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कैमरा: अभिषेक रंजन, सुमित बडोला
प्रोड्यूसरः कनिष्क दांगी
जब इंडियन पॉलिटिक्स कंज्यूमर की टर्मिनोलॉजी को अपना ले और इंडियन वोटर कंज्यूमर बन जाए और पार्टियां उसके साथ सेवा करने की बजाय ट्रांजेक्शनल रिलेशनशिप बनाना चाहें तो आप कह सकते हैं कि कहीं भारत FMCG नेशन तो नहीं बन गया है?
चुनावी मौसम में ऐसे ही कई मुद्दों क्विंट के एडिटोरियल डायरेक्टर संजय पुगलिया के साथ कंज्यूमर बिहेवियर, एडवरटाइजिंग और मीडिया एक्सपर्ट संतोष देसाई की खास बातचीत.
संतोष देसाई का मानना है कि फिलहाल देश में सबसे ज्यादा डिस्ट्रीब्यूट होने वाला प्रोडक्ट है- वोट. पिछले कुछ समय से चल रहे चुनाव प्रचार के तौर-तरीकों पर संतोष देसाई कहते हैं कि कंज्यूमर मार्केटिंग और इलेक्शन कैंपेन में जो फर्क था वो बहुत कम हो गया है. वो कहते हैं कि नॉर्मल मार्केटियर न कर पाए, ऐसी चीजें अब प्रचार में देखने को मिलती हैं.
संतोष देसाई का मानना है कि किसी भी पार्टी या नेता की दिलचस्पी तथ्य में नहीं होती है, चुनाव के लिहाज से जो जरूरी चीज हो, पार्टी वैसी ही स्ट्रेटजी अपनाती है.
संतोष देसाई ने हाल ही में टाइम्स ऑफ इंडिया में एक लेख लिखा था 'When in doubt, Vote against' . जब देसाई से इस लेख के बारे में पूछा गया तो वो कहते हैं कि वोट देने से पहले सबसे तय करना चाहिए कि आखिर देश की बुनियाद के लिए कौन सी स्थिति सबसे सही है.
संतोष कहते हैं कि अगर किसी वोटर के दिमाग में ये चल रहा है कि वोट बीजेपी को करें या कांग्रेस को करें या दूसरी पार्टी को. इस स्थिति में उस वोटर को खुद से ये सवाल करना चाहिए कि देश की बुनियाद पर जो खतरा है वो कहां से है? इस सवाल के जवाब के मुताबिक ही वोट देना चाहिए.
संतोष देसाई कहते हैं कि कुछ लोग ये भी कह सकते हैं कि देश का फैब्रिक खराब हो रहा है संस्थाएं खतरे में है या ये भी कह सकते हैं कि एक ही परिवार देश चला रहा था अब बदलना है. ऐसे में देसाई के मुताबिक, वोटर को सबसे पहले सोचना चाहिए कि किस चीज से देश की बुनियाद को सबसे ज्यादा खतरा है.
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