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वीडियो एडिटर: मोहम्मद इब्राहीम/संदीप सुमन
26 साल के गेंदबाज मुकेश कुमार ने कर्नाटक के खिलाफ सेमीफाइनल में 5 विकेट लिए और 13 साल के लंबे इंतजार के बाद बंगाल को 2020 रणजी ट्रॉफी फाइनल में पहुंचाया, लेकिन मुकेश की इस सफलता के पीछे संघर्ष की एक बड़ी कहानी है.
मुकेश की कहानी बिहार के छोटे से गांव से शुरू होती है जहां वो अपने भाई और चाचा के साथ रहते थे और उनके माता-पिता कोलकाता में रहते थे.
मुकेश वापस अपने गांव जाना चाहते थे और वहीं पढ़ना चाहते थे. वहां वो अपने दोस्तों के साथ खेल सकते थे. ऐसा ही हुआ और वो जल्द ही वापस चले गए.
पढ़ाई खत्म करने के बाद मुकेश को उनके पिता ने नौकरी के लिए कोलकाता बुला लिया और वहां से शुरू हुआ मुकेश की जिंदगी का दूसरा हिस्सा.
मुकेश कोलकाता के विक्टोरिया मेमोरियल में क्रिकेट खेलने जाते थे. एक दिन टाउन क्लब में एक कोच ने उन्हें क्रिकेट खेलते देखा. मुकेश कभी-कभी इस क्लब के लिए क्रिकेट खेलते थे लेकिन उनकी नजर बंगाल टीम पर थी.
2014 में मुकेश, क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ बंगाल (CAB) के 'विजन 2020' कैंप में आए, जहां बंगाल रणजी टीम के ही गेंदबाज रणदेब बोस ने उनका जिम्मा उठाया. मुकेश को क्रिकेट किट से लेकर CAB के तहत उनके रहने का इंतजाम भी रणदेब बोस ने ही किया.
क्लब लेवल पर लगातार अपने प्रदर्शन से प्रभावित करने के बाद 2015-16 सीजन में मुकेश को बंगाल की रणजी टीम में बुलावा आया. हरियाणा के खिलाफ अपने पहले ही मैच में मुकेश ने टीम इंडिया के सुपरस्टार ओपनर रहे वीरेंद्र सहवाग का विकेट ले लिया.
बंगाल की टीम में अपनी जगह पक्की कर चुके मुकेश क्रिकेट में एक नया मुकाम पाने की चाह रखने वाले युवा क्रिकेटरों को खास संदेश देते हैं उसके लिए पाकिस्तान के महान पूर्व तेज गेंदबाज वकार यूनिस की कही एक बात का जिक्र करते हैं.
हर क्रिकेटर की तरह मुकेश की भी ख्वाहिश है कि वो देश के लिए क्रिकेट खेलें. इसके लिए उन्होंने अपना लक्ष्य भी तय किया है- पहले इंडिया-A के और फिर टीम इंडिया.
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