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निकले मंदिरों में जमा सोना तो होगा इकनॉमी का भला: नीलेश शाह

सोने की इतनी चाहत इकनॉमी के लिए ठीक नहीं है.

दीपशिखा
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कोटक एएमसी के एमडी नीलेश शाह से खास बातचीत
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कोटक एएमसी के एमडी नीलेश शाह से खास बातचीत
(फोटो: क्विंट हिंदी)

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सोने की इतनी चाहत इकनॉमी के लिए ठीक नहीं है. क्विंट से बात करते हुए कोटक एएमसी के एमडी नीलेश शाह ने कहा कि किसी भी देश के विकास के लिए निवेश करना जरूरी है. घरेलू बचत जरूरी है नहीं तो फिर आपको विदेशी बचत की जरूरत पड़ेगी.

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नीलेश शाह के मुताबिक पिछले आठ सालों में 2011-2018 के बीच भारत ने 245 बिलियन डॉलर का सोने और महंगे जवाहरात का आयात किया है. हमें 10-12% विकास करना है लेकिन उस ग्रोथ को लाने के लिए हमें सेविंग्स चाहिए, जो हमारे पास नहीं है.

ये पूछे जाने पर कि हम भारतवासी गोल्ड से इतने ऑब्सेस्ड क्यों हैं? नीलेश शाह का कहना है कि झोपड़ पट्टी के लोगों को अपना पैसा साथ में लेके घूमना पड़ता है तो वो सोने में उस सेविंग्स को कन्वर्ट करके घूमते रहते हैं.

मंदिरों में भगवान को मूर्तियों पर सोना चढ़ाते हैं. मंदिरों को एक्स्ट्रा सोना गोल्ड बॉन्ड में निवेश करना चाहिए.

बहुत से लोगों ने सोने में निवेश किया है ताकि उसे ब्लैक मनी में निवेश कर सकें. हमें ये कोशिश करनी होगी कि लोग सोने का पैसा ब्लैक मनी में ना लगाएं.

नीलेश शाह का कहना है कि हम सोने में 12% इंपोर्ट ड्यूटी लगाते हैं. इस तरह हमें सोने का आयात महंगा पड़ता है.

हमें ज्वैलर्स के साथ को-ऑपरेट करना चाहिए कि वो गोल्ड बॉन्ड को सही तरीके से मार्केट में ला पाए. हमें उन ज्वैलर्स को विश्वास में लेना चाहिए जो 22 और 24 कैरेट का हैवी सोना बनाते हैं. वे 12-14 कैरेट की हल्की ज्वैलरी बनाएं ताकि लोग सोना अफोर्ड कर सकें. और अपना पैसा हैवी ज्वैलरी पर न लगाएं.

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