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वीडियो एडिटर: संदीप सुमन
जिस प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया से कभी सरकार को डर लगता था, वही अब सरकार के सामने समर्पण की मुद्रा में है. इमरजेंसी के वक्त सरकार को लगता था कि मीडिया पर पाबंदी के खिलाफ ये संस्था मुखर हो सकती है, लिहाजा ऐहतियातन उसे भंग कर दिया था. लेकिन आज क्या हो रहा है? प्रेस की आजादी के सामने प्रेस की आजादी कायम रखने के लिए बनाया गया संगठन ही खड़ा है.
जम्मू कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाने के साथ ही सरकार ने टेलीफोन, मोबाइल और इंटरनेट सर्विस बंद कर दी. अब छूट मिली भी है तो पूरी तरह नहीं. ऐसे में घाटी से अखबार या वेबसाइट निकालना नामुमकिन हो गया.
भसीन की पीटिशन के मुताबिक कश्मीर में काम कर रहे पत्रकार और मीडिया की रिपोर्टिंग और पब्लिशिंग बुरी तरह प्रभावित हुई है. लेकिन प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के चेयरमैन जस्टिस चंद्रमौली प्रसाद ने अनुराधा भसीन की याचिका में हस्तक्षेप करते हुए सरकार के कदमों का समर्थन कर दिया.
सुप्रीम कोर्ट में अपने हलफनामे में PCI के अध्यक्ष ने कहा,
अब ये समझ से परे है कि यहां सेल्फ-रेगुलेशन, राष्ट्रीय हित इन सबसे चैयरमैन साहब कहना क्या चाहते हैं.
इन सबके बीच अब पीसीआई को प्रेस की आजादी में बाधा बनने के लिए आलोचना झेलनी पड़ रही है. प्रेस काउंसिल के पूर्व चेयरमैन से लेकर देश के बड़े अखबारों ने अपने एडिटोरियल के जरिए जस्टिस चंद्रमौली प्रसाद के इस कदम की निंदा की है. खुद काउंसिल के ही 11 सदस्य ने चंद्रमौली की चिट्ठी का विरोध कर दिया है.
सीनियर पत्रकार एन राम ने इसे अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक बताया है. उनका गुस्सा इतना ज्यादा है कि उन्होंने ये तक कह दिया कि काउंसिल इससे ज्यादा और नहीं गिर सकती थी.
उन्होंने आगे कहा,
पीसीआई के पूर्व चेयरमैन जस्टिस पीबी सावंत ने द वायर को दिए एक इंटरव्यू में पीसीआई के मौजूदा चेयरमैन के फैसले पर नाराजगी जताई है. उन्होंने कहा है, “मैंने सुना है कि पीसीआई के सदस्यों ने इस फैसले का विरोध किया है और चेयरमैन ने अपनी क्षमता में सुप्रीम कोर्ट से संपर्क किया है. लेकिन किसी भी मामले में, चाहे वह अकेले सुप्रीम कोर्ट के पास गए हों या पीसीआई के अध्यक्ष के रूप में, मीडिया पर प्रतिबंधों का यह औचित्य दुर्भाग्यपूर्ण है.”
अंग्रेजी अखबार द हिंदू ने चंद्रमौली प्रसाद के इस कदम का विरोध जताते हुए एक एडिटोरियल भी लिखा है.. 'द रॉग कॉउंसेल'. इस एडिटोरियल के जरिए उस दौर का भी जिक्र किया गया है जब पत्रकारिता ने मुश्किल से मुश्किल दौर में मजबूती से अपना काम किया था. एडिटोरियल में कड़े शब्दों में लिखा है,
1966 में बनी प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया एक अर्द्ध न्यायिक और स्वायत्त संगठन है और इसके पास दो स्पष्ट अधिकार हैं. पहला प्रेस और पत्रकारों की आजादी की रक्षा करना. दूसरा- पत्रकारिता में नैतिकता की निगरानी और इसके ऊंचे मानकों को बरकरार रखना, लेकिन प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के चेयरमैन जस्टिस चंद्रमौली प्रसाद का ने जो किया है उससे World Press Freedom Index के 140वें पायदान पर खड़े हिंदुस्तान की रैंकिंग सुधरने से तो रही..
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