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बंगाल का महासंग्राम: सुवेंदु Vs ममता, किसका होगा नंदीग्राम?

पश्चिम बंगाल चुनाव: नंदीग्राम में ममता vs सुवेंदु जनता के मन में कौन?

इशाद्रिता लाहिड़ी
न्यूज वीडियो
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(फोटो: क्विंट हिंदी)
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(फोटो: क्विंट हिंदी)

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वीडियो एडिटर: आशुतोष भारद्वाज

पश्चिम बंगाल 2021 चुनाव में नंदीग्राम सबसे ज्यादा चर्चा में है. ऐसा इसलिए क्योंकि यहां पर दो धुरंधर आमने-सामने हैं. एक तरफ यहां तृणमूल कांग्रेस की नेता और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी हैं तो दूसरी तरफ ममता के पूर्व सहयोगी और अब बीजेपी से लड़ रहे नेता सुवेंदु अधिकारी हैं.

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ममता बनर्जी और सुवेंदु अधिकारी दोनों ही नंदीग्राम आंदोलन के बड़े चेहरे रहे हैं, जिसने 34 साल बाद वामपंथी दलों के शासन को खत्म किया और इसके के रास्ते ममता बनर्जी सत्ता में आईं. इस चुनाव से पता चलेगा कि इस आंदोलन की विरासत को कौन आगे ले जाता है नंदीग्राम के लोगों को अब दादा और दीदी में से किसी एक को चुनना है.

नंदीग्राम के रहने वाले रिंकू मंडल का कहना है कि

अगर दादा बीजेपी में हैं तो हम उनके साथ हैं, दादा को कुछ समस्याएं थीं, इसलिए उन्होंने TMC छोड़ी.
रिंकू मंडल, वोटर, नंदीग्राम

2007 में, पश्चिम बंगाल में वाम मोर्चे की सरकार नंदीग्राम में 10,000 एकड़ जमीन का अधिग्रहण करना चाहती थी, ताकि इंडोनेशिया की फर्म, सलीम ग्रुप एक रासायनिक केंद्र का निर्माण कर सके अपनी जमीन की रक्षा के लिए नंदीग्राम के लोगों ने ये सुनिश्चित करने के लिए यहां घेराबंदी की कि सरकार उनकी जमीन ना छीन ले ये विरोध प्रदर्शन तब ज्यादा बढ़ गया. जब पुलिस फायरिंग में 14 लोग मारे गए, आज इन 'शहीदों' के परिवार (जैसा कि उन्हें नंदीग्राम में बुलाया जाता है) उन दिनों को याद करते हैं, लेकिन वो ये भी याद रखते हैं कि उनके बाद के दिनों में कौन उनके साथ खड़ा था और कौन नहीं.

नंदीग्राम के रहने वाले अलोक बाला दास, गोबिंदो दास की मां हैं जिनके बेटे की 16 साल की उम्र में 2007 नंदीग्राम हिंसा में मौत हो गई थी, वो कहती हैं-

मेरा बेटा गया, उसका पिता गया, मैं भी गई, हमने नहीं सोचा था कि ये इस तरह की लड़ाई में बदल जाएगा हमने खेजुरी से आने वाली बहुत सारी कारों को देखा फिर वे आंसू गैस दागने लगे कुछ लोग चले गए, कुछ रुके फिर गोलीबारी शुरू हो गई.
अलोक बाला दास

नंदीग्राम के ही रहने वाले इमादुल खान के पिता अब्दुल दैयान खान बताते हैं कि उनके 18 साल के बेटे इमादुल की 2017 नंदीग्राम हिंसा में मौत हो गई, वो कहते हैं-

वो पहले आंसू गैस के गोले दाग रहे थे पुल के उस पार, लड़के देख रहे थे कि मंदिर के पास क्या हो रहा है. आंसू गैस के गोलों से उनकी आंखों में चोट लगी वे पानी में कूद गए जब वे ऊपर आ रहे थे तो वो और उसके दोस्त गोलियों की चपेट में आ गए
अब्दुल दैयान खान

नंदीग्राम के रहने वाले कृष्णेंदु मंडल कहते हैं- 'ममता बनर्जी का कोलकाता में 21 जुलाई को शहीद दिवस है. वह हमें वहां बुलाती हैं और हमें 10,000 रुपये देती हैं. कभी-कभी वो हमें साड़ी या शॉल देती हैं. यहां के विधायक, सुवेंदु अधिकारी हमें हर साल दुर्गा पूजा के दौरान नए कपड़े देते हैं. कभी-कभी वो हमें आर्थिक मदद भी देते हैं, अगर हम मुसीबत में हैं या चिकित्सा सहायता की जरूरत है तो वह सुनिश्चित करते हैं कि हमें मिल जाए कोई कमी नहीं है'.

वहीं प्रताप गिरि का कहना है कि- 'एक बार ममता चुनाव से पहले यहां एक कार्यक्रम कर रही थीं उन्होंने मुझे तब 50,000 रुपये दिए लेकिन इसके अलावा, जब से उन्होंने कुर्सी संभाली है ममता ने हमें कुछ नहीं दिया है, वो हमें काम देने वाली थीं लेकिन उन्होंने कहा कि वो सुवेंदु को जिम्मेदारी सौंप रही हैं लेकिन हमें काम नहीं मिला.'

शहीदों के परिवारों की तरह ही नंदीग्राम के आम लोग भी तय नहीं कर पा रहे हैं उनके लिए काम किसने किया? क्या ये सुवेन्दु थे? या वो ममता के आदेश के तहत काम कर रहे थे? एक निर्वाचन क्षेत्र में जहां लगभग 30 प्रतिशत मुस्लिम वोट हैं. कहानी बहुत साफ है उन लोगों के लिए वोट करें जो हिंदुत्व और हिंदू बच्चों को बचा रहे हैं या उस आदमी या "मीर जफर" को वोट दिया जाए जिसने अपनी रानी को धोखा दिया.

जमीन से कोई भी ये भविष्यवाणी नहीं कर सकता है कि ये चुनावी लड़ाई किस रास्ते पर जाएगी यहां तक कि चुनाव विश्लेषक भी नहीं बता पाएंगे लेकिन ये साफ है कि ये किसी के लिए आसान नहीं होने वाला है. लोग बस उम्मीद करते हैं कि नंदीग्राम गलत कारणों से सुर्खियों में रहना बंद कर दे.

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