Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Videos Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Super Century: भारत की इकनॉमी को लेकर धैर्य रखना सीखें- राघव बहल

Super Century: भारत की इकनॉमी को लेकर धैर्य रखना सीखें- राघव बहल

“मेरा मानना है कि भारत अगले तीन दशक में वो सब हासिल कर लेगा जिसे काफी पहले हासिल कर लेना चाहिए था.”

क्विंट हिंदी
वीडियो
Updated:
भारत की इकनॉमी को लेकर धैर्य रखना सीखें- राघव बहल
i
भारत की इकनॉमी को लेकर धैर्य रखना सीखें- राघव बहल
(फोटो: क्विंट हिंदी/अरूप मिश्रा)

advertisement

वीडियो प्रोड्यूसर: सोनल गुप्ता

कैमरापर्सन: त्रिदीप मंडल, सुमित बडोला

वीडियो एडिटर: विवेक गुप्ता

19 जुलाई को राघव बहल की नई किताब 'Super Century: What India Must to Do To Rise by 2050 ' लॉन्च की गई.

नई दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में किताब पर कई दिग्गजों, आरबीआई के पूर्व गवर्नर और संसद सदस्य डॉ. बिमल जालान, लेखक गुरुचरण दास, सांसद और आईआईएम बेंगलुरु के पूर्व प्रोफेसर राजीव गौड़ा, जर्नलिस्ट और नेशनल सिक्योरिटी एक्सपर्ट प्रवीण स्वामी ने चर्चा की.

लॉन्च पर पहुंचे कई लोगों ने इस किताब को सराहा और कहा कि देश फिलहाल जिन कठिनाईयों से गुजर रहा है, ऐसे समय में इस तरह की किताबों की जरूरत ज्यादा है.

“मुझे लगता है कि वो सबसे दिलचस्प शख्सियतों में से एक हैं. वो जानकार हैं, सिर्फ इसलिए नहीं कि वो एक बड़े लेखक हैं, ऐसा इसलिए क्योंकि वो व्यक्तिगत तौर पर ऐसे हैं.”  
संदीप मल्होत्रा, एंटरप्रेन्योर
“वो एक ऐसे शख्स हैं जो खुद को बहुत अच्छी तरह से व्यक्त कर सकता है. मुझे लगता है कि उनका किताबें लिखना, देश के लिए काफी अच्छा है. वो सुपर पावर, सुपर इकनॉमी, सुपर सेंचुरी पर लिख रहे हैं.  ये देश को उस तरफ ले जा रहा है, जहां हम सब उसे  पहुंचाना चाहते हैं.” 
पीयूष जैन, बिजनेस हेड, द क्विंट

देश को लेकर अटल आशावादी लेखक राघव बहल ने ‘सुपर ट्रायलॉजी’ के पीछे की कहानी से इस ईवेंट की शुरुआत की. सुनिए उन्होंने क्या कहा.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

भारत की इकनॉमी की जरूरत है ‘सुपर ट्रायलॉजी’

ये उस कड़ी की तीसरी किताब है जिसे हमने अपनी शेखी में सुपर ट्रायलॉजी कह दिया. ये ‘सुपर’ टाइटल वाली तीसरी किताब है.

1990 के दशक की शुरुआत में जब भारत ने अपना उदारीकरण शुरू किया, चीन और भारत बराबर थे. हमारी जीडीपी लगभग बराबर थी. यहां तक कि प्रति व्यक्ति आय के आधार पर भारत चीन से आगे था. अभी ये नामुमकिन सा लगता है. लेकिन 15-16 साल बाद, 2006-07 के आसपास चीन में प्रति व्यक्ति आय भारत से लगभग चार गुना हो गई. इसलिए मैंने खुद से ये सवाल पूछा- मुझे पता है कि हमने अपनी अर्थव्यवस्था को कैसे खोला और चीन ने कैसे, और यही बुनियाद बनी मेरी पहली किताब ‘सुपर पावर’ की.

हमने उस किताब में चीन और भारत को आमने-सामने रखकर तुलना की. मैं उन दिनों भारत को लेकर भी काफी आशावादी था. याद रखिए, सितंबर में लेहमन से पहले 2007-08 अच्छा साल था. मैंने भारत का एक बहुत ही आशावादी लेखा-जोखा लिखा और मैंने कहा कि हमारे पास संस्थानिक संरचना और ताकत है जो चीन के पास नहीं है. हम अब लगभग चीन की तरह तेजी से बढ़ रहे हैं. दरअसल, उन सालों में जीडीपी के मामले में भारत चीन की तुलना में ज्यादा तेजी से बढ़ रहा था.

