Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Videos Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019राहुल गांधी जन्मदिन विशेष | बीते 6 महीने में क्या खोया, क्या पाया?

राहुल गांधी जन्मदिन विशेष | बीते 6 महीने में क्या खोया, क्या पाया?

राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस अपने छिटके वोटर वर्ग को रिझाने में लगी है

अविरल विर्क
वीडियो
Updated:
i
null
null

advertisement

वीडियो एडिटर- मो. इरशाद आलम

2017 में पहले बर्कले और प्रिंसटन जैसी यूनिवर्सिटी में राहुल गांधी ने तालियां बटोरीं. और उसके बाद आया गुजरात चुनाव जहां सोच समझकर चली गई सियासी चालें निशाने पर बैठीं और बीजेपी 100 सीटों के भीतर सिमट गई. ऐसा पीएम मोदी के गृहराज्य में हुआ, इससे शेखी मारने का मौका भी मिल जाता है.

लेकिन अगर कांग्रेस को नैतिक जीत भर से आगे बढ़ना है तो सिर्फ शेखी मारने से काम चलने वाला नहीं. कांग्रेस का अध्यक्ष पद संभालने के 6 महीने में राहुल ने पार्टी की पुरानी गलतियों को सुधारने की दिशा में ठीक ठाक काम किया है. लेकिन ऐसा तो नहीं कि कोई गलती हुई ही नहीं.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

नौसिखिया गलतियां

फूलपुर और गोरखपुर में कांग्रेस का उम्मीदवार उतारना एक गलती थी. दो ऐसी सीटें जहां मजबूत क्षेत्रीय दलों, एसपी-बीएसपी का गठबंधन सामने था. यहां हार करीब-करीब तय थी. न सिर्फ दोनों सीटों पर कांग्रेस उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई बल्कि 2019 चुनावों को देखते हुए पार्टी की सौदेबाजी की ताकत भी कम हुई.

कर्नाटक चुनाव में भी कांग्रेस आत्मविश्वास से लड़ी. लेकिन जब ये साफ हो गया कि जनादेश खंडित है, पार्टी हरकत में आ गई. ये गोवा और मणिपुर के उलट था जहां पार्टी राजनीतिक आलस्य में जकड़ी पाई गई थी. पार्टी ने आगे आकर जेडीएस की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया वो भी बिना किसी शर्त के.

बीजेपी के येदियुरप्पा से कांग्रेस को कड़ी चुनौती मिली. साथ ही एक ऐसे गवर्नर का साथ भी जिनकी भूमिका को सुप्रीम कोर्ट ने भी अनदेखा नहीं किया. हफ्ते भर चली खींचतान के बाद आखिरकार कांग्रेस-जेडीएस सरकार बनाने में कामयाब रहे.

लेकिन ये इच्छाशक्ति, त्रिपुरा में नजर नहीं आई जहां आंतरिक कलह, संसाधनों की कमी, केंद्रीय नेतृत्व के अभाव और फीके कैंपेन ने सत्ता को बीजेपी के हाथ में जाने दिया.

सियासी जमीन गंवाई लेकिन किस कीमत पर?

कर्नाटक में वक्त पर कार्यवाही ने भले बीजेपी के ‘कांग्रेस-मुक्त भारत’ में पलीता लगा दिया हो और शपथग्रहण समारोह, विपक्षी एकता का लॉन्च पैड बन गया हो लेकिन ये सब किस कीमत पर?जेडीएस से 43 विधायक ज्यादा होने के बावजूद कांग्रेस को मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी. साथ ही छोड़ने पड़े फाइनेंस, इंटेलिजेंस, एक्साइज और पीडब्ल्यूडी जैसे अहम मंत्रालय.

नए दोस्त बनाने के लिए कांग्रेस अपनी कितनी सियासी जमीन छोड़ सकती है, यही इस समय उसके सामने सबसे बड़ा सवाल है.

दिल्ली में कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी की किसी भी तरह की मदद से हाथ खींच रखे हैं. बल्कि वो तो केजरीवाल एंड पार्टी के एलजी हाउस वाले धरने की खुली आलोचना कर रही है. लेकिन तब क्या जब उसकी विपक्षी एकता के साथी एचडी कुमारस्वामी और ममता बनर्जी जैसे सीएम, केजरीवाल के धरने के मुद्दे पर पीएम मोदी से मुलाकात करते हैं. ऐसे हालात में कांग्रेस और साथियों के बीच की दूरी कुछ हद तक दिखलाई दे जाती है.

राहुल गांधी, लगातार इस बात को लेकर हमला करते रहे हैं कि बीजेपी अपने वरिष्ठ नेताओं जैसे आडवाणी और वाजपेयी से किस तरह पेश आती है. लेकिन क्या इतना भर काफी साबित होगा? क्योंकि कांग्रेस के सामने बड़ी चुनौती, 2014 में छिटके वोटर को वापस लाने की है. राहुल ने इस रास्ते पर कवायद भी शुरू कर दी है. ओबीसी, दलित, आदिवासियों को रिझाने की कोशिश लगातार जारी है. अगर पार्टी को हिंदी पट्टी में थोड़ा भी पांव जमाना है तो वो इन तबकों की अनदेखी नहीं कर सकती. साथ ही ओडिशा, आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में भी उसे अपने काडर को प्रेरित करना होगा.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 19 Jun 2018,12:48 PM IST

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT