Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Videos Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019प्रियंका गांधी राजनीति में तो आ गईं लेकिन सब कुछ इतना आसान नहीं है

प्रियंका गांधी राजनीति में तो आ गईं लेकिन सब कुछ इतना आसान नहीं है

प्रियंका को उतारकर कांग्रेस ने साफ कर दिया है कि वो 2019 का पॉलिटिक्ल मैच अपने बेस्ट बैट्समैन के साथ खेलेगी.

कृतिका गोयल
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बड़ी जिम्मेदारी को निभाते वक्त प्रियंका को कई चुनौतियों का सामना करना होगा.
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बड़ी जिम्मेदारी को निभाते वक्त प्रियंका को कई चुनौतियों का सामना करना होगा.
(फोटो: क्विंट हिंदी)

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लोकसभा चुनाव 2019 से ठीक पहले कांग्रेस ने 'प्रियंका कार्ड' खेल दिया है. प्रियंका गांधी वाड्रा को पूर्वी यूपी का प्रभारी महासचिव बनाकर पार्टी ने साफ कर दिया है कि वो यूपी में सिर्फ वोटकटुआ बनकर नहीं लड़ेगी बल्कि मजबूती से पंजा लड़ाएगी. खास बात ये है कि प्रियंका को जिस इलाके का चार्ज मिला है वो पीएम नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी और सीएम योगी आदित्यनाथ का गढ़ गोरखपुर वाला इलाका है. लेकिन इस बड़ी जिम्मेदारी को निभाते वक्त प्रियंका को कई चुनौतियों का सामना करना होगा.

प्रियंका की चुनौतियां

कांग्रेस में नई जान फूंकना

सबसे पहली चुनौती तो यूपी में कांग्रेस के निढाल पड़े संगठन में दोबारा जान फूंकने की है. पूर्वी यूपी में लोकसभा की करीब 30 सीट आती हैं.

2104 के चुनाव में कांग्रेस को यहां एक भी सीट नहीं मिली थी और वोट शेयर था करीब 6%. वहीं बीजेपी ने 29 सीट जीतकर क्लीन स्वीप किया था और पार्टी का वोट शेयर था 41% से ज्यादा. कांग्रेस को पूरे यूपी में सिर्फ अमेठी और रायबरेली की सीट के साथ तसल्ली करनी पड़ी थी जो अवध इलाके में आती हैं.

खास बात ये कि 2018 में हुए गोरखपुर, फूलपुर और कैराना के उपचुनावों में बीजेपी तो हारी लेकिन कांग्रेस का प्रदर्शन वहां भी ढीला ही रहा. ये तीनों चुनाव एसपी-बीएसपी गठबंधन ने जीते तो अपनी बड़ी भूमिका में प्रियंका को कांग्रेस के लिए समर्थन जुटाने की इसी बड़ी चुनौती का सामना करना होगा.

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जमीन पर कार्यकर्ताओं को गोलबंद करना

प्रियंका गांधी के लिए दूसरी सबसे बड़ी चुनौती होगी बूथ लेवल पर कार्यकर्ताओं को मजबूत करना. हर सीट पर सही उम्मीदवार का चुनाव भी एक बड़ी सिरदर्दी है. अब तक हमने उनके कैंपेन को सिर्फ अमेठी और रायबरेली में ही देखा है, लेकिन ज्यादातर लोगों की राय में वो एक शानदार वक्ता हैं जिसका फायदा उनकी पार्टी को शहरी क्षेत्र में भी मिल सकता है.

'बुआ-भतीजा Vs 'मोदी-शाह' Vs 'भाई-बहन'

एक बात तो साफ हो चुकी है कि उत्तर प्रदेश में तीन तरफा लड़ाई होने वाली है. एक तरफ एसपी और बीएसपी दूसरी ओर मोदी-शाह और तीसरे छोर पर राहुल और प्रियंका परंपरागत रूप से पूर्वांचल का इलाका बीजेपी का गढ़ रहा है. उच्च जातियां खासकर राजपूत और ब्राह्मण बहुल इस क्षेत्र में त्रिकोणीय मुकाबले में प्रियंका को काफी चुनौतियों का सामना करना पर सकता है.

पूर्वांचल में राजपूत और ब्राह्मण जैसी जातियों का रसूख है. हालांकि 2009 में कांग्रेस का प्रदर्शन इस इलाके में बढ़िया रहा था लेकिन 2014 की मोदी-आंधी में तमाम पार्टियां हवा हो गईं. अब जबकि खुद मोदी भी वाराणसी से चुनाव लड़ रहे होंगे तो प्रियंका के लिए उस अपर कास्ट में सेंध लगाना आसान नहीं होगा.

कांग्रेस को बुआ-भतीजा और मोदी-शाह की जोड़ी को मजबूत टक्कर देने के लिए अपने वोटबैंक की बारीक पहचान करनी होगी.

वाड्रा फैक्टर

प्रियंका गांधी के पति राॅबर्ट वाड्रा पर बीजेपी जब तब भ्रष्टाचार के आरोप लगाती है. प्रियंका की पॉलिटिकल पारी के मद्देनजर वाड्रा फैक्टर फिर से उबर सकता है. अब तक कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी पर निशाना साधने के लिए जिस हथियार का इस्तेमाल बीजेपी करती रही वही हथियार अब प्रियंका के खिलाफ इस्तेमाल हो सकता है.

लेकिन इन तमाम चुनौतियों के बावजूद प्रियंका को उतारकर कांग्रेस ने साफ कर दिया है कि वो 2019 में यूपी का पॉलिटिक्स मैच अपने बेस्ट बैट्समैन के साथ खेलेगी और वो भी फ्रंटफुट पर.

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