लेकिन 2011 में वो हुआ, जिसके बारे मेें मैंने सोचा नहीं था. 2011 में आर्थिक सुधार थम गए और हम चीन से पिछड़ गए और तब मेरा अनुमान इतना सही नहीं निकला. तब मैंने दुनिया की आर्थिक महाशक्तियों के बारे में लिखा. इस बार मैंने अमेरिका की भी चर्चा की और अनुमान लगाया कि दुनिया में अब तीन आर्थिक महाशक्तियां होंगी, भले ही मेरे अनुमान के बाद हों, लेकिन तीन महाशक्तियां जरूर होंगी.

अमेरिका निश्चित रूप से काफी पहले से एक सुपर इकनॉमी था. एक ऐसी इकनॉमी, जो वास्तव  में सुपर इकनॉमी थी. चीन अपनी अव्यवस्थाओं के बीच एक चैलेंजर के तौर पर उभरा लेकिन वो भी एक सुपर इकनॉमी बन चुका था. भारत, जिसे मैंने स्लीपर सुपर इकनॉमी कहा था, उसे सुपर इकनॉमी बनने में कुछ साल लग जाएंगे.

सुपर इकनॉमी की मेरी परिभाषा के 4-5 मापदंड हैं. इसमें बड़ा देश, बड़ी आबादी, बड़ी जनसंख्या, न्यूक्लियर-आर्म्ड आर्मी,  दो अंकों की जीडीपी- जो उस समय सिर्फ अमेरिका और चीन के पास थी. दुनिया  की गतिविधियों के लिहाज से भारत की भौगोलिक स्थिति बेहद अहम है इसलिए भारत का दुनिया के बेहद महत्वपूर्ण घटनाओं पर एक असर है. सुपर इकनॉमी की परिभाषा में जो तीन देश फिट बैठते हैं बेशक उनमें अमेरिका, चीन और भारत शामिल हैं.

फिर मैंने मोदी 1.0 के पहले 5 सालों का जायजा लिया और पाया कि मैं कुछ ज्यादा ही आशावादी हो रहा था. जहां तक विदेश नीति के क्षेत्र में काम का सवाल है तो मोदी सरकार ने इसके आर्थिक मोर्चों पर काफी अच्छे नतीजे हासिल किए थे. दुर्भाग्य से, मैंने पाया कि वे जिस तरह के वादे के साथ आए थे उतना नहीं कर पाए.

आशावादी होने के साथ-साथ धीरज रखने की जरूरत

मैंने महसूस किया कि भारत का नियति से साक्षात्कार फिर एक बार थोड़ा आगे टल गया है और इसलिए अंतिम तीसरी किताब जो मैंने लिखी, उसमें मैंने खुद से भारत के बारे में थोड़ा धैर्य रखने को कहा. सुपर इकनॉमी बनने में भारत को थोड़ा लंबा वक्त लगने वाला है. मैंने इस देश को लेकर थोड़ा धीरज रखने की कोशिश की है,. इसलिए भारत को 2050 तक जो हासिल कर लेना है उसके लिए मैंने खुद को तीन दशक का खासा वक्त दे दिया है.

निश्चित तौर पर मैं अपनी थीसिस के समर्थन के लिए तब तक मौजूद नहीं रहूंगा. हो सकता है कि अपने आकलन में मैं बेहद गलत साबित होऊं. हो सकता है कि लोग मेरे आकलन की आलोचना करें. लेकिन तब शायद मैं यहां नहीं होउंगा इसलिए इसका मुझ पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा.

इससे भी अहम बात, ये हमें वो करने के लिए 30 साल का वक्त दे रहा है जो हम नहीं कर पाए हैं. मैंने किताब में इसे रेखांकित करने की कोशिश की है और मुझे यकीन है कि पैनल डिस्कशन में ये सामने आएगा. मैं अब ज्यादा समय नहीं लूंगा क्योंकि पैनल में तो इसकी चर्चा होगी ही.

मैं एक बार फिर दोहराऊंगा कि मोदी सरकार ने विदेश नीति के क्षेत्र में काफी बेहतर काम किया है. जब सरकार आई, तो ये सोचा गया कि पीएम मोदी के पास विदेश नीति के लिए जरूरी प्रतिभा या अनुभव नहीं है. लेकिन आर्थिक नीति के लिए प्रतिभा और अनुभव है.

दुर्भाग्य से, ये उलटा निकला. वो विदेश नीति में कहीं अधिक आक्रामक और जोखिम लेने वाले शख्सियत लगे और जहां तक मेरा मानना है कि आर्थिक नीतियों के मामले  वो कमजोर, जुगाड़ करने और चीजों बढ़ा-चढ़ा कर पेश करने लगे. मेरी तीसरी किताब ‘सुपर सेंचुरी’ में ये सब लिखा है. मैं उम्मीद करता हूं कि अगले तीन दशक में वो सब हासिल कर लेंगे जिसके बारे में मेरा ये साफ मानना है कि ये सब काफी पहले हासिल कर लेना चाहिए था.

लेकिन मैंने अब सीख लिया है कि भारत के बारे में धीरज रखना है.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 27 Jul 2019,06:58 PM IST

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT