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वाराणसी का वो गांव जहां फूलों की खेती ने महिलाओं की जिंदगी बदल दी

20 रुपए से शुरुआत करने वाली इन महिलाओं ने अब अपने बिजनेस का टर्नओवर 7 करोड़ तक पहुंचा दिया है

विक्रांत दुबे
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फूल, सब्जियां लगा कर धीरे-धीरे महिलाओं ने चुका दिया महाजनों का कर्ज
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फूल, सब्जियां लगा कर धीरे-धीरे महिलाओं ने चुका दिया महाजनों का कर्ज
(फोटो: क्विंट हिंदी)

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उत्तर प्रदेश के वाराणसी के पास एक गांव है, जिसका नाम है गौरा. इस गांव के कई पुरुष, कर्ज के बोझ की वजह से पलायन कर गए थे. गांव की ज्यादातर आबादी खेती करने वाले मजदूरों की है. गांव की ऊंची जाति के लोग कर्ज ना चुका पाने पर गरीबों की जमीनों पर कब्जा कर लेते थे . बच्चे पढ़ नहीं पाते थे, गांव के लोग एक वक्त का खाना भी बड़ी मुश्किल से खा पाते थे. गांव की स्थिति बेहद खराब थी और ऊपर उठने का कोई खास उपाय नहीं था.

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महिलाओं ने उठाया बीड़ा

बढ़ते कर्ज के बोझ से तंग आकर गांव की महिलाओं ने कर्ज चुकाने का बीड़ा उठाया, गांव की महिलाओं ने कर्ज और सूदखोरों से छुटकारा पाने के लिए फूल और सब्जी लगाने शुरू किये और जिस जमीन पर वो खेती करती थीं वो उन्हीं सूदखोरों से खेती के लिए किराये पर ली.

20 रुपये से की शुरुआत

गांव की सभी महिलाओं ने एक साथ आकर 20 रूपये से इसकी शुरुआत की और देखते ही देखते महिलाओं की कर्ज से मुक्त होने की कोशिश रंग लाने लगी. फूल सब्जियां लगा कर धीरे-धीरे महिलाओं ने कर्ज चुका दिया है, इस गांव में करीब 4 समूह हैं.

महिलाओं ने फूलों की खेती से बदल दी सबकी किस्मत(फोटो: विक्रांत दूबे)
गौर गांव की महिलाओं को देखकर आसपास के करीब 35 गांव भी ग्रुप फार्मिंग से जुड़ गए हैं और इनका सालाना टर्नओवर करीब 7 करोड़ तक पहुंच गया है.

गांव के कई सदस्य इस ग्रुप फार्मिंग से जुड़ते हैं जिसमें उन्हें अब सूदखोरों से कर्ज लेने की जरूरत नहीं पड़ती, समूह ही जरूरतमंद सदस्य को कर्ज देता है, जिसका ब्याज सभी सदस्यों में बंटता है. जिस तरीके से गौर गांव ने अपने कर्ज से छुटकारा पाने के लिए ग्रुप फार्मिंग का रास्ता चुना उसी तरह से ये सोच पूरे देश में फैलाना जरुरी है जिससे कर्ज के बोझ के तले दबे किसान कुछ प्रेरणा ले सकें और अपने बेहतर जीवन की ओर कदम बढ़ा सकें.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

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