
एडवाइजरी बोर्ड ने 15 सितंबर को ही पुष्टि कर बताया कि फारूक पर PSA लगाया गया है और अगर उन्हें उसी दिन हिरासत में ले लिया गया, तो क्या उन्हें अपना पक्ष रखने का मौका भी नहीं दिया गया? कम से कम इसका अधिकार तो कानून उन्हें देता है.
PSA के तहत हिरासत का फैसला आनन-फानन में क्यों लिया गया? क्या इसलिए क्योंकि अगले ही दिन सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी थी? अगर फारूक कानून व्यवस्था के लिए खतरा थे तो क्यों उनपर PSA लगाने का फैसला इतनी देर से लिया गया?
1996 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जिस तरह बिना सोचे समझे PSA लगाया जा रहा है, वो 'कानून का मजाक' है. संयुक्त राष्ट्र में मानवाधिकारों के हाई कमिश्नर भी जम्मू-कश्मीर में PSA के बेजा इस्तेमाल की आलोचना कर चुके है.
जम्मू-कश्मीर RTI एक्ट के तहत मिली एक जानकारी के मुताबिक PSA के तहत हिरासत के मामलों के रिव्यू के लिए बने एडवाइजरी बोर्ड ने 99% मामलों पर अपनी मुहर लगाई. लेकिन जिन मामलों को जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट में चुनौती दी गई, उनमें 81% खोखले निकले.
ऐसे मामलों पर काम करने वाले कई वकीलों से द क्विंट ने बात की. उनका भी कहना है कि PSA के मामलों में शायद ही बेसिक प्रक्रिया का पालन होता है. इसके दस्तावेज भी तब तैयार किए जाते हैं, जब अदालतों में हिरासत को चैलेंज किया जाता है.
वकील बताते हैं कि कश्मीरियों को हफ्तों हिरासत में रखना आम बात है. वहां सालों से यही होता आया है.
क्विंट के सूत्र बताते हैं कि शुरू में फारूक अब्दुल्ला को भी ऐसे ही हिरासत में लिया गया लेकिन जब सरकार को लगा कि सुप्रीम कोर्ट में जवाब देना मुश्किल हो सकता है तो अचानक से PSA का फरमान सुना दिया गया.
दरअसल फारूक अब्दुल्ला का केस बताता है कि आप इस तरह किसी को भी हिरासत में नहीं ले सकते. अफसोस ये कि 5 अगस्त के बाद ऐसे हिरासत की तादाद और बढ़ गई है क्योंकि सरकार घाटी में विरोध की कोई आवाज नहीं सुनना चाहती. जरा सोचिए जब फारूक अब्दुल्ला के साथ ये सब हो रहा है तो आम कश्मीरियों पर क्या बीत रही होगी?
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