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सरकार के पास काम करने के लिए बहुत वक्त: राज्यवर्धन सिंह राठौड़

अलग-अलग विचारधाराओं के लोगों का साझा विपक्ष सत्ता का भूखा- राठौड़

निष्ठा गौतम
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Published:
केंद्रीय खेल मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़
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केंद्रीय खेल मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़
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वीडियो एडिटर- संदीप सुमन

2019 चुनावों को लेकर बीजेपी और केंद्र सरकार दोनों ही अब आक्रामक तेवर में नजर आ रहे हैं. लेकिन ऐसे कई सवाल हैं जो देश, सरकार से पूछना चाहता है. क्विंट से खास बातचीत में ऐसे सभी सवालों का जवाब दे रहे हैं केंद्रीय मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़.

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विकास सिर्फ आखिरी साल में ही क्यों?

राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने कहा, “सरकार के पास काम करने के लिए पूरा वक्त है. आप मुझे बताइए, क्या हम अपने सारे वादे पहले ही साल में पूरे करने को मजबूर हैं.”

क्या सरकार की ‘नाम-बदलो’ नीति असल काम का मुकाबला कर सकती है?

स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया का नाम स्पोर्ट्स इंडिया करने से पहले हमने काफी काम किया है. खेलो इंडिया के साथ हम स्पोर्ट्स को जमीनी स्तर तक लेकर गए हैं. हजारों खिलाड़ियों को स्कॉलरशिप मिल रही है, हर साल 5 लाख रुपये, 8 साल तक.ऐसा पहले कभी नहीं हुआ. बच्चों के लिए जो नेशनल एकेडमी हैं, वहां खाने का भत्ता 200 रुपये रोज से बढ़ाकर 450 किया जा रहा है.

क्या मंत्रालय आजाद हैं या पीएम मोदी ही सारे फैसले लेते हैं?

हमें प्रधानमंत्री से आइडिया मिलते हैं. वो हर मंत्रालय के लिए मंत्री हैं तो जाहिर है हम उनसे बात करेंगे लेकिन हम काम करने के लिए पूरी तरह आजाद हैं.पहली बार हमारे पास एक ऐसे प्रधानमंत्री हैं जो सबसे ज्यादा मेहनत कर रहे हैं.एक रिपोर्ट कार्ड तैयार किया जाता है. इन महीनों या दिनों में कितनी प्रगति हुई. इस रिपोर्ट में काफी चीजें होती हैं तो ऐसे ही कोई अपनी जिम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड़ सकता.

अगर सब कुछ ठीक है तो युवा बेरोजगार क्यों हैं?

ये गलतफहमी है. ये विपक्ष का अभियान है. रोजगार और युवाओं के लिए नौकरी के मौके पैदा करना हमेशा चुनौती रहेगा. खासकर ऐसे देश के लिए जहां दुनिया में सबसे ज्यादा युवा हों. लेकिन ऐसा करना सरकार की कोई जिम्मेदारी नहीं. और क्या सरकार पूरी दुनिया में ये माहौल तैयार नहीं कर रही कि अगर आपके पास नौकरी है तो भारतीय लड़के-लड़कियां इसके लिए सबसे बेहतर हैं.

किसान गुस्से में मोर्चा निकाल रहे हैं. क्या सिर्फ MSP बढ़ाना काफी है?

आज जब किसान अपनी फसल लेकर मंडी पहुंचता है तो वो अपनी फसल जैसे चाहे वैसे बेचने के लिए आजाद है. ये आज का भारत है. सारी कीमतें एप पर मौजूद हैं. ये किया है हमने. हर सेक्टर में आगे बढ़कर काम किया है. बड़ा आसान है, सुर्खियों के परे सब नजरअंदाज कर देना और किसी खास अभियान को पकड़ लेना.

क्या सरकार, सोशल मीडिया पर फैलते जहर को लेकर चिंतित है?

अगर कोई शारीरिक तौर पर नुकसान पहुंचाने की सोचता है तो उसके लिए पुलिस और सेनाएं हैं.अगर कोई सामने न आए तो? लेकिन ऐसे विचार आ रहे हैं. ऐसी सोच सीधे घरों तक पहुंच रही है. इसका बचाव आप कैसे करेंगे? सोशल मीडिया के एक कानून (IT एक्ट) की वजह से कई लोगों को जेल जाना पड़ा. सिर्फ फेसबुक पोस्ट लिखने से. ये यूपीए के वक्त हुआ. हमने कानून की वो धारा खत्म की क्योंकि हम आजाद सोशल मीडिया में यकीन रखते हैं. जो सेल्फ रेगुलेशन मीडिया के लिए है, वही सोशल मीडिया के लिए होने की भी जरूरत है.

उपचुनावों के नतीजे चिंता बढ़ाने वाले हैं?

केंद्रीय मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ के मुताबिक, अलग-अलग विचारधाराओं के लोग इसलिए साथ आ रहे हैं क्योंकि वो सत्ता के भूखे हैं.

राठौड़ ने कहा, 'विपक्ष को ये एहसास हो गया है कि अगर वो अब सत्ता में नहीं लौटते तो बतौर राजनीतिक शक्ति वो हमेशा के लिए खत्म हो जाएंगे.'

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