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साल 1996 में 23 साल की प्रियदर्शिनी मट्टू का बेरहमी से रेप और कत्ल कर दिया जाता है. अब दिल्ली सेंटेंस रिव्यू बोर्ड, उसके कातिल यानी संतोष सिंह को समय से पहले रिहा करने के बारे में सोच रहा है. लेकिन ये पूरा प्रोसीजर ही दिल्ली के सेंटेस रिव्यू बोर्ड के अपने नियमों का उल्लंघन है.
प्रियदर्शिनी मट्टू केस में दिल्ली पुलिस के पूर्व ज्वाइंट सीपी जेपी सिंह के बेटे संतोष सिंह को अक्टूबर 2006 में दोषी ठहराया गया था. दिल्ली हाई कोर्ट ने उसे मौत की सजा सुनाई जिसे बाद में सुप्रीम कोर्ट ने उम्र कैद में बदल दिया.
आइए समझते हैं क्या कहते हैं सेंटेस रिव्यू बोर्ड के अपने नियम-
वो कैदी जो रेप और मर्डर जैसे क्राइम के लिए उम्र कैद काट रहे हैं और वो कैदी जिनकी सजा-ए-मौत को उम्र कैद में बदला जा चुका है. संतोष सिंह इन दोनों कैटेगरी में आता है. अब देखिए, नियम कहते हैं कि कम से कम 20 साल की सजा काटना जरूरी है, लेकिन बड़ा सच तो ये है कि संतोष सिंह ने परोल मिलाकर सिर्फ और सिर्फ 16 साल की कैद काटी है.
संतोष को दिसंबर 1999 में ट्रायल कोर्ट ने छोड़ दिया, लेकिन हाई कोर्ट ने अक्टूबर 2006 में उसे दोषी ठहराया. क्राइम जनवरी 1996 में हुआ. तब से अब तक करीब 23 साल का वक्त गुजर चुका है. अगर संतोष सिंह 7 साल तक जेल से बाहर था तो साफ है कि उसने 16 साल से कम की सजा काटी है. तो दिल्ली के गृहमंत्री सतेंद्र जैन और सेंटेस रिव्यू बोर्ड के बाकी 6 मेंबर्स से मेरा एक सवाल है. बोर्ड के अपने नियमों को नजरअंदाज करके आखिर क्यों संतोष सिंह जैसे हत्यारे और रेपिस्ट का नाम समय से पहले रिहा करने के लिए विचार किया जा रहा है.
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