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गुरुवार को सुबह 7.45 बजे से शुक्रवार को सुबह 6 बजे तक, क्विंटिलियन मीडिया ग्रुप के करीब 500 पत्रकार और दूसरे प्रोफेशनल को लगातार 23 घंटे तक भारत के टैक्स अधिकारियों ने बेहद आपत्तिजनक तरीके से बंधक बनाकर रखा. लेकिन हमें अपनी टीम पर बहुत गर्व है, जिसने इन टैक्स अधिकारियों को भरपूर सहयोग किया. यहां तक पक्का किया कि सर्च और सर्वे ऑपरेशन के दौरान टैक्स अधिकारियों की नजर से कुछ भी छूटने ना पाए.
लेकिन जब करीब 3 घंटे बाद हम जब सोकर उठे, तो सरकार के लोगों की तरफ से मामले को बेहूदा मोड़ देने की खुल्लम-खुल्ला कारस्तानी देखकर हैरान रह गए. बताया गया कि सर्च और सर्वे का ये कदम सालभर से जारी लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस घोटाले की जांच का हिस्सा है, जिसमें राघव बहल और ऋतु कपूर को 118 करोड़ रुपए की ‘बोगस’ कमाई हुई. बात का कोई बतंगड़ बनाए बगैर मैं इस मामले से जुड़े तमाम तथ्य (दावे नहीं) सामने रख रहा हूं:
लेकिन इस पूरे मामले ने हमें और चौकन्ना भी कर दिया है कि आगे भी सरकार और हथकंडे अपना सकती है. इसलिए कल की पूछताछ से जुड़ी अहम बातों के आधार पर हम निष्पक्ष लोगों के सामने अहम तथ्य (दावे नहीं) रखना चाहते हैं, ताकि वो खुद ही सही-गलत का फैसला कर सकें.
कुल मिलाकर कैश 3.56 लाख भारतीय करेंसी (रुपए). साथ ही 33 लाख रुपए के आधुनिक और पुश्तैनी गहने मिले. ज्यादातर गहने मेरी 82 साल की मां की अलमारी में थे. ये पूरी संपत्ति पुराने रिटर्न में घोषित की जा चुकी है. क्या ये हैरानी की बात है कि इस पीढ़ी के लोग इतने गहने और कैश अपने पास रखना चाहते हैं?
चूंकि हमारे दोनों बच्चे लंदन की यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन करने जा रहे हैं, इसलिए हमने फैसला किया था कि घर खरीदने के लिए हम फैमिली के तौर पर कानूनन भेजी जाने वाली रकम (LSR) (मौजूदा लिमिट सालाना ढाई लाख डॉलर/फेमिली) का इस्तेमाल करेंगे. हमने कुछ साल पहले एक नया अपार्टमेंट बुक किया और इसके लिए अपने सालाना LSR का इस्तेमाल किया. इन सभी बातों की जानकारी हमारी इनकम टैक्स फाइलिंग के शेड्यूल (एफ) में दी गई है.
दरअसल टैक्स अधिकारियों ने कल (गुरुवार) हमसे आधा दर्जन बार पूछा कि क्या हमने विदेशी बैंक अकाउंट समेत तमाम संपत्तियों की जानकारी रिटर्न के एफ शेड्यूल में दी है? जब हमने आधा दर्जन बार 'हां' में जवाब दिया, तो साफ नजर आया कि इससे उन्हें निराशा हुई!
इसके बाद उनका फोकस नेटवर्क 18 की तरफ हो गया. वो 2014 में रिलायंस इंडस्ट्री को बेचे गए शेयरों की बिक्री के बारे में पूछने लगे. हमने उन्हें तुरंत शेयर बिक्री एग्रीमेंट की कॉपी दे दी और इस बारे में हुए सारे ई-मेल भी दिखा दिए. इसके बाद अधिकारियों ने नेटवर्क 18 की सब्सिडियरी के बारे में ढेरों सवाल पूछे और हमने यही कहा कि कंपनी से हटने के बाद हमें इस बारे में कोई जानकारी नहीं है और इसके लिए उन्हें नेटवर्क 18 से ही बात करनी होगी.
2008 में हुए इस ज्वाइंट वेंचर को लेकर बहुत कंफ्यूजन रहा. उनको लगा कि टीवी 18 ने राउंड ट्रिपिंग के लिए इसका इस्तेमाल किया! वो बार-बार होमशॉप 18 और इंडिया फिल्म कंपनी समेत दूसरी सब्सिडियरी और कंपनियों और इस ट्रांजेक्शन में कंफ्यूज हो रहे थे. याददाश्त के आधार पर हमने बात साफ करते हुए उनसे कहा कि इससे ज्यादा जानकारी के लिए वो नेटवर्क 18 से संपर्क करें.
यह बहुत हैरानी वाला था. वो कहते रहे कि हमने एफआईपीबी मंजूरी मिले बिना ही ब्लूमबर्ग का 10 करोड़ रुपया ज्वाइंट वेंचर में निवेश कर दिया. दरअसल उनका कहना था कि यह भी राउंड ट्रिपिंग का ही मामला है. लेकिन जब हमने एफआईपीबी मंजूरी की कॉपी दिखाई, तो उन्हें सच्चाई माननी पड़ी. (यहां बता दें कि एक बिजनेस अखबार में खबर छपी है कि बीक्यू टीवी चैनल को मंजूरी मिलने में दो साल की देरी की वजह है गृह मंत्रालय की ओर से उठाया गया सिक्योरिटी से जुड़ा मसला. मैं सरकार को चुनौती देता हूं कि वो गृह मंत्रालय की रिपोर्ट सार्वजनिक करे. हम पूरे दावे से कह सकते हैं कि गृह मंत्रालय ने सिक्योरिटी से जुड़े मसले पर हरी झंडी दे दी है. लेकिन देरी की वजह कुछ और ही है.)
एडवांटेज/ अर्टेविया/ रेड्डी से रिश्ता
उन्होंने पूछा कि क्या एटवांटेज कंसल्टिंग या अर्टेविया डिजिटल (यूके) या किसी सीबीएन रेड्डी के साथ कभी भी हमारा कारोबारी रिश्ता रहा है? हमने तुरंत जवाब दिया, 'बिल्कुल नहीं'. कोई किंतु-परंतु नहीं. इनमें से किसी से भी हमारा कभी कारोबारी रिश्ता नहीं रहा है.
एक साथ सर्वे/ सर्च उन कंपनियों पर भी किए गए, जहां हमारा निवेश है. जैसे बेंगलुरु में द न्यूज मिनट, बेंगलुरु में ही क्विंटाइप और दिल्ली में यूथ की आवाज. अगर सर्वे और सर्च का मकसद 2014 के कारोबार से था, तो फिर इन कंपनियों पर सर्वे और सर्च क्यों? इन सारी कंपनियों में निवेश तो 2015 के बाद किया गया है. इनके रोजमर्रा ऑपरेशन पर हमारा कोई कंट्रोल नहीं है. हम सिर्फ निवेशक हैं. इनको निशाना क्यों बनाया गया? मतलब, मकसद यही था कि कुछ ना कुछ तो मिल जाए.
ये बड़ी अजीबोगरीब बात थी. चूंकि हमारा यह पहला अनुभव था, इसीलिए पहले से पता नहीं था कि ऐसे ऑपरेशन में, जहां डेटा निकालना होता है, उसकी निगरानी करनी होती है, प्राइवेट एक्सपर्ट की मदद ली जाती है. तो हमारे प्राइवेट डेटा की प्राइवेसी का क्या? अगर इसका गलत इस्तेमाल होता है, तो उसकी जिम्मेदारी कौन लेगा? इस मसले पर गंभीर विचार करने की जरूरत है. इस मामले में कानूनी कदम उठाने का अधिकार हम सुरक्षित रखते हैं. हम प्राइवेेसी के अधिकारों की बात करने वाले एक्टिविस्ट से मामले को आगे बढ़ाने की अपील करते हैं.
हम यह कहना चाहते हैं कि हमारा सारा कारोबार पूरी तरह साफ-सुथरा है, ऐसे में अगर हमारे ऊपर कुछ भी ऊलजुलूल थोपने की कोशिश होती है, तो उसके खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई करेंगे. फिलहाल हम ये तमाम बातें इसलिए सामने ला रहे हैं, ताकि लीक्स और ट्रोल्स के जरिए बदनाम करने की कोशिशों को नाकाम किया जाए.
हम अपने मीडिया के सहयोगियों को भी इसी तरह की सरकारी बदले की कार्रवाई के खिलाफ अलर्ट कर रहे हैं. इसके साथ ही हम उन लोगों को बहुत-बहुत धन्यवाद देते हैं, जिन्होंने हमारा साथ दिया. यकीन मानिए, लड़ाई जमकर लड़ी जाएगी, हारने के लिए नहीं.
